लाल बहादुर शास्त्री- कुछ बातें जो हम नही जानते (लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर विशेष )

lal-bahadur-shastriशास्त्रीजी के बारेमें हम सब बचपन से बहुतसी बातें सुनते आये हैं । कुछ बाते हैं जो कभी सुनाई नही गयी है या छुपा ली गई है । भारत के सब प्रधानमांत्री में वो अलग ही थे । उनका जीनेका तरिका आम आदमी जैसा ही था । वो मंत्री बने तो सरकारी वाहन तो मिला था पर अपने निजी काम के समय उस वाहन का उपयोग नही करते थे ।

एक दिन ऐसे ही अपने काम के लिए घोडागाडीमें बैठ के गये थे । जब वो उतरे तो घोडागाडीवाले ने दो रुपया मांगा । शास्त्री को मालुम था डेढ रुपया होता है तो आठ आना के लिए उलज पडे । दोनों के बीच चलती बहस को देख कर कुछ लोग इकठ्ठे हो गये । लोगों ने पहचान लिया, कोइ बोला “ये तो लाल बहादूर शास्त्री है” । घोडागाडीवाला शरमा गया, शास्त्री के पैर पड गया, पैसे लेने से इन्कार करने लगा । शास्त्री डेढ रूपिया दे के चले गये ।

ये दो किस्से है जो इन्टरनेट जगत में बहुत सी जगह पढने को मिलते हैं ।

किसी गाँव में रहने वाला एक छोटा लड़का अपने दोस्तों के साथ गंगा नदी के पार मेला देखने गया। शाम को वापस लौटते समय जब सभी दोस्त नदी किनारे पहुंचे तो लड़के ने नाव के किराये के लिए जेब में हाथ डाला। जेब में एक पाई भी नहीं थी। लड़का वहीं ठहर गया। उसने अपने दोस्तों से कहा कि वह और थोड़ी देर मेला देखेगा। वह नहीं चाहता था कि उसे अपने दोस्तों से नाव का किराया लेना पड़े। उसका स्वाभिमान उसे इसकी अनुमति नहीं दे रहा था। उसके दोस्त नाव में बैठकर नदी पार चले गए। जब उनकी नाव आँखों से ओझल हो गई तब लड़के ने अपने कपड़े उतारकर उन्हें सर पर लपेट लिया और नदी में उतर गया। उस समय नदी उफान पर थी। बड़े-से-बड़ा तैराक भी आधे मील चौड़े पाट को पार करने की हिम्मत नहीं कर सकता था। पास खड़े मल्लाहों ने भी लड़के को रोकने की कोशिश की।
उस लड़के ने किसी की न सुनी और किसी भी खतरे की परवाह न करते हुए वह नदी में तैरने लगा। पानी का बहाव तेज़ था और नदी भी काफी गहरी थी। रास्ते में एक नाव वाले ने उसे अपनी नाव में सवार होने के लिए कहा लेकिन वह लड़का रुका नहीं, तैरता गया। कुछ देर बाद वह सकुशल दूसरी ओर पहुँच गया।
उस लड़के का नाम था ‘लालबहादुर शास्त्री’।
छः साल का एक लड़का अपने दोस्तों के साथ एक बगीचे में फूल तोड़ने के लिए घुस गया। उसके दोस्तों ने बहुत सारे फूल तोड़कर अपनी झोलियाँ भर लीं। वह लड़का सबसे छोटा और कमज़ोर होने के कारण सबसे पिछड़ गया। उसने पहला फूल तोड़ा ही था कि बगीचे का माली आ पहुँचा। दूसरे लड़के भागने में सफल हो गए लेकिन छोटा लड़का माली के हत्थे चढ़ गया। बहुत सारे फूलों के टूट जाने और दूसरे लड़कों के भाग जाने के कारण माली बहुत गुस्से में था। उसने अपना सारा क्रोध उस छः साल के बालक पर निकाला और उसे पीट दिया।
नन्हे बच्चे ने माली से कहा – “आप मुझे इसलिए पीट रहे हैं क्योकि मेरे पिता नहीं हैं!”
यह सुनकर माली का क्रोध जाता रहा। वह बोला – “बेटे, पिता के न होने पर तो तुम्हारी जिम्मेदारी और अधिक हो जाती है।”
माली की मार खाने पर तो उस बच्चे ने एक आंसू भी नहीं बहाया था लेकिन यह सुनकर बच्चा बिलखकर रो पड़ा। यह बात उसके दिल में घर कर गई और उसने इसे जीवन भर नहीं भुलाया।
उसी दिन से बच्चे ने अपने ह्रदय में यह निश्चय कर लिया कि वह कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे किसी का कोई नुकसान हो।
उस लड़के का नाम था ‘लालबहादुर शास्त्री’।

शास्त्री के बारेमें हमने अपने भारतिय द्रष्टिकोण से बहुत सुना और पढा है । एक विदेशी और वो भी पाकिस्तानी नागरिक की बात सुन लेते हैं ।

