हिन्दुओं को भला-बुरा कह ‘कूल’ बनीं शबाना: बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, दूसरी बीवी सुभान अल्लाह

कुमारटुली से शुरू करते हैं। कुमारटुली से इसीलिए, क्योंकि वहाँ के लोगों के कारण बंगाल की दुर्गा पूजा में वो रौनक आती है, जो शायद ही कहीं और रहती हो। नार्थ कोलकाता के शोभाबाजार के पास स्थित कुमारटुली में ही वो लोग रहते हैं, जो माँ दुर्गा की कई भव्य मूर्तियों का निर्माण करते हैं, जो इंटरनेट पर वायरल होती हैं और जिनका दर्शन लाखों करोड़ों लोग करते हैं। त्योहारों के मौसम में लोग उनके पास जाते हैं, चाय-पानी पीते हैं, उनसे बातचीत करते हैं और अपनी प्रतिमाओं का ऑर्डर देते हैं। बड़े-बड़े पंडालों के आयोजक उनके पास जाकर बैठते हैं। कुछ लोग ऑर्डर की हुई प्रतिमाओं का निरिक्षण करने जाते हैं। पत्रकार उन मूर्तिकारों का इंटरव्यू लेते हैं। अमेरिका, यूके और नूजीलैंड तक के लोग उनसे मिलते हैं।

ये थी असली बात। अब आते हैं बनावटी बात पर। बनावटी बात, यानी उसे मैन्युफैक्चर करने वाले बनावटी लोग। बनावटी नैरेटिव, यानी उसे फैलाने वाली बनावटी विचारधारा। शबाना आज़मी के हाल ही के ट्वीट पर ग़ौर कीजिए। जावेद अख़्तर तो दिन भर में इतने लोगों से लड़ते-झगड़ते हैं कि उनके ट्वीट्स खोजने मुश्किल हैं लेकिन उनकी पत्नी उनसे कम ट्वीट करती हैं। शबाना आज़मी ने एक अंग्रेजी कविता के रूप में ‘मूर्तिकारों की दुर्दशा’ का वर्णन किया है। इस ‘दर्दनाक’ और ‘समाज की दयनीय स्थिति का सच्चा चित्रण करने वाले’ चित्र में एक मूर्तिकार गणेश भगवान की प्रतिमा बनाते समय उनसे कहते है:

“जब तक मैं तुम्हारी नक्काशी में व्यस्त था
तब तक तुम सिर्फ़ एक पत्थर थे
अब जब मेरा काम ख़त्म हो गया है
तुम भगवान बन गए हो
लेकिन मेरा क्या?
मैं तो ठहरा अछूत”

कितना दुःख-दर्द है न इस कविता में? कितनी चिंतित दिखती हैं न शबाना आजमी ग़रीबों के लिए। और हाँ, कितना आसान है न हर समस्या को (अगर वो नहीं है तो मैन्युफैक्चर कर के) हिंदुत्व, हिन्दू समाज और हिन्दू देवी-देवताओं से जोड़ना? जो मूर्तिकार भगवान गणेश की मूर्ति बनाता है, उसी मूर्तिकार को गणेश के भक्त अछूत मानते हैं। यही सन्देश है न इस कविता का? हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों को लेकर यह प्रोपेगंडा नया नहीं है। ‘रेड लेबल टी’ के प्रचार में भी एक मुस्लिम शिल्पकार को दिखाया गया था। वो काफ़ी प्रेम से भगवान गणेश की मूर्तियाँ बना रहा था जबकि हिन्दू गणेश भक्त उसकी पहचान जानकर उससे मूर्ति लेने का इच्छुक नहीं था। कितने दकियानूसी ख्यालों वाले हैं न ये हिन्दू?

Azmi Shabana

@AzmiShabana

Till I finished carving
You were a rock
And I, a sculptor.
Now that I am done
You are God
And I,an untouchable ?

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सबसे बड़ी बात तो ये है कि जावेद अख्तर की पत्नी शबाना आज़मी ने जिस मूर्ति को लेकर भारत में हिन्दुओं की छुआछूत पर निशाना साधा है, वो कम्बोडियन गणेश की प्रतिमा है। अर्थात, गणेश की प्रतिमा की इस रूप में कम्बोडिया में पूजा की जाती है। प्रतीत होता है कि ये मूर्तिकार भी कम्बोडिया का ही है। तो क्या अब शबाना आज़मी कम्बोडिया से उदाहरण लेकर भारत के हिन्दुओं पर निशाना साध रही हैं? क्या उन्होंने कभी बकरीद पर बकरे न काटने की सलाह दी है? क्या उन्होंने बकरीद पर ख़ून से सनी सड़कों की फोटो शेयर कर अपने मजहब के लोगों को कोई सीख दी है? नहीं।

अब आइए आपको सच्चाई से अवगत कराने का समय आ गया है। कुछ न कुछ खामियाँ हर प्रोफेशन में है लेकिन मूर्तिकारों को अछूत बता कर शबाना आजमी ने उनका अपमान किया है, उनकी कथित पीड़ा नहीं दिखाई है। साउथ मुंबई से 2 घंटे के रास्ते पर पेन नामक एक गाँव है, जहाँ 15,000 लोग मिल कर प्रतिवर्ष गणेश जी की 7 लाख मूर्तियाँ बनाते हैं। उन्हें इसके लिए महीनों मेहनत करनी होती है। आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि इनमें से एक चौथाई मूर्तियाँ तो विदेशों में एक्सपोर्ट की जाती है। 10 करोड़ रुपए के सालाना टर्नओवर वाली मूर्तिकारों की यह जमात सैकड़ों सालों से इस बिजनेस में लगी हैं।

