अंतरराष्ट्रीय साजिश का शिकार हो गया है विपक्ष

योगेश किसलय

अंतरराष्ट्रीय साजिश का शिकार हो गया है विपक्ष। 2014 के बाद से कुछ ताकते इस बात को लेकर परेशान हैं कि भारत का भगवाकरण हो रहा है। ये मूर्ख ही नही विदेशी ताक़त के हाथों बिके हुए भी हैं । भारत एक सॉफ्ट स्टेट नही रहा। जिसको जैसा मन आया वह वैसा ही करता रहा। पाकिस्तान बंगला देश नेपाल जैसे पिद्दी देश भारत को आंखे दिखा रहे थे। इसी काल मे भारत को सॉफ्ट स्टेट माना गया। बहुसंख्यक खुद को टुअर महसूस कर रहे थे। अल्पसंख्यक वोटों के दम पर देश का सत्ता प्रतिष्ठान झकझुमर खेल रहा था। तभी उकताए लोगो ने मोदी में उम्मीदे देखी।

गुजरात दंगों के बावजूद राज्य के विकास में उनकी समझ लोगो को भरोसा दिला रही थी। इसलिए मोदी आये। मोदी के आते ही देश मे एक माहौल बना और लगा कि भारत मे अब अराजकता नही चलेगी। विदेशी प्रतिष्ठान और उनकी एजेंसिया अपनी मनमानी नही चला पा रहे थी। निरंकुश राजनैतिक दलों में लूट पाट पर अंकुश लगने लगा। जातीय उभार पर राष्ट्रीय भावनाये चोट करने लगी । मुसलमानों को अहसास हुआ कि अबतक वह केवल वोट के रूप में संज्ञापित होते थे वह ताक़त भी नही रही। उनके माथे पर खेल खेलने वाले हताश हो गए। तब राजनैतिक दलों ने असहिष्णुता का खेल खेला ।

पीठ पीछे से सरकार को बदनाम और अस्थिर करने की कोशिश हुई । लेकिन यह चाल भी बेनकाब हो गयी। तमाम प्रोपोगंडा और अभियान के बाद भी बीजेपी का घोड़ा विजय पताका फहराता रहा। विपक्ष में रहने का संकट क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस को परेशान करता रहा। कांग्रेस समेत विपक्ष को अब आगे आने के सिवाय कोई चारा नही था। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के बहाने विपक्ष ने सरकार पर ही हमला किया है। लेकिन बेचैनी में उठाया गया यह कदम विपक्ष पर ही भारी पड़ा है। कांग्रेस देखार तो हो ही गयी है साथ ही अपने समर्थकों को भी संभालने में विफल हुई है। लोकतंत्र देखना हो तो इस्राइल में देखिए । वहां देश की गरिमा अस्मिता और सुरक्षा को लेकर विपक्ष भी नही बोलता।

मैंने फेसबुक में ही कभी बताया था कि दूसरे देशों में भी क्राइम और हिंसा कम नही होती है लेकिन वहां का मीडिया सतर्क होता है कि देश की बदनामी कहीं न हो।लेकिन लोकशाही के नाम पर यहां इतनी आजादी की मांग होती है कि कन्हैया खालिद जैसे लोग भी एक विचारधारा के हीरो बन जाते हैं । इस बार विपक्ष ने न्यायपालिका को भी निशाना बनाया है।सच तो यह है इस देश मे राजनीतिक दल इतने अविश्वसनीय हो गए हैं कि उनके आह्वान जुमले भर साबित होते हैं ।न्यायपालिका कोई दूध का धुला नही है लेकिन विधायिका से अधिक विश्वसनीय है। अगर हम राजनैतिक दलों से किसी क्रांति की उम्मीद रखते हैं तो वह बेमानी होगी। लेकिन वर्तमान में मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग को लेकर उठाया गया कदम बेहद नीच फैसला है। हम देश को तख्ते पर रखकर राजनीत कर रहे हैं । जाने भी दीजिये ,जनता जवाब दे रही है ।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)

 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Back to top button