जावेद चौधरी —

—– “  जनाब, देल्हीमे एक सडक है, लाल नेहरु एवेन्यु. इस सडक पर एक सिन्गल स्टोरी घर है ।  ये घर हिन्दुस्तान के दुसरे वजिरे आजम लाल बहादूर शास्त्री का था । हकुमतने शास्त्री साहब की वफात के बाद इस घर को म्युजियम का दरजा दे दिया । इस म्युजियममें शास्त्री साहब की जाती इस्तमाल की चीजें रख्खी है ।

लाल बहादूर शास्त्री को बचपनमें सुखे की बिमारी हो गयी थी । जिस की वजह से उनकी जिस्मानी ग्रोथ रूक गई । उनका कद पांच फुट से उपर न जा सका और उनका वजन सिर्फ उनतालिस किलोग्राम था ।

उन्होंने उन्नीस सौ ईक्कीसमे सियासत में कदम रख्खा और उन्नीस सौ छासठ तक सियासतमें रहे । पैंतालिस साल की इस सियासी जिन्दगीमें वो कोंग्रेस के चोटीके रेहनूमा भी रहे, वो लोक सभा के मेम्बर भी बने, वो रेल्वे के वजिर भी रहे, वो तजारत के वजिर बने , वो सिनियर वजिर भी बने और हिन्दुस्तान के वजिरे आजम भी बने ।

लेकिन पूरी दुनियामें इस घर के सिवा उन की और कोइ जायदाद नही थी । उन के पूरे घर के फर्निचर, बर्तनो और कपडों की मालियत छ हजार चार सौ ग्याराह रुपिया थी । उन के पास सिरफ एक कोट था और कोट भी उन्हें जवाहर लाल नेहरुने उस वक्त गिफ्ट किया था जब वो वजिरे तिजारत की हैसियत से कश्मीर के दौरे पर जा रहे थे और उन के पास कोइ गरम कपडा नही था । ये कोट आज भी इस म्युजियममें लटक रहा है ।    .

वो जब वजिरे आजम थे तो वो जाती मुसुफियात ले लिए सरकारी गाडी इस्तेमाल नही करते थे । इस की वजह से उन्हें दिक्कत का सामना करना पडता था । लिहाजा उन्होंने तेरह हजार रुपयेमें फियेट कार खरिदने का फैसला किया । इस फियेट कार के लिए उन्होंने छे हजार रुपये जाती जेब से अदा किए जब की सात हजार रुपये पंजाब नेशनल बैंक से कर्ज लिया ।      .

शास्त्री साहब बिस्तर पर खेस बिछा कर सोते थे । उन के घरमें सिर्फ दो बेड और बांस का एक छ सीटर सोफा था । और इन के बेडरूम का साईज बाराह बाय बारह था ।

लाल बहादुर शास्त्री नौ जुन उन्नीस सौ चौसठ को इन्डिया के प्राईम मिनिस्टर बेने और मौत तक इसी घरमे रहे ।

लाल बहादुर शास्त्री का इन्तकाल ग्यारह जनवरी उन्निस सौ छासठ को ताश्कंदमें हुआ था । उन की इन्तकाल की वजह बहुत दिलचस्प थी । दस जनवरी को उन्हों ने सदर अयुबखान के साथ ताश्कंद का मुआयदा किया । इस मुहायदे की खबर इन्डिया पहुंची तो इन्डियन मिडियाने इसे लाल बहादुर की शिकस्त करार दे दिया । लोग विफर गये और उन के घर के सामने एहतजाद शुरु कर दिया । इस की इत्तेला उन की बेटीने उन्हें ताश्कंदमें दे दी । शास्त्री साहब ने इस खबर को इतना सिरियस लिया की उन्हें हार्ट अटेक हुआ और वो ताश्कंदमें ही मर गये ।

अब जनाब लाल बहादुर शास्त्री की कहानी से दो चीजें साबित होती है । (१) मुल्क उस वक्त तक तरक्की नही करते जब तब उन की कियादत लाल बहादुर शास्त्री की तरह सादगी, खलुस और ईमानदारी का मुजाहिरा नही करती । (२) अगर सियासतदान हस्सास हो, ये दर्दे दिल रखते हो, तो उन के लिए पब्लिक ओपिनियन या आवामी एहतजाद हार्ट अटेक की हैसियत अख्तियार कर लेता है ।

जावेदभाईने भावनामें बह कर आखीरमें जो कहा, ईस से तो शास्त्रीजी के अकाल मृत्यु का दोष का भार भारत की जनता पर आ जाता है । मुरख जनता शास्त्री की मजबूरी समज ना सकी और विरोध कर बैठी और प्रजाप्रेमी प्रधान मंत्री को हार्ट अटेक दे दिया ।

बेशक शास्त्रीने पूरा मामला, ताश्कंद करार और जनविरोध दिल पे ले लिया होगा । लेकिन ईस से जरूरी नही है की हार्ट अटेक आ ही जाये ।

