जल्द जवाब नहीं मिला तो मूत्र पीने को मजबूर हो जायेंगे तमिलनाडु के किसान

नई दिल्ली। पीछे 38 दिनों से अपनी कर्जमाफी को लेकर जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे किसान रोज अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं। अब किसानों का कहना है कि अगर केंद्र सरकार ने हमारी मांग नहीं मानी तो हम मूत्र पीने और मल खाने के लिए मजबूर हो जायेंगे।

नैशनल साउथ इंडियन रिवर लिंकिंग फॉर्मर्स असोसिएशन के राज्य अध्यक्ष पी अय्याकनकु ने कहा, तमिलनाडु में पीने के लिए पानी नहीं मिल रहा और प्रधानमंत्री मोदी हमारी प्यास की अनदेखी कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि मोदी सरकार हमें इंसान ही नहीं समझती है।

पिछले एक महीने के ज्यादा समय से प्रदर्शन कर रहे किसानों के प्रदर्शन के तरीके में अब लोगों में चर्चा का मुद्दा भी बनता जा रहा है। उनका कहना है कि वह जंतर-मंतर पर पेशाब लेकर बैठे हैं और वह सरकार के फैसले का इंतज़ार कर रहे हैं। इससे पहले किसान मुंह पर मरे हुए सांप और चूहे रखकर प्रदर्शन कर चुके हैं।

आंकड़ों की माने ने साल 2016 में तमिलनाडु में 250 किसानों ने आत्महत्या की। जबकि साल 2015 में 600 किसानों ने मौत को गले लगाया था।  राज्य सरकार तमिलनाडु के 32 जिलों को सूखा घोषित कर चुकी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक साल 2011 से 2015 तक तमिलनाडु में 2,728 किसानों ने आत्महत्या की।

अगस्त 2016 में जब कर्नाटक ने कावेरी नदी का पानी तमिलनाडु के लिए छोड़ने से इनकार किया, तो तमिलनाडु में जमकर विरोध हुआ। कर्नाटक द्वारा पानी न छोड़े जाने के ऐलान से डेल्टा इलाके में रह रहे किसान मुश्किल में पड़ गए। पानी ना मिलने पर उनके सामने फसल के सूख जाने का खतरा था।

इसके बाद तमिलनाडु के किसानों को कम बारिश की मार झेलनी पड़ी। मॉनसून में अच्छी बारिश ना होना उनके लिए बड़ी परेशानी बन गया। सूखे की मार के कारण तंजावुर, तिरुवरूर, अरियालूर, पेरंबलूर और नागपट्टनम जिलों के कई किसानों ने खुदकुशी कर ली। फसल खराब हो जाने के कारण वे अपना कर्ज नहीं चुका पा रहे थे। इसके बाद से प्रदेश के किसान विरोध प्रदर्शन के लिए सड़क पर उतर आए हैं। वे अपने लिए सूखा राहत फंड की मांग कर रहे हैं।

 

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