पत्रकारिता छोड़ ब्याह कराने वाले बिचौलिए की भूमिका में आ गए हैं रवीश बाबू…

प्रीति कमल

रवीश कुमार पत्रकारिता का एक जाना-माना नाम है। मैग्सेसे भी जीत चुके हैं। लेकिन अब वे इस प्रोफ़ेशन को छोड़ने का मन बना चुके हैं। कैसे, क्यों और काहे? क्योंकि रवीश कुमार ने जयपुर में आयोजित टॉक जर्नलिज़्म कार्यक्रम में कुछ ऐसी बातें कहीं, जो एक पत्रकार नहीं कह सकता, कभी नहीं कह सकता। इस कार्यक्रम में उन्होंने कई मुद्दों पर बातें की और नसीहतों का अंबार लगा दिया। मध्य प्रदेश कॉन्ग्रेस ने इस कार्यक्रम के 6 मिनट का एक वीडियो अपने ट्विटर हैंडल से शेयर किया। इस वीडियो को देखने के बाद, एक नहीं बल्कि कई सवाल मन में घर कर जाते हैं, जिनके जवाब शायद ही कभी रवीश कुमार भी दे पाएँ।

मैग्सेसे पुरस्कार विजेता पत्रकार रवीश कुमार ने वर्तमान सरकार को घेरते हुए आज की पत्रकारिता के संदर्भ में कहा कि आज का मीडिया आपको अपने पड़ोस के मुसलमान को एक दुश्मन के तौर पर दिखा रहा है। रवीश कुमार, मुसलमानों की जो दयनीय छवि गढ़ने की कोशिश करते दिखे उसकी असलियत जानने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें, और जानें कि क्या वाकई हिन्दुस्तान में मुसलमान डरे हुए हैं।

मुसलमानों के प्रति अपनी वफ़ादारी निभाते हुए उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से हिन्दू समाज पर हमला किया और लड़कियों को नसीहत दी कि उन्हें किस तरह के लड़के से शादी नहीं करनी चाहिए। शायद एक पत्रकार की भूमिका से अब वो उक्ता गए हैं, इसीलिए उन्होंने लव-गुरू बनने का रुख़ किया है।

इस कार्यक्रम में उन्होंने लड़कियों को संबोधित करते हुए कहा कि जो लड़का किसी समाज से नफ़रत करता हो, वो न तो एक अच्छा पति बन सकता है, न अच्छा प्रेमी बन सकता है और न एक अच्छा भाई बन सकता है, ऐसे किसी ‘आईटी सेल’ वाले से शादी न कर लेना। पता चले कि शादी किसी ऐसे से हो जाए जो नफ़रत करता हो तो वो प्रेमी नहीं हो सकता! ये किस लाइन में आ गए आप रवीश भाई साब! पत्रकार से पंडित बन गए आप तो!

रवीश कुमार, लड़कियों को यह बताना भूल गए कि मदरसे में शिक्षा के नाम पर बच्चियों के साथ रेप करने वाले मौलवी कितने ख़तरनाक होते हैं, उनसे बचना चाहिए। उन्होंने यह नहीं बताया कि मदरसे में दवा देने के नाम पर हथियार सप्लाई किए जाते हैं।

अच्छे भाई का हवाला देने वाले रवीश कुमार को कौशांबी की उस घटना के बारे में बताना चाहिए था जिसमें एक 15 साल की बच्ची का गैंगरेप हो जाता है, और वो बच्ची अल्लाह का वास्ता देती दया की भीख़ माँगती है। वो बच्ची गिड़गिड़ाते हुए कहती है कि भैया आप तो मुझे जानते हैं, अल्लाह के लिए मुझे छोड़ दो। बता दूँ कि उस मासूम बच्ची को नाजिक और आदिल ने बहन तो नहीं माना, लेकिन हाँ उन्होंने अपने एक और दोस्त के साथ मिलकर न सिर्फ़ उस बच्ची का सामूहिक बलात्कार किया बल्कि उस दरिंदगी का वीडियो भी बनाया, उसे अपलोड कर वायरल भी किया।

रवीश कुमार, ऐसे भाईयों के बारे में क्या कहेंगे, क्योंकि उनका तो मानना है कि आज का मीडिया पड़ोस में रह रहे मुसलमान को दुश्मन बता रहा है? जबकि सच्चाई यह है कि आज का मीडिया आपको सतर्क कर रहा है कि अपने पड़ोस में रहने वाले शख़्स को भाई कह देने भर से वो आपका भाई नहीं बन जाता बल्कि हो सकता है कि वो आपके ऊपर नज़रे गड़ाए हुए हो और मौक़े की तलाश में हो कि कब वो आपको हानि पहुँचा दे। 

लड़कियों से एक अच्छे पति के बारे में रवीश कुमार ने ज़्यादा कुछ तो नहीं कहा, लेकिन इतना ज़रूर कहा कि वो इस बात का ध्यान रखें कि कहीं वो ‘आईटी सेल’ का न हो। उनके शब्दों को मैं जितना समझ पाई हूँ उसके अनुसार, आईटी सेल से उनका सीधा मतलब दक्षिणपंथी और बीजेपी की विचारधारा को फॉलो करने वाले लड़कों से था।

