रोहिंग्या घुसपैठियों के इन समर्थकों को पहचान लीजिए!


1. कांग्रेस पार्टी
दरअसल देश की दूसरी समस्याओं की तरह रोहिंग्या संकट के जड़ में भी कांग्रेस ही है। 2012 में जब म्यांमार में धार्मिक हिंसा शुरू हुई थी तभी कांग्रेस ने इसमें अपना फायदा देखना शुरू कर दिया था। उस वक्त बंगाल और दूसरी उत्तर-पूर्वी राज्यों से घुसने वाले रोहिंग्याओं को एक रणनीति के तहत जम्मू पहुंचाया गया था। इस सवाल का जवाब मिलना आज भी बाकी है कि म्यांमार की तरफ से भारत में घुसने के बाद भूखे-नंगे रोहिंग्या मुसलमान सीधे जम्मू कैसे पहुंचे? दरअसल तब जम्मू कश्मीर में उमर अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस की मिलीजुली सरकार थी। कश्मीर में भले ही आतंकवाद है, लेकिन जम्मू लगभग पूरी तरह शांत है। कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार ने इन लोगों को जम्मू में लाकर बसाना शुरू कर दिया। शुरू में किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन जब मस्जिदें बन गईं, लाउडस्पीकरों पर नमाज पढ़ी जाने लगी और आसपास के इलाके में चोरी और लूट की घटनाएं शुरू हुईं तो लोगों का ध्यान गया। 2014 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद ये सिलसिला बंद हुआ। माना जाता है कि कश्मीर घाटी की तरह जम्मू को भी मुस्लिम बहुल बनाने की कोशिश के तहत ऐसा किया गया था। मीडिया के जरिए ऐसी आशंकाएं जताई गई थीं कि जम्मू में बस रही रोहिंग्या आबादी आगे चलकर लद्दाख के बौद्धों पर हमले शुरू कर सकती है। क्योंकि वो अंदर ही अंदर म्यांमार का बदला लेने को बेताब हैं। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल और अश्विनी कुमार रोहिंग्या घुसपैठियों की वकालत कर रहे हैं। पार्टी कह चुकी है कि सभी रोहिंग्याओं से एक जैसा बर्ताव करना ठीक नहीं है। यानी जो आतंकवादी नहीं हैं उन्हें भारत में बसाया जाए। सवाल ये कि कोई कैसे जानेगा कि कौन आतंकवादी नहीं है। साथ ही रोहिंग्या महिलाओं में बच्चे पैदा करने की स्पीड को देखते हुए इस बात की क्या गारंटी है कि आगे चलकर वो देश के लिए खतरा नहीं बन जाएंगे?
2. ममता बनर्जी
रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में घुसाने में सबसे बड़ा किरदार ममता बनर्जी का माना जाता रहा है। आरोप है कि बंगाल में बीते 3-4 साल में बड़ी संख्या में रोहिंग्या लोगों को आधार कार्ड दिए गए। ममता बनर्जी सरकार न सिर्फ उनको संरक्षण दे रही है, बल्कि उनके पक्ष में उग्र प्रदर्शनों को भी हवा दे रही है। इनमें तृणमूल के नेता खुलकर हिस्सा ले रहे हैं। माना जाता है कि सबसे ज्यादा संख्या में अवैध रोहिंग्या घुसपैठिए बंगाल में ही रह रहे हैं। इनमें से ज्यादातर को सरकारी पहचान पत्र भी दिए जा चुके हैं। सीएम ममता बनर्जी खुलकर रोहिंग्या मुसलमानों का समर्थन कर चुकी हैं। उन्होंने अवैध घुसपैठियों को वापस भेजे जाने का भी विरोध किया है।
3. अरविंद केजरीवाल
जम्मू और बंगाल के अलावा जिस जगह पर सबसे ज्यादा रोहिंग्या घुसपैठिए रह रहे हैं वो दिल्ली है। यहां पर संयुक्त राष्ट्र की तरफ से खोला गया एक शरणार्थी शिविर है। दिल्ली में मुस्लिम वोटरों को खुश करने की नीयत से केजरीवाल इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। हालांकि पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने बताया कि केजरीवाल आम आदमी पार्टी के विदेश विभाग के प्रमुख खालिद हुसैन के जरिए रोहिंग्या घुसपैठियों के संपर्क में हैं। खालिद हुसैन खाड़ी के देश कतर में रहता है और वहां से वो रोहिंग्या मुसलमानों के पक्ष में अभियान चला रहा है।
जून में मस्जिद टूटने की झूठी खबरें फैलाकर दंगो की कोशिश और अब पूरे भारत को कश्मीर बनाने की धमकी -senior man in AAP foreign team obviously pic.twitter.com/NzIZqRFTOp
— Kapil Mishra (@KapilMishraAAP) September 12, 2017
केजरीवाल ने मुस्लिम इलाकों के अपने विधायकों जैसे अमानुल्ला खान और अलका लांबा को रोहिंग्या के मसले पर बोलने की छूट दे रखी है। अलका लांबा ने तो रोहिंग्या घुसपैठियों के बचाव में बाकायदा एक वीडियो भी जारी किया है।
4. असदुद्दीन ओवैसी
एआईएमआईएम के नेता और आधुनिक जिन्ना कहे जाने वाले असदुद्दीन ओवैसी तो इस मामले में खुलकर विचार जता रहे हैं। ओवैसी आतंकवादियों और लगभग सभी देश विरोधी ताकतों का समर्थन करते रहे हैं, लिहाजा यह पक्का ही था कि वो रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में बसाने की वकालत करेंगे। ओवैसी की दलील है कि भारत जब तस्लीमा नसरीन को शरण दे सकता है तो रोहिंग्या मुसलमानों को क्यों नहीं? इसी तरह वो तिब्बतियों को भारत में शरण दिए जाने का भी मुद्दा उठा रहे हैं। हैदराबाद में ओवैसी की पार्टी इस मसले पर खुलकर राजनीति कर रही है। पुराने हैदराबाद में कई रोहिंग्या समर्थक प्रदर्शन हुए हैं, जिनके पीछे ओवैसी की पार्टी का हाथ रहा है।
5. वामपंथी पार्टियां
रोहिंग्या समस्या में लेफ्ट पार्टियों की भूमिका हमेशा से शक के दायरे में रही है। रोहिंग्याओं के पक्ष में अभियान चलाने में वामपंथी दल काफी वक्त से सक्रिय हैं। इस मामले में चल रही कानूनी लड़ाई में भी लेफ्ट पार्टियों के नेता खुलकर हिस्सा ले रही हैं। सीपीएम कह चुकी है कि रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में ही बसाया जाना चाहिए। वामपंथी संगठनों से जुड़े तमाम पत्रकार और एनडीटीवी जैसे चैनल तो खुलकर मैदान में हैं और रोहिंग्या समर्थन में अभियान चला रहे हैं।
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