मूंछ रखने पर दलित पर हमले की खबर फर्जी निकली

हिंदू समाज को जातियों में बांटने की साजिश का एक बार फिर से भंडाफोड़ हुआ है। गुजरात के गांधीनगर में एक दलित युवक को मूंछ रखने पर पीटने की खबर फर्जी निकली है। खबर थी कि गांधीनगर के लिंबोदरा गांव में कानून की पढ़ाई कर रहे दलित जाति के छात्र दिगंत महेरिया की गांव के ही ऊंची जाति के लोगों ने पिटाई कर दी। दलित छात्र ने पुलिस को दी अपनी शिकायत में लिखा था कि “मूंछ रखने के कारण भरत सिंह वाघेला नाम के एक शख्स ने मेरी पिटाई की।” दलित छात्र ने यह भी आरोप लगाया कि उससे कहा गया कि मूंछ रखने का अधिकार सिर्फ राजपूतों को है। चूंकि केस दलित उत्पीड़न की धाराओं में दर्ज हुआ लिहाजा पुलिस ने आरोपी लड़के को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन पुलिस की जांच में सच्चाई सामने आ गई। इससे पहले इसी लड़के के एक रिश्तेदार पीयूष परमार ने भी मूंछ रखने पर पिटाई का आरोप लगाया था।

जांच के मुताबिक कुणाल महेरिया ने मीडिया में आने के लिए ये सारा नाटक किया था। उसने अपने साथियों के साथ मिलकर सारा प्लान रचा था। मामला सामने आने पर पुलिस ने शिकायत दर्ज करके जांच शुरू कर दी। शिकायत में दलित छात्र ने दावा किया था कि वो शाम को करीब साढ़े चार बजे परीक्षा देकर घर लौट रहा था। रास्ते में दो बाइक सवार हमलावर पीछे से आए और उसकी पीठ पर चाकू से वार किया। जांच में सच्चाई सामने आ गई। शिकायत करने वाले लड़के ने अपनी गलती मानी है और बताया है कि उसने ये सब इलाके में सक्रिय एक एनजीओ के लोगों की सलाह पर किया था। रास्ते में लगे कुछ सीसीटीवी कैमरों की जांच की गई, जिनमें न तो दलित छात्र और न ही दोनों आरोपी लड़के दिखे। जिस जगह पर घटना होने का दावा किया गया था, वहीं पास में एक पान की दुकान है। उसने भी किसी लड़ाई झगड़े या हमले की घटना से इनकार किया। आखिरकार पूछताछ में दलित छात्र ने सच्चाई कबूल ली और माना कि उसने झूठी कहानी गढ़ी थी। उसने बताया कि उसने अपने दो दोस्तों के साथ मिलकर शेविंग ब्लेड से अपनी पीठ पर खुद ही एक कट लगवाया था। ताकि वो खून दिखाकर खुद पर हमले की शिकायत कर सके। उसने बताया कि एक स्थानीय एनजीओ के लोग उससे कई बार ऐसा करने को कह चुके थे। पुलिस लड़के के बयान के आधार पर एनजीओ की भूमिका की जांच कर रही है। जिसके बाद ही किसी कार्रवाई का फैसला किया जाएगा।

मीडिया ने झूठ फैलाने में मदद की

गुजरात और हिंदुओं को बदनाम करने की सुपारी लिए बैठी दिल्ली की मीडिया ने इस झूठी खबर को हाथों हाथ लिया। बिना दावों की पुष्टि या पुलिस की जांच पूरी होने का इंतजार किए इस मामले पर संपादकीय लिख डाले गए। कई चैनलों औऱ अखबारों ने बिना आरोपी या पुलिस का पक्ष जाने यह खबर प्रकाशित की। शुरुआत टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस ने की। इसके बाद तमाम चैनलों औऱ अखबारों ने फर्जी खबरों की झड़ी लगा दी। सुपारी पत्रकार रवीश कुमार ने इस मामले को सच्चा साबित करने के लिए फेसबुक पर एक संपादकीय भी लिख मारा। फर्जी खबरें छापने वाली एक दर्जन से ज्यादा बदनाम वेबसाइटों जैसे कि द वायर, सत्याग्रह, बीबीसी, क्विंट और आजतक ने इस मामले में बिना जांच-पड़ताल के अंग्रेजी अखबारों की खबर को ही छाप दिया। अब जबकि सच्चाई सामने आ गई है किसी ने झूठी खबर छापने और नफरत फैलाने के लिए माफी मांगने की जरूरत भी नहीं समझी। स्थानीय पत्रकारों ने सही खबर के बारे में ट्वीट भी किए हैं।

 

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