मेरा सवाल यह है कि क्या ऐसे लड़के अच्छे पति इसलिए साबित नहीं हो सकते क्योंकि वो समाज में धर्म के नाम पर फैली बुराई को देख नहीं पाते और उसे दूर करना अपना धर्म समझते हैं? ऐसे लड़के अत्याचार पर चुप बैठना नहीं जानते और इस बुराई का बीज बोने वालों से सख़्त नफ़रत करते हैं, इसलिए वो अच्छे पति नहीं बन सकते? ऐसे लड़के जो देश को विकास की राह पर देखना चाहते हों और इसके आड़े आने वालों से नफ़रत करते हों, वो अच्छे पति बनने के लायक नहीं, इस पर मुझे यक़ीन नहीं।

शायद रवीश कुमार को पता भी नहीं कि महिलाओं को कितनी छोटी-छोटी बातों के लिए तलाक़ दे दिया जाता है। सब्ज़ी में नमक-मिर्च कम था, तो दे दिया तलाक़; रिक्शा ख़रीदने के लिए ससुराल से पैसा नहीं मिला तो दे दिया तलाक़; बेटी पैदा करने पर घर से निकाला और दे दिया तलाक़; गुल मंजन से दाँत साफ़ करने पर दे दिया तलाक़; शौहर को पतली गर्लफ्रेंड मिल गई तो दे दिया तलाक़; शौहर से सब्ज़ी लाने के लिए 30 रुपए माँगे तो दे दिया तलाक़… उदाहरण कम पड़ जाएँगे रवीश ‘पत्रकार’ बाबू! लेकिन आपको सुनने वाली लड़कियों को आप एक भी ऐसे उदाहरण नहीं गिनाएँगे, यह बात भी पक्की है। क्योंकि आप प से पत्रकार थे, प से पंडित बनने चले लेकिन रहेंगे आप प से प्रोपेगेंडाकार ही!

तलाक देने वाले ऐसे शौहरों के लिए रवीश कुमार के पास है कोई जवाब? अपने कार्यक्रम में लड़कियों को आईटी सेल के लड़कों से बचने की सलाह देने वाले रवीश कुमार को यह भी बताना चाहिए था कि आपके पड़ोस में अगर ऐसा कोई मुस्लिम लड़का हो तो उससे भी बचकर रहना चाहिए। लेकिन उन्होंने नहीं बताया क्योंकि उन्हें तो केवल दक्षिणपंथी विचारधारा वाले लड़कों से परहेज है।

आज के मीडिया को भर-भर कर गाली देने में जुटे रवीश कुमार शायद यह भूल बैठे हैं कि आज वो जो कुछ भी हैं वो इसी मीडिया के दम पर हैं। समाज में लोग उन्हें जानते हैं तो इसी मीडिया की वजह से। आज जिस मीडिया को वो कोसते नहीं थकते, कभी उसी मीडिया के वो भी मुरीद हुआ करते थे और लोगों को ज्ञान बघारने के लिए उसी माध्यम का सहारा लेते थे। अफसोस कि अब तक ले रहे हैं!

रवीश कुमार ने स्वामी चिन्मयानंद मामले का ज़िक्र किया और कहा कि सरकार इस मामले पर चुप है, जबकि सच्चाई यह है कि यह मुद्दा सभी जगह छाया हुआ है और इस पर जितनी तेज़ी के साथ कार्रवाई होनी चाहिए थी, वो हो रही है। लेकिन रवीश का असली दर्द आज़म ख़ान के ख़िलाफ़ बकरी चोरी के आरोप को लेकर है। उन्हें कष्ट है तो इस बात का कि भूमाफ़िया, भैंस-बकरी चोर, किताबों की चोरी करने वाले, महिला वार्ड में जबरन घुसकर महिला के साथ दुर्व्यवहार करने वाले और सदन की अध्यक्षता करने वाली रमा देवी पर भद्दा कॉमेंट और जया प्रदा के अंतर्वस्त्रों पर अभद्र टिप्पणी करने वाले आज़म ख़ान के कारनामों पर घंटो बहस क्यों की जाती है?

ज़ाहिर सी बात है जब यह बातें सामने आती हैं तो उनके चहेते नेताओं की शर्मनाक़ हरक़ते भी सामने आती हैं, ऐसे में वो लोगों को अख़बार पढ़ने और टीवी न देखने की सलाह नहीं देंगे तो और क्या करेंगे। इस पर सवाल उठता है कि आख़िर, रवीश कुमार को आज़म ख़ान से ऐसा भी क्या लगाव है जो वो उनके कारनामों पर होने वाली बहसों से इतने नाराज़ हैं?  

जयपुर में आयोजित टॉक जर्नलिज़्म कार्यक्रम में रवीश कुमार ने जिन भी मुद्दों पर चर्चा की उसका न तो कोई आधार था और न ही सच्चाई से उसका कोई लेना-देना था। चूँकि मीडिया की बदौलत पत्रकारिता जगत में वो एक नामी चेहरा हैं, इसलिए उन्हें सुनने और देखने के लिए लोग इकट्ठा हो जाते हैं। लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि उनकी कही हर बात पर आँख मूँदकर भरोसा कर लेना चाहिए।

फ़िलहाल, वो वर्तमान सरकार से ख़ासे नाराज़ हैं इसलिए उनका यह दर्द अक्सर ऐसे मौक़ों पर छलक ही जाता है। मेरी सलाह है कि उनकी फ़िजूल की बातों को गंभीरता से लेने की बजाए, हमें अपने आँख-कान खुले रखने होंगे, जिससे ऐसी मानसिकता के भ्रमजाल में फँसने से बचा जा सके।

 

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