कुछ नादान लोगोंने कयास भी लगाया, शास्त्री का मृत्यु स्वाभाविक ही था, क्यों की उनका पहनावा एक कारण हो सकता है, उजबेकिस्तान की ठंडमें धोती कुरता काममें नही आते ।

ऐसे नादान आदमी को कौन समजाये की वो देश के प्रधान मंत्री थे, सरकारी महेमान थे, वहां की फूटपाथ पे नही उतरे थे की कपडेका सवाल उठे ।

हकिकरतमें शास्त्रीजी एक साजिश का शिकार बन गये थे । भारत नया नया देश था । अपने पैरों पर नही खडा था । ज्यादातर सोवियेत संघ पर निर्भर था । सोवियेत संघ का भी ईसमें स्वार्थ था, उस का मानना था की शास्त्री जैसा मजबूत आदमी भारत का प्रधान मंत्री होगा तो भारतमें साम्यवाद फैलाना मुश्किल होगा ।

कोंग्रेस की भ्रष्ट लोबी भी शास्त्री से परेशान थी । उन का भ्रष्टाचार का कार्यक्रम अटका पडा था । भारत की साम्यवादी पार्टी को भी शास्त्री के विरोधी होना ही था । एक विचारने जनम लिया । पाकिस्तान का जीता हुआ प्रदेश वापस नही करने से भले एक वोटबैंक नाराज हो जाये फिर भी प्रचंड लोकप्रियता के कारण शास्त्री अपने पद पर टिक जायेंगे । किसी को फायदा नही होगा । ना सोवियेट को, ना कोंग्रेस के भ्रष्ट विभाग को और ना साम्य्वादियों को । सब का निशाना एक ही था, लाल बहादूर शास्त्री ।

परिणाम ये हुआ की शास्त्री की मृत्यु हो गई और इन्दिरा गांघी प्रधान मंत्री बनी । ईस लिए नही की इन्दिरा मंत्रीमंडलमे सबसे ज्यादा लायक या अनुभवी थीं, लेकिन इसलिए की कोंग्रेसी नेता समजते थे की उसे कठपूतली की तरह नियंत्रित कर लेन्गे । शास्त्रीजी को मजबूर कर के जीता हुआ प्रदेश पाकिस्तान को वापस दिलाकर एक वोटबैंक फिक्स कर लिया । इस के जोर पर इन्दिरा के नेतत्रुत्वमें १९६७ का चुनाव बहुत ही कमजोर जीत से जीत लिया ।

सोवियेत को खूश करने के लिए भारत को वामपंथ की और ढकेल दिया । संस्थाओं का राष्ट्रियकरण उस बात का सबूत है ।  .

ये मात्र मेरे विचार थे । भारत के एक सामान्य नागरिक के मनमें जो शंकाएं उठती हो, बिलकुल ऐसे ही । इस के पिछे कारण भी है ।

शास्त्रीजी के सुपुत्र सुनिल शात्री ने कहा है की “ उनका निधन हमारे लिए और पूरे देश के लिए बहुत बडी घटना थी । उस समय मै मात्र १६ साल का था । लेकिन मुझे बराबर याद है की उनकी छाती, पेट पर ब्लु रंग के निशान थे । मेरी मां और हम सब को शक था की उनकी मौत शंकास्पद स्थिति में हुई थी । उन को जहर दिया गया था । लाखों लोगों को आज उनके मौत के बारेमें शक है । सरकारने उन की मौत पर के सारे रहस्य से परदा हटा के इस अध्याय को हमेशा के लिए बंद कर देना चाहिए ।“

उन के म्रुत्यु संबंधी जानकारी के लिए आरटीआई की अरजी दाखिल की गई थी । लेकिन सरकारने जानकारी देने से इनकर कर दिया । कहा गया की अगर दिवंगत नेता की मौत की जानकारी बाहर फैलेगी तो ईस से विदेशी संबंधों में नूकसान होगा और देशमें भी माहोल खराब हो सकता है ।

प्रधानमंत्री कार्यालयने शास्त्रीजी की मौत के साथ जुडा एकमात्र दस्तावेज जाहिर करने से इन्कार किया । इस के लिए आरटीआई के गुप्तता के नियम का हवाला दिया गया ।

एक ही दस्तावेज क्यों ? विदेशमें पधान मंत्री की मौत हुई, इस से काफी हलचल हुई होगी, दुतावासों में भी बहुत गतिविधी हुई होगी । ईस घटना में बहुत से फोन या टेलिग्राम आये होंगे । किसीने तो कागज पर लिखा होगा । काफी दस्तावेज बने होंगे, फिर एक ही क्यों ? या फिर फाड दिए ?

खुलासे में ऐसा क्या रहस्य था की जीस से देश की संप्रभुता और अखंडता तथा आंतरराष्ट्रिय संबंध पर विपरित प्रभाव पडे !!

क्या ईस लिए की इस खुलासे से अगर देश को सच्चाई मालुम पड जाये तो कुछ राजकिय पक्ष मे उथल पुथल हो जाये क्यों की शास्त्री नेहरू से अधिक लोकप्रिय हो गये थे ।

 

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