राफेल में लगी इस खास मिसाइल से चीन को पछाड़ देगा भारत, सौदे पर अंतिम मुहर जल्द

meteor-missile-with-rafaleनई दिल्ली: 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए बहुप्रतीक्षित अनुबंध पर शीघ्र मुहर लगाए जाने की संभावना है क्योंकि दोनों देशों ने सौदे के विवरणों को अंतिम रूप दे दिया है. सरकारी सूत्रों ने बताया कि लागत, ऑफसेट और सेवा ब्योरे को अंतिम रूप दिया जा चुका है और सौदे के लिए अंतर सरकारी समझौते (आईजीए) पर काम किया जा रहा है. फ्रांस से एक टीम पहले ही अपने अनुवादकों के साथ दिल्ली में डेरा डाले है और वो अनुबंध का अपने भारतीय समकक्षों के साथ अध्ययन कर रहे हैं. ये दस्तावेज हजारों पन्नों में हैं.

विश्व की आधुनिक मिसाइल मेटेओर हासिल करेगा भारत
इस सौदे के संबंध में पूर्व में हुए खुलासे के अलावा एक अन्य जानकारी यह है कि भारत इसके साथ ही हवा से हवा में मार करने वाली विश्व की आधुनिक मिसाइल मेटेओर हासिल कर लेगा. राफेल लड़ाकू विमान मेटेओर से सुसज्जित होगा जो दुश्मनों के एयरक्राफ्ट और 100 किमी दूर स्थिति क्रूज मिसाइल को ध्वस्त कर सकता है. इस मिसाइल को अपने बेड़े में शामिल कर लेने से भारत की स्थिति दक्षिण एशिया में और मजबूत हो जाएगी. पाकिस्तान और यहां तक कि चीन के पास भी इस श्रेणी की मिसाइल नहीं है.

मेटेओर के समान मात्र एक अन्य मिसाइल एआईएम-120डी है जो कि हवा से हवा में मार करने वाली अमेरिका द्वारा निर्मित मध्यम श्रेणी की मिसाइल है जिसे 100 किमी से अधिक दूर के निशाने को भेदने के लिए बनाया गया है. हालांकि जानकारों का मानना है कि मेटेओर अपने रैमजेट इंजन के चलते अधिक घातक मिसाइल है.

 उच्च तकनीकी के हथियारों की प्रणाली के बारे में जानकारी देने वाली वेबसाइट वॉर इस बोरिंग के अनुसार, “पारंपरिक ठोस-ईंधन बूस्टर लॉन्च के बाद हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के समान मेटेओर को एक्सेलरेट करता है लेकिन हवा में यह मिसाइल एक पैराशूट को खोलती है जिससे हवा इंजन में समा जाती है. इसकी बदौलत ऑक्सीजन गर्म हो जाती है और यह सुपरसोनिक मिसाइल ध्वनि से चार गुना तेजी से आगे बढ़ती है.”

इस मिसाइल का निर्माण करने वाले यूरोपीय फर्म एमबीडीए के इंजीनियरों ने कथित तौर पर दावा किया है मेटेओर में “नो एस्केप जोन” है जो कि एआईएम-120डी एएमआरएएएम मिसाइल से तीन गुना बड़ा है. वॉर इस बोरिंग के अनुसार, “नो एस्केप ज़ोन हवाई-युद्ध से जुड़ा एक टर्म है जिसका इस्तेमाल मिसाइल की क्षमता द्वारा निर्धारित किए गए एक शंकुआकार क्षेत्र के लिए किया जाता है, जहां से लक्षित एयरक्रॉफ्ट निशाने से बच नहीं सकता.”

यह सौदा करीब 7.8 अरब यूरो यानी 58 हज़ार 646 करोड़ रुपये का था. यानी भारत को एक राफेल लड़ाकू विमान एक हज़ार छह सौ 28 करोड़ रुपयों का पड़ता, लेकिन अब ये 1504 करोड़ रुपयों का पड़ेगा. वैसे सरकार ने आधिकारिक तौर पर राफेल लड़ाकू विमानों के दामों का खुलासा नही किया है. दामों के बारे के सौदे पर दोनों देशों के बीच फाइनल हस्ताक्षर होने के बाद ही खुलासा होगा. फिलहाल इंटर-गवर्नमेंट कॉन्ट्रैक्ट के टर्म्स फाइनल किए जा रहे हैं. रक्षा मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो राफेल सौदे पर हर हाल में अगले दो से तीन हफ़्तों में हस्ताक्षर हो जाएंगे.

सूत्रों के मुताबिक राफेल के जो दाम फ्रांस की डसाल्ट एविएशन कंपनी ने दिए थे उससे 4500 करोड़ रुपयों कम में ये सौदा तय हुआ है. यानी सौदेबाजी में भारत राफेल के दामों को 4500 करोड़ कम करवाने में सफल हुआ है. इंटर-गवर्नमेंट कॉन्ट्रैक्ट के टर्म्स फाइनल होने के बाद इसे कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्युरिटी को भेजा जाएगा जो अंतिम फैसला करेगी.

 

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