बिहार में बीजेपी को मिलेंगी सबसे ज्यादा सीटें: योगेंद्र यादव
नई दिल्ली/पटना। बिहार चुनाव में किस पार्टी की जीत होगी, ये सवाल औरों को नतीजे आने तक शायद उलझा कर रखे, लेकिन योगेंद्र यादव को यकीन है कि उनके पास इस गुत्थी का जवाब है। योगेंद्र को लगता है कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में जहां बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी, वहीं नीतीश कुमार को बहुत कम सीटें हासिल हो सकेंगी।
बिहार चुनाव में किसका होगा ज्यादा फायदा
योगेंद्र ने कहा कि एक तरह से यह स्थिति बिहार के लिए सही नहीं है क्योंकि इससे राज्य में पिछले 2 दशक के दौरान सामाजिक न्याय के आधार पर हुई राजनीति काफी पीछे चली जाएगी।
1990 के शुरुआती समय में बिहार की राजनीति का सामंती चरित्र काफी चरमरा गया। बीजेपी के वोट बैंक में 80 फीसद लोग अगड़ा समुदाय के हैं, जिन्हें दलितों और निम्म आर्थिक वर्ग के ओबीसी समूह का भी समर्थन हासिल है। 1950 के दौर में यही स्थिति कांग्रेस की थी, लेकिन बिहार में यह तस्वीर एक तरह से उलटी है। बीजेपी के उभर कर सामने आने से सामाजिक न्याय की राजनीति से हुए फायदे पीछे चले जाएंगे। योगेंद्र ने कहा कि इस हालत के जिम्मेदार नीतीश कुमार और लालू यादव हैं।
क्या बिहार में सामाजिक न्याय की राजनीति का दौर बीत गया है?
योगेंद्र के मुताबिक, मौजूदा दौर में सामाजिक न्याय एक तरह से एक विशेष जाति का ट्रेडमार्क हो गई है। उत्तरप्रदेश में होने वाली ज्यादातर नियुक्तियां एक विशेष वर्ग के खाते में जा रही हैं। योगेंद्र ने कहा कि सामाजिक न्याय के नाम पर हो रही राजनीति के कारण असल सामाजिक न्याय के मुद्दे को काफी नुकसान पहुंचा है।
योगेंद्र ने कहा कि जब भी राजनीति में एक शक्ति के खिलाफ सभी ताकतें एकजुट होकर गुटबंदी करती हैं, तब उस अकेली ताकत के जीतने की संभावनाएं मजबूत हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि 70 के दशक में भी यही हुआ था। उन्होंने कहा कि सभी ताकतें इंदिरा गांधी को हराने के लिए एकजुट हो गईं, लेकिन इंदिरा और ज्यादा मजबूत होकर जीतीं।
मोदी का करिश्मा?
योगेंद्र ने कहा कि वर्तमान समय में लालू-नीतीश का गठबंधन एक होकर जातिगत मुद्दों और समीकरणों को उछाल रहा है। ऐसे में बीजेपी के पास सरकार,प्रशासन और बिहार के भविष्य के बारे में बात करने का मौका है। बीजेपी के पास हालांकि इस बारे में बात करने के लिए कोई भी ठोस आधार व ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है।
योगेंद्र का कहना है कि इन स्थितियों में बिहार में भले कोई भी पार्टी जीते, लेकिन बिहार एक राज्य के तौर पर हारेगा। उन्होंने कहा कि इसकी वजह यह है कि मुकाबला में एक तरफ तो नंगा बहुसंख्यकवाद है और दूसरी तरफ जाति समीकरणों के आधार पर गठित ऐसा गठबंधन है जो अपने मकसद से ही भटक गया है।
यह पूछे जाने पर कि क्या लोकसभा चुनाव के समय से ही बीजेपी बिहार में अपनी पकड़ बनाने में जुटी है, योगेंद्र ने इस पर सहमति जताई। उन्होंने सवाल उठाया कि जहां बीजेपी अपनी पकड़ मजबूत करने में लगी थी, वहीं बीजेपी के विरोधी क्या कर रहे थे? उन्होंने कहा विरोधी केवल सभी ताकतों को बीजेपी के खिलाफ जमा करने में जुटे थे। उन्होंने कहा कि इस तरह की राजनीति काफी नकारात्मक किस्म की है। योगेंद्र का मत है कि इस तरह की राजनीति देश में धर्मनिरपेक्ष राजनीति के मौजूदा दिवालियेपन को दिखाती है।
योगेंद्र से जब यह पूछा गया कि क्या नीतीश का समर्थन कर अरविंद केजरीवाल ने अपने भ्रष्टाचार विरोधी रुख को धोखा दिया है, उन्होंने कहा कि यह राजनीति में जल्दबाजी के दौर को दिखाती है। उन्होंने कहा कि इस समय सभी किसी भी कीमत पर ताकत हासिल करना चाहते हैं। योगेंद्र ने कहा कि भले ही केजरीवाल और लालू की कोई साझा तस्वीर ना हो, लेकिन लोगों में यह संदेश गया है कि केजरीवाल लालू का समर्थन कर रहे हैं।
इस सवाल पर कि जिस तरह कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय को वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया वैसे ही क्या मोती की जीत हिंदू-मुस्लिम खाई को बढ़ाएगी, योगेंद्र का जवाब था, ‘धर्मनिरपेक्षता को कांग्रेस और आरजेडी ने बिहार में अल्पसंख्यकों को डराने और अपने फायदे के तौर पर इस्तेमाल किया। इस तरह की राजनीति का मकसद था कि उन्हें नौकरी के बारे में मत सोचने दो, उनसे बस यह कहो कि इससे दंगों में तुम सुरक्षित रहोगे। अल्पसंख्यकों ने भी कुछ समय तक इसे हाथोंहाथ लिया, लेकिन अब वे भी सच्चाई जान चुके हैं।’
नीतीश के बारे में पूछे जाने पर योगेंद्र का जवाब था, ‘उनकी हालत बहुत खराब है। लोकसभा चुनाव में मिली एक जीत से उन्होंने वे सारे सिद्धांत पीछे छोड़ दिए जिसके लिए कभी वह खड़े हुए थे।’
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