अखिलेश की रथ यात्रा में नजर आया रघुराज प्रताप सिंह उर्फ ‘राजा भैया’ का दबदबा

raghurajलखनऊ। गुरुवार को आयोजित मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की समाजवादी विकास रथ यात्रा के आगात के अवसर पर मंच पर वे सभी चेहरे नजर आए जो पिछले दिनों काफी चर्चा में रहे। शाहिद मंजूर, पंडित सिंह, बलराम यादव, पारसनाथ यादव, शंखलाल मांझी, माता प्रसाद, धर्मेंद्र यादव, डिंपल यादव, अभिषेक मिश्र, राधे श्याम सिंह, नरेश अग्रवाल, गायत्री प्रजापति के अलावा जिस चेहरे ने सबका ध्यान खींचा वह था प्रतापगढ़ के रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया का।

राजा भैया कार्यक्रम के मंच पर अखिलेश के पहुंचने से ठीक पहले पहुंचे थे। उन्होंने मंच पर अखिलेश का अभिवादन और स्वागत किया। राजा भैया कुछ देर अखिलेश की साथ वाली कुर्सी पर भी बैठे रहे लेकिन जैसे ही मंच पर सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव पहुंचे वे वरिष्ठों के सम्मान में अपनी कुर्सी छोड़ दूसरी कुर्सी पर चले गए।

राजा भैया ने अपनी ताकत दिखाने का यह मौका नहीं छोड़ा। प्रतापगढ़ से भारी संख्या में समर्थक बस व निजी वाहन से सवार होकर लखनऊ पहुंचे। राजा भैया ने स्पष्ट कर दिया था कि उनके समर्थकों की फौज सबसे अधिक होनी चाहिए। कुंडा के विधायक राजा भैया के निर्देश का पालन हुआ और दर्जनों बसों से कार्यकर्ता मुख्यमंत्री की रथयात्रा में शामिल होने राजधानी पहुंचे।

पिछले दिनों कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि राजा भैया अखिलेश सरकार से नाराज चल रहे हैं और वे भाजपा का दामन थाम सकते हैं। हालांकि राजा भैया ने इस बात का खंडन करते हुए कहा था कि सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव उनके राजनीतिक गुरु हैं और वह अपने गुरु का साथ नहीं छोड़ेंगे।

राजा भैया ने महज 24 साल की उम्र में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। राजा भैया अपने परिवार के पहले ऐसे सदस्य थे जिन्होंने पहली बार राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश किया। 1993 के बाद से वे लगातार विधानसभा में कुंडा का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। साल दर साल राजा भैया का राजनीतिक कद जितना ऊंचा होता गया उनका दामन भी दागदार होता गया। राजा भैया के परिवार से ताजा विवाद मोहर्रम जुलूस को लेकर जुड़ा है जिसमें कोर्ट के आदेश के बाद उनके पिता उदय प्रताप सिंह और उनके कुछ समर्थकों को स्थानीय पुलिस ने अपनी कड़ी निगरानी में रखा और जुलूस के दौरान निवास के बाहर नहीं जाने दिया।

राजा भैया ने हमेशा ही निर्दल चुनाव लड़ा है। राजा भैया का जलवा ऐसा है कि उन्हें किसी दल के समर्थन की जरूरत नहीं होती है। राजा भैया का जब खराब समय आया था तब सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने सबसे अधिक मदद की थी। इसके बाद राजा भैया ने मुलायम सिंह यादव को अपना राजनीतिक गुरु मान लिया था। वर्ष 2012 में सपा सरकार के गठन के बाद राजा भैया को निर्दल विधायक होने के बाद भी मंत्री बनाया गया था। सीओ हत्याकांड के चलते राजा भैया को मंत्री पद छोडऩा पड़ा था लेकिन बाद में सीबीआई से क्लिीन चिट मिलने के बाद राजा भैया को फिर से मंत्री बनाया गया है। राजा भैया उन खास नेताओं में से एक है जिन्हें सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का खास माना जाता है। पूर्वांचल की राजनीति में सपा के लिए क्षत्रिय वोट बैंक जुटाने की जिम्मेदारी भी राजा भैया की है।