शबाना आजमी को एक बार वहाँ जाना चाहिए क्योंकि पर्यटकों की बढ़ती संख्या को देखते हुए वहाँ से म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने गणेश प्रतिमा म्यूजियम का निर्माण किया है। मूर्तिकारों के साथ अछूत जैसा व्यवहार किया जाता है, शबाना आजमी के इस दावे की पोल कोलकाता में भी खुल जाती है और मुंबई में भी। ये दोनों तो बस एक उदाहरण थे। लेकिन शबाना आजमी ने एक कुतर्क पर आधारित प्रयास किया है। सामाजिक कुरीति को धर्म और हिन्दू देवी-देवताओं के साथ जोड़ने का प्रयास। लेकिन कुछ सवाल भी हैं। सवाल भी इसी प्रयास से जुड़ा है।

True Indology@TIinExile

Shabana Azmi’s ancestors were never Hindu. Neither yesterday nor day before yesterday. The great gandfather of her father Kaifi Azmi came from Iran. These Shia Muslims were encouraged by Awadh Nawab Wajid Ali Shah and he granted these foreigners tax free lands https://twitter.com/ShefVaidya/status/1189354420309516288 

Shefali Vaidya ஷெஃபாலி வைத்யா शेफाली वैद्य

@ShefVaidya

Till yesterday,
Your ancestors were Hindu
Then the invaders came
KiIIed your Male ancestors
Rap€d your female ancestors
And converted your family,
And you became a Jehadi? https://twitter.com/azmishabana/status/1189094179579846656 

True Indology@TIinExile

This is the case with many Shias of North India. Genetic studies have shown that 11% of Shias carry middle eastern haplogroup *E1b1b1

Interestingly, this haplogroup is found only among North Indian Shias in all of India.https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC2755252/ 

Presence of three different paternal lineages among North Indians: A study of 560 Y chromosomes

The genetic structure, affinities, and diversity of the 1 billion Indians hold important keys to numerous unanswered questions regarding the evolution of human populations and the forces shaping…

ncbi.nlm.nih.gov

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कहा तो ये भी जाता है कि जिसनें ताजमहल बनाया, शाहजहाँ ने उसीके हाथ ही काट डाले ताकि वह ऐसा कुछ और न बना सके। उसके सहयोगियों के भी हाथ काट डाले गए। सोमनाथ का मंदिर भी कई सालों में काफ़ी मेहनत से बना था। उसे बार-बार अलग-अलग इस्लामी शासकों द्वारा तोड़ा गया। राम मंदिर भी कई लोगों ने काफ़ी सारा ख़ून-पसीना बहा कर ही बनाया था। बाबर के अनुयायियों ने उसपर पानी फेर दिया। भारत में हजारों मंदिर बने, दर्शनीय कलाकृतियों के साथ- जिन्हें उकेरने में दशकों लगे। उन्हें ढाहने में इस्लामिक आक्रांताओं ने एक मिनट भी नहीं लगाया। उन इमारतों, प्रतिमाओं और कलाकृतियों को बनाने वालों के दिल पर क्या बीती होगी? अगर वो इस दुनिया में नहीं भी रहे होंगे तो उनकी रूह काँप उठी होगी।

किसी ‘तीन तलाक़’ की पीड़िता के लिए कभी शबाना आजमी के मन में कोई कविता आई क्या? जिस प्रतिमा की वो बात कर रही हैं, उसी प्रतिमा के विसर्जन के समय पत्थरबाजी करने वालों से पीड़ित श्रद्धालुओं की पीड़ा को दिखाने के लिए वो जावेद अख़्तर को कोई कविता लिखने बोल सकती हैं क्या? किसी को भी अछूत माना जाए तो यह सही नहीं है लेकिन शिल्पकारों और मूर्तिकारों को अछूत मानने की तो कहीं परंपरा ही नहीं रही है? इतिहास में भी ऐसा कोई वाकया नहीं है, जहाँ हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमा का निर्माण करने वाले शिल्पकारों को हेय दृष्टि से देखा जाता हो या फिर उनके साथ अछूत जैसा व्यवहार किया जाता हो।

वैसे हिन्दू पर्व-त्योहारों के समय सेलेब्रिटीज द्वारा इस तरह के नाटक कोई नई बात नहीं है। प्रियंका चोपड़ा का दमा तभी उखड़ता है, जब दिवाली आती है। बॉलीवुड पानी बचाने की बात तभी करता है, जब होली आती है। बाकि मजहबों के त्योहारों पर बधाई और हिन्दू त्योहारों पर सीख। वाह। बॉलीवुड का यह दोहरा रवैया सचमुच तारीफ के लायक है। एक तरफ जावेद अख्तर सोशल मीडिया पर लोगों से लड़ते फिर रहे हैं, दूसरी तरफ उसी अजेंडे को उनकी दूसरी बीवी हिंदुत्व और हिन्दू त्योहारों पर निशाना साधते हुए फैला रही हैं। मियाँ-बीवी का ये कॉम्बिनेशन शायद फ़िल्मों से लगभग रिटायर होकर इसी काम में लगा हुआ है।

अनुपम कुमार सिंह

 

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