रोहिंग्या मुस्लिमों के मामले में सरकार सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ, कहा- सरकार के मामले में टांग ना अड़ाये सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। ये साफ़ हो चुका है कि सुप्रीम कोर्ट रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस म्यांमार नहीं भेजना चाहता. इसके लिए कल वो केंद्र सरकार से साफ़ कह चुका है कि जब तक अदालती कार्यवाही चल रही है, तब तक रोहिंग्यों को वापस ना भेजा जाए. अब दसियों सालों तक कोर्ट में मामला लटकाया जाएगा और तब तक देश की जनता के टैक्स के पैसों से रोहिंग्यों को खाना खिलाया जाएगा. मगर अब खबर आ रही है कि सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ मोदी सरकार गुस्से में है.

सरकार के मामले में टांग ना अड़ाये सुप्रीम कोर्ट

केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शुक्रवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट अवैध घुसपैठियों के मामले में अपनी टांग ना अड़ाये और इसका फैसला भारत सरकार को ही करने दे. केंद्रीय गृह मंत्रालय के सलाहकार अशोक प्रसाद ने कहा कि देश में जनसांख्यिकीय परिवर्तन और ऐसे प्रशासनिक और कूटनीतिक कारकों पर फैसला लेने का काम सरकार को करने देना चाहिए. रोहिंग्या मुस्लिम देश के लिए ख़तरा हैं और उन्हें हर हाल में निकाला जाएगा.

बता दें कि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच रोहिंग्यों को देश से ना निकालने का फैसला करीब-करीब सुनाने ही वाला था, मगर सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट का कडा विरोध किया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा किसी भी आदेश का भारत सरकार पर अंतर्राष्ट्रीय असर पड़ेगा.

अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पीएम मोदी को झुकाना चाहता है कोर्ट

आइये आपको बताते है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट में चल क्या रहा है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट कुछ ख़ास वजहों से रोहिंग्या मुस्लिमों को भारत से नहीं निकालना चाहता. खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट कह रही हैं कि रोहिंग्या आतंकी संगठनों के प्रभाव में हैं, इसके बावजूद कोर्ट मानवता की आड़ में उन्हें देश में ही बसाये जाने के पक्ष में है.

यूएन से लेकर कई विदेशी एजेंसियां भी रोहिंग्यों को भारत से ना निकालने पर जोर दे रही हैं, हालांकि मोदी सरकार ने अपना रुख कडा किया हुआ है. सुप्रीम कोर्ट अच्छी तरह जानता है कि यदि उसने रोहिंग्यों को ना निकालने का फरमान जारी कर दिया, तो मोदी सरकार पर रोहिंग्यों को रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ जाएगा और पीएम मोदी के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी.

रोहिंग्यों की याचिका ही गैर-कानूनी है

देश की न्यायपालिका निष्पक्ष फैसले करती है, यदि आप भी ऐसा सोचते हैं तो आपकी ये ग़लतफ़हमी अभी दूर हो जायेगी. दरअसल रोहिंग्या मुस्लिमों की ओर से भारत के संविधान के अनुछेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गयी है, कायदे से ये याचिका तुरंत रद्द की जानी चाहिए थी क्योंकि अनुछेद 32 देश के नागरिकों के लिए है, ना कि अवैध घुसपैठियों के लिए.

इसके बावजूद ना केवल सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली, बल्कि उस पर सुनवाई करते हुए रोहिंग्यों के पक्ष में फैसला तक सुनाने पर उतारू थे. हालांकि फैसला अगली सुनवाई तक के लिए टाल दिया गया है, मगर साफ़ है कि सुप्रीम कोर्ट फैसला रोहिंग्यों के पक्ष में ही सुनाएगा.

मानवता वगैरहा कि बातें करना तो सब ढोंग है, अगर रत्ती भर मानवता होती इन जजों में तो कश्मीरी पंडित एक दशक से भी अधिक वक़्त से अपने ही राज्य से निर्वासित ना घूम रहे होते. कश्मीर में सेना के जवानों पर पत्थर फेकने वालों पर पेलेट गन चलाने पर रोक ना लगाई गयी होती. दरअसल अंतर्राष्ट्रीय दबाव के सामने भारत की न्यायपालिका कैसे घुटने टेकती है, ये बात साफ़ हो चुकी है.

 

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