बाबरी विध्वंस केस: आडवाणी और जोशी के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी पर असर नहीं

नई दिल्ली। बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत अन्य बीजेपी नेताओं के खिलाफ साजिश के आरोपों के तहत मुकदमा चलेगा। लखनऊ स्थित स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने इनके खिलाफ बाबरी गिराने की साजिश और अन्य धाराओं के तहत आरोप तय करने को कहा है। अब इस तरह मामले में ट्रायल चलेगा और इन्हें ट्रायल फेस करना होगा। पहले से इनके खिलाफ भड़काऊ भाषण का मामला पेंडिंग था, लेकिन इन सबके बीच एक सवाल अहम है कि क्या इस फैसले से इनके राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी पर विराम लग गया है या नहीं।

कानूनी जानकारों की मानें तो राष्ट्रपति पद की उम्मदवारी में इस फैसले से कोई कानूनी अड़चन नहीं है, लेकिन मामला अब सिर्फ नैतिकता का है। नैतिकता का पैमाना हर नेता के लिए अलग-अलग है, लेकिन कानून और संविधान में कहीं भी आरोप लगने मात्र से उम्मीदवारी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

बीजेपी के सीनियर नेताओं लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के नामों की चर्चा राष्ट्रपति पद के लिए होती रही है और इस बारे में अटकलों का बाजार गर्म रहा है। हालांकि, इस फैसले का इस मसले पर क्या असर होगा यह सवाल अहम है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि इन नेताओं के खिलाफ पहले से भड़काऊ भाषण का मामला पेंडिंग था और अब सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी गिराए जाने की साजिश के आरोप में भी केस चलाने को कहा है तो ऐसे में यह मामला सिर्फ नैतिकता का है। जहां तक संविधान और कानून का सवाल है तो कानून में कहीं भी ऐसा नहीं है कि जिनके खिलाफ कोई क्रिमिनल केस चल रहा हो, वह चुनाव नहीं लड़ सकता।

वैसे भी संविधान के बेसिक रूल्स ये हैं कि हर व्यक्ति कानून के सामने तब तक निर्दोष है, जब तक कि वह दोषी करार नहीं दिया जाता। ऐसे में इन नेताओं के खिलाफ जो भी आरोप हैं, वे अभी ट्रायल का विषय हैं और ट्रायल के बाद यह तय होगा कि ये दोषी हैं या नहीं। ऐसे में कानूनी तौर पर चुनाव लड़ने को लेकर कोई रोक नहीं है।

मामला नैतिकता का है
सुप्रीम कोर्ट के वकील और पूर्व अडिशनल सलिसिटर जनरल सिद्धार्थ लूथरा बताते हैं कि मामले को अब सिर्फ नैतिकता के पैमाने पर देखना होगा। किसी के खिलाफ फौजदारी केस अगर पेंडिंग है तो चुनाव लड़ने पर रोक नहीं है। इतना ही नहीं, अगर कोई राष्ट्रपति या राज्यपाल चुन लिया जाता है तो उसे संविधान के अनुच्छेद-361 के तहत छूट मिली है यानी उसके खिलाफ कार्रवाई भी नहीं हो सकती। यही कारण है कि कल्याण सिंह के खिलाफ मामला होने के बावजूद उनके खिलाफ केस नहीं चलेगा क्योंकि वह राज्यपाल के पद पर हैं। अगर इस दौरान कोई राष्ट्रपति चुन लिया जाता है तो भी उसके खिलाफ चल रहा ट्रायल रुक जाएगा। हाई कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह बताते हैं कि यहां सवाल सिर्फ नैतिकता का है। उन्होंने कहा कि जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत दो साल या उससे ज्यादा सजा के मामले में चुनाव लड़ने पर छह साल के लिए बैन है, लेकिन अगर कोई शख्स दहेज या फिर इम-मॉरल ट्रैफिकिंग जैसे मामले में एक महीने की सजा भी पाता हो तो वह कैसे चुनाव लड़ सकता है। उन्होंने कहा कि यह मामला भी थोड़ा अलग है।

भारत लोकतांत्रित व सेक्युलर देश है। यहां सभी धर्म और संप्रदाय समान हैं। अगर किसी के खिलाफ भड़काऊ भाषण का मामला हो या फिर बाबरी मस्जिद को गिराए जाने की साजिश का मामला हो तो ये सेक्युलरिज्म के विपरीत बात है। साजिश का चार्ज लगने के बाद ये लोग अन्य लोगों के ऐक्ट और कंडक्ट के लिए भी जिम्मेदार हो जाते हैं। ऐसे में दायरा व्यापक हो जाता है। हालांकि मामला यहां नैतिकता की परिधि में ही देखा जा सकता है।

सवाल राष्ट्रपति पद की गरिमा का है
ज्ञानंत सिंह बताते हैं कि सवाल राष्ट्रपति पद के चुनाव का है और यहां नैतिककता का सवाल अहम है क्योंकि ऐसे पद के लिए उन लोगों को चुनाव नहीं लड़ना चाहिए, जिनके खिलाफ दो समुदायों में नफरत फैलाने वाले भड़काऊ भाषण व बाबरी गिराने की साजिश का आरोप हो। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति पद की गरिमा है और इन आरोपों के साथ उस पद के लिए चुनाव लड़ना नैतिकता के खिलाफ है। हालांकि कानूनी तौर पर कोई अड़चन नहीं है क्योंकि कानून में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है कि जिसके खिलाफ मामला चल रहा हो वह चुनाव नहीं लड़ सकता।

सुप्रीम कोर्ट के ऐडवोकेट एमएल लाहोटी बताते हैं कि ये पूरा मामला अब नैतिकता का ही है। मामले में शिकायती कोई व्यक्ति नहीं है बल्कि सीबीआई की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश पारित किया है और ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने जब साजिश के आरोपों के मामले में भी ट्रायल चलाने की बात कही है तो अब राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के कयास पर विराम लग जाना चाहिए।

हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस आर एस सोढ़ी कहते हैं कि मामला नैतिकता का ही है। कल्याण सिंह के खिलाफ नई धाराएं लगाई गई है उनके खिलाफ पहले से भड़काऊ भाषण का केस भी पेंडिंग था लेकिन फिर भी वह राज्यपाल बने, मामला पब्लिक लाइफ से जुड़ा हुआ है ऐसे में इम्युनिटी की आड़ में ट्रायल फेस करने से नहीं बचना चाहिए।

 

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