अगले माह प्रधानमंत्री इमरान खान को पद से हटा सकती है पाक सेना! ये हैं वजहें

नई दिल्ली। पाकिस्तान में अगले माह बहुत बड़े पैमाने पर फेरबदल होने वाला है। सेना अपने द्वारा बनाए गए प्रधानमंत्री इमरान खान को हटाकर किसी और की ताजपोशी करने की तैयारी कर रही है। पाकिस्तान के जियो टीवी न्यूज चैनल पर इसको लेकर बहस भी हो चुकी है। बहस में शामिल पाकिस्तानी नेताओं का कहना था कि 27 अक्टूबर तक इमरान खान प्रधानमंत्री रहेंगे उसके बाद उनको पद से हटाकर किसी नए की ताजपोशी की जाएगी। ऐसा भी कहा गया कि जिस नए शख्स को प्रधानमंत्री बनाया जाएगा, उसके बाद ही भारत के साथ युद्ध करने की रणनीति बनाई जाएगी। इन दिनों पाकिस्तानी सेना इसी पर तैयारी कर रही है। ये हैं इसकी छह वजह।

1- इमरान का अंदरखाने विरोध तेज
पाकिस्तान में प्रधानमंत्री का चुनाव सेना की पसंद होती है। सेना जिसको चाहती है वो पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनता है। सेना की ओर से चुना गया प्रधानमंत्री यहां अपने हिसाब से कुछ नहीं कर पाता है, उसे सेना के इशारे पर ही काम करना होता है। यदि किसी तरह का विरोध होता है तो सेना उसको किनारे कर देती है। भारत ने जब से जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया है उसके बाद से पाक आर्मी और प्रधानमंत्री इमरान खान भारत के विरोध में लगे हुए है। अभी तक सेना ने उनको जिस-जिस देश से समर्थन मांगने के लिए कहा वो वहां गए और समर्थन मांगा मगर नाकामयाबी हाथ लगी। पाकिस्तानी संसद में भी इमरान खान सर्वमान्य नेता नहीं है, संसद में जब वो बोलने के लिए खड़े होते हैं तो वहां के सांसद ही नाजी गो बैक-नाजी गो बैक के नारे लगाते हैं। इस पर इमरान खान ने खुद ही संसद में बोला था कि उनका पूरा नाम इमरान खान नियाजी है। वहां के सांसद भी इमरान को बाहरी मानते हैं और कोई बाहरी उनके ऊपर राज करें या पाकिस्तान के रहने वालों को पसंद नहीं है।

2- परमाणु धमकी का भी नहीं हुआ कोई असर 
सेना के कहने पर इमरान ने भारत पर परमाणु बम की भी धमकी दे डाली मगर उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ा। फिर कूटनीति के तहत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, आईओसी, यूएनएचआरसी जैसे तमाम सार्वजनिक मंचों पर भी इस बात को उठाया मगर वहां से भी कोई कामयाबी नहीं मिली, अब वो भी थक-हार कर बैठ गए है। इस वजह से अब सेना की तैयारी है कि वो अगले माह इमरान खान को पद से हटाकर किसी नए को वजीरे आजम बनाएगी, उसके बाद भारत के खिलाफ युद्ध की रणनीति बनाई जाएगी। खैर युद्ध होगा या नहीं ये तो भविष्य के गर्त में है मगर इमरान को लेकर पाकिस्तान की सेना जल्द ही बड़ा फैसला लेने वाली है। ये तय है।

3- महंगाई से परेशान पाकिस्तान
जब से सेना ने इमरान खान को प्रधानमंत्री बनाया है उसके बाद से वहां के हालात खराब बने हुए है। अभी तक वहां की जनता महंगाई से परेशान है। इसके अलावा अन्य कई समस्याएं हैं जिसको लेकर पाक की जनता सड़क पर उतर चुकी है। गंदगी, मच्छर और गधों की बढ़ती जनसंख्या यहां की अन्य समस्याएं बनी हुई है। सफाई का नामोनिशान नहीं है। जनता सरकार को कोस रही है। सब्जियों के रेट आसमान छू रहे है। टमाटर और प्याज जैसी चीजें 200 से 300 रुपये प्रति किलो में बिक रही है। और तो और करेला भी पाकिस्तान में 300 रुपये किलो के हिसाब से बिक रहा है। मिर्च 400 रुपये में बिक रही है। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमला होने के बाद भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से तो यहां के हालात और भी दुश्कर हो गए हैं।

4- अनुच्छेद 370 को हटाने पर किसी से नहीं ले पाया समर्थन
भारत के जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से तो हालात और भी खराब हो गए है। पाकिस्तान तमाम देशों से इस बारे में हस्तक्षेप कर समर्थन की मांग कर चुका है मगर उसको हर ओर से निराशा ही हाथ लगी है। भारत के खिलाफ साजिश के तहत इस मुद्दे को UNHRC में भी उठाया जा चुका है मगर वहां से भी पाक को कुछ हासिल नहीं हुआ। और तो और मुस्लिम देशों ने भी पाकिस्तान की इस मामले में मदद करने से इनकार कर दिया। कोई भी देश पाकिस्तान की इस बारे में मदद करने या मध्यस्था की भूमिका अदा करने से बच रहा है।

5- मदद न मिलने से बौखलाई है सेना
कश्मीर के मामले में किसी भी देश से मदद न मिलने से पाकिस्तान के आला नेता और सेना अधिकारी दोनों परेशान है। भारत के खिलाफ वो खुलकर कुछ भी नहीं कर पा रहे है। सीमा पर कभी-कभार सीजफायर का उल्लंघन कर रहे हैं मगर जिस तरह से वो यहां पर आतंकी हमला करके शांति व्यवस्था को भंग करना चाह रहे थे उसमें वो कामयाब नहीं हो पाए। पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठन भी यहां शांति खत्म करने के लिए कुछ बड़ा नहीं कर पाए हैं।

6- पाकिस्तान में बलूच और पश्तूनी नेता दोनों विरोध में
उधर पाकिस्तान में रह रहे बलूच और पश्तूनी नेता दोनों ही पाक सरकार का विरोध कर रहे हैं। पश्तून तो बीते कई दिनों से सड़क पर उतरकर पाकिस्तान सरकार के खिलाफ नारेबाजी और प्रदर्शन कर रहे है। उनकी मांगों की एक लंबी लिस्ट