पढ़ नहीं पा रहे दस्तावेज, फंसी करोड़ों की जमीनें

tahalka3_1_2लखनऊ। शहर के तमाम मोहल्लों में करोड़ों की नजूल की जमीन पर अवैध कब्जे हैं। जिला प्रशासन रेकॉर्ड होने के बावजूद अपनी जमीनों से कब्जे नहीं हटवा पा रहा है। कारण है रेकॉर्ड का करीब 150 साल पुरानी ‘खत-ए-शिकस्त’ लिपि में होना, जिसके जानकार प्रशासन के पास नहीं हैं। ऐसे में अब ब्योरा जुटाने के लिए अनुवाद करवाने का फैसला लिया गया है।

एडीएम (प्रशासन) राजेश कुमार पाण्डेय के अनुसार 1862 के पहले के खसरा-खतौनी, बंदोबस्त, नक्शा समेत सभी भूलेख ऊर्दू की पुरानी लिपि खत-ए-शिकस्त में हैं। इन्हें कोई समझ नहीं पा रहा, जिसके चलते जमीनों की सही जानकारी मिलने में दिक्कत हो रही है। इन ज़मीनों की कीमत अरबों रुपये आंकी गई है।

यही कारण है कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नजूल की जमीनों की खरीद-फरोख्त की शिकायत मिलने पर भी जांच नहीं हो पाती है। प्रशासन के पास लिपि के जानकार न होने से नजूल की जमीनें धड़ल्ले से खरीदी-बेची जा रही हैं।

ऊर्दू अकादमी ने भी खड़े किए हाथ

लिपि के अनुवाद के लिए जिला प्रशासन ने 19 जुलाई 2016 को उत्तर प्रदेश ऊर्दू अकादमी को पत्र के साथ सारे रेकॉर्ड भेजे थे। अकादमी के सचिव एस. रिजवान ने लिपि को बेहद कठिन बताते हुए जवाब दिया कि स्टाफ में कोई भी अनुवाद करने में सक्षम नहीं है। हालांकि जिला प्रशासन ने किसी अन्य संस्थान से अनुवाद करवाने में मदद के लिए कहा है। इसके साथ ही अनुवाद के लिए नदवा को भी रेकॉर्ड भेजे जाएंगे।
45 रेकॉर्ड हैं सील
86 मोहल्लों के रेकॉर्ड खत-ए-शिकस्त लिपि में हैं। इनमें से 45 मोहल्लों के रेकॉर्ड अलग-अलग कारणों से सील हैं। जानकारों के अनुसार सील रेकॉर्ड्स में दर्ज जमीनों की कीमत ही अरबों में है और हेर-फेर से बचाने के लिए ही इन्हीं सील किया गया है।

 

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