अगले महीने हो सकती है NSG मीटिंग, भारत की मेंबरशिप पर चीन का अड़ंगा

नई दिल्ली। न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) प्लेनरी की मीटिंग अगले महीने स्विट्जरलैंड की राजधानी बर्न में अगले महीने हो सकती है। लेकिन चीन के विरोध के चलते भारत को एक बार फिर इसकी मेंबरशिप मिलने में मुश्किल हो सकती है। बता दें कि भारत ने ऑफिशियली पिछले साल मई में एनएसजी की मेंबरशिप के लिए अप्लाई किया था।
पिछले साल जून में सिओल में एनएसजी प्लेनरी की मीटिंग हुई थी। लेकिन चीन समेत 10 देशों के विरोध के चलते भारत को मेंबरशिप नहीं मिल पाई थी। चीन ने इस आधार पर विरोध किया था कि भारत ने नॉन प्रोलिफिरेशन ट्रीटी (परमाणु अप्रसार संधि-NPT) पर साइन नहीं किए हैं। इस बार की प्लेनरी मीटिंग के पहले अफसरों का कहना है कि भारत ने नई तरह से कोशिशें की हैं। बता दें कि चीन के विरोध के अलावा यूएस, यूके, फ्रांस और रूस भी भारत की एंट्री में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
चीन की दो मांग हैं, एक- जिस भी देश ने एपीटी पर साइन किए हों, उसे एनएसजी में एंट्री नहीं दी जानी चाहिए। दूसरा- चीन, भारत के साथ पाकिस्तान को भी एनएसजी मेंबरशिप दिलाना चाहता है। एक सीनियर अफसर की मानें तो बर्न मीटिंग में भी भारत की मेंबरशिप के मसले पर चर्चा हो सकती है लेकिन अभी स्टेटस को (पुरानी स्थिति) है यानी चीन, भारत के विरोध में है। एनएसजी मसले पर पिछले हफ्त चीन के एम्बेसडर लुओ झाओहुई ने कहा था, “एनएसजी में एंट्री को लेकर हम किसी देश का विरोध नहीं करते। हमारा मानना है कि एंट्री देने में स्टेंडर्ड्स को फॉलो करना चाहिए। भारत ने दोबारा कहा कि चीन अकेला देश है जो उसके मेंबरशिप के दावे का विरोध कर रहा है। भारत और चीन के बीच पिछले साल 13 और 31 अक्टूबर को एनएसजी मुद्दे पर बात हो चुकी है।
बीते एक साल से भारत एनएसजी की मेंबरशिप को लेकर अपना पक्ष मजबूत करने को लेकर जुटा है। तुर्की ने भारत को समर्थन देने की बात कही है। साथ ही ये भी कहा है कि वह पाकिस्तान को भी सपोर्ट करेगा। वहीं, न्यूजीलैंड ने भारत के दावे को लेकर कोई ठोस भरोसा नहीं दिलाया है। पिछले साल भारत दौरे पर आए न्यूजीलैंड के पीएम जॉन फिलिप ने कहा था कि वे भारत के दावे पर पॉजिटिव रवैया रखेंगे। हम चाहते हैं कि भारत की मेंबरशिप जल्द से जल्द फैसला हो जाए।
न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी और यूरेनियम बिना किसी खास समझौते के हासिल होगी।  न्यूक्लियर प्लान्ट्स से निकलने वाले कचरे को खत्म करने में भी एनएसजी मेंबर्स से मदद मिलेगी। साउथ एशिया में हम चीन की बराबरी पर आ जाएंगे।
एनएसजी यानी न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप मई 1974 में भारत के न्यूक्लियर टेस्ट के बाद बना था। इसमें 48 देश हैं। इनका मकसद न्यूक्लियर वेपन्स और उनके प्रोडक्शन में इस्तेमाल हो सकने वाली टेक्नीक, इक्विपमेंट और मटेरियल के एक्सपोर्ट को रोकना या कम करना है। 1994 में जारी एनएसजी गाइडलाइन्स के मुताबिक, कोई भी सिर्फ तभी ऐसे इक्विपमेंट के ट्रांसफर की परमिशन दे सकता है, जब उसे भरोसा हो कि इससे एटमी वेपन्स को बढ़ावा नहीं मिलेगा। एनएसजी के फैसलों के लिए सभी मेंबर्स का समर्थन जरूरी है। हर साल एक मीटिंग होती है।
 

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