अगर वामपंथियों ने केरल में कांग्रेस से समझौता किया, तो वहां भी बीजेपी की बल्ले-बल्ले होगी

URMILESH @urmilesh.urmil

मैं उन लोगों से बिल्कुल सहमत नहीं, जो कह रहे हैं कि वामपंथियों को त्रिपुरा में कांग्रेस से गठबंधन कर चुनाव लड़ना चाहिए था, तब वो भाजपा को रोक सकते थे! यह दलील बेमतलब है! कुछ इसी तर्ज पर कल वो कहेंगे कि वामपंथियों को केरल में कांग्रेस के साथ समझौता करना चाहिए। तब तो केरल में भी भाजपा के बल्ले बल्ले होंगे! सच ये है कि त्रिपुरा में कांग्रेस अपना वजूद बचा लेती तो बीजेपी को वहां कत्तई ऐसी कामयाबी नहीं मिलती।

दूसरी बात, माकपा ने अगर अपनी पार्टी और शासन के विभिन्न निकायों में दलित-आदिवासी-ओबीसी की हिस्सेदारी और हैसियत को और बढ़ाया होता तो bjpभाजपा को इन समुदायों में इतनी बड़ी सेंध लगाने का मौका नहीं मिलता!

असेंबली में sc/St रिजर्व स्थान जरूर हैं। इस तरह की कुल सीटें ३० हैं पर पार्टी नेतृत्व में? अभी किसी ने फ़रमाया कि त्रिपुरा में ओबीसी रिजर्वेशन तक नहीं लागू था! CPMअगर यह सच है तो है वाकई हैरत की बात है! इस चुनाव में माकपा सिर्फ दो-दो sc-st सीटें पा सकी है। मतलब इन समुदायों में उसे लेकर गहरी नाराजगी थी।

दूसरी बात, युवाओं की उभरती आबादी के लिए वाम की सत्तर-अस्सी दशक वाली सोच कहीं से भी आकर्षक नहीं लगती। BJP२५ साल की लगातार जीत के बाद यह ठहराव भी एक प्रश्न बन गया! बंगाल में भी यह मसला अहम था। त्रिपुरा में भी लोग अच्छे बाजार, सिनेमा हॉल, स्टेडियम, रोजगार का जुगाड़ करते उपक्रम (चाहे वे छोटी-छोटी यूनिटें ही क्यों न हों) चाहते होंगे! इन सब पर वामपंथियों को विचार करना चाहिए! आखिर भारत के वामपंथी सत्तर-अस्सी के दशक की सोच से आगे क्यों नहीं बढ़ पाते!

(वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
 

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