अब तक हुए सभी चुनावी सर्वे अगली विधानसभा की तस्वीर त्रिशंकु ही बता रहे हैं। जिसका मतलब साफ है कि 2003 के बाद एक बार फिर उत्तर प्रदेश में जोड़-तोड़ और खरीद फरोख्त की राजनीति देखने को मिलेगी। अगर ऐसा होता है तो राजा भैया एक बार फिर प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण हो जाएंगे। राजा भैया को गठजोड़ की राजनीति का मंझा हुआ खिलाड़ी कहा जाता है। उन्होंने अपनी हनक और सूझबूझ के दम पर कई मौकों पर इसे साबित भी किया है।

बात 1996 के विधानसभा चुनावों के बाद की है। चुनावों में भाजपा 174 सीट, सपा को 110 सीट और बसपा को 67 सीटें ही मिलीं थी। भाजपा व बसपा के बीच समझौते के तहत छह-छह महीने के मुख्यमंत्री पर सहमति बनी। मायावती 21 मार्च 1997 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बनीं। सरकार में भाजपा भी शामिल हुई, पर छह महीने बाद मायावती ने कल्याण सिंह को सत्ता सौंपने से इंकार कर दिया। भाजपा ने बसपा के विधायकों सहित उसके कुछ समर्थक दलों को तोड़कर कल्याण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई। यह सरकार 2002 तक चली। आपको बता दें कि मायावती ने जब कल्याण सरकार से समर्थन वापस लिया था, उस समय राजा भैया ने सरकार बचाने में कल्याण की बहुत मदद की थी। जिसके बदले में उन्हें सरकार में मंत्री पद मिला था।

2002 में मायावती की सरकार के दौरान राजा भैया पर भाजपा विधायक पूरन सिंह बुंदेला के अपहरण का आरोप लगा और मायावती सरकार ने इस मौके का पूरा फायदा उठाया। 2 नवंबर 2002 को सुबह करीब 4 बजे तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के आदेश से उत्तर प्रदेश पुलिस ने राजा भैया को गिरफ्तार करवा लिया था। बाद में मायावती सरकार ने राजा भैया पर पोटा (आतंकवाद निरोधक कानून) के तहत भी कार्रवाई की।

यह मामला है 2003 का। 2002 में हुए चुनाव में उत्तर प्रदेश को त्रिशंकु विधानसभा नसीब हुई थी। भाजपा को 88, सपा को 143 और बसपा को 98 सीटें मिलीं थी। भाजपा और बसपा ने पुरानी कटुता भूलकर तीसरी बार फिर दोस्ती से सरकार बनाने का फैसला किया और मायावती तीसरी बार प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। लगभग डेढ़ साल बीतते-बीतते भाजपा व बसपा के बीच मतभेद इतने बढ़ गए कि 29 अगस्त 2003 को यह सरकार भी चली गई। नाटकीय घटनाक्रम में मायवती ने तत्कालीन राज्यपाल से सरकार बर्खास्तगी की सिफारिश कर दी। भाजपा ने दावा किया कि उसने तो बर्खास्तगी की सिफारिश से पहले ही अपना समर्थन वापसी का पत्र राज्यपाल को सौंप दिया था। विधानसभा तो नहीं भंग हुई लेकिन भाजपा व बसपा सरकार से बाहर हो गए। भाजपा के समर्थकों और बसपा के लोगों को तोड़कर मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सपा की नई सरकार बनी। यह सरकार बनवाने में भी राजा भैया ने अहम रोल निभाया। राजा भैया मुलायम सिंह यादव की सरकार में भी मंत्री बने।

2012 में सपा की सरकार बनने के बाद राजा भैया ने भी मंत्री पद की शपथ ली थी। लेकिन प्रतापगढ़ के कुंडा में डिप्टी एसपी जिया उल-हक की हत्या के सिलसिले में नाम आने के बाद रघुराज प्रताप सिंह को अखिलेश मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा। सीबीआई जांच के दौरान ‘कथित क्लीनचिट’ मिलने के बाद उनको आठ महीने बाद फिर से मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया था।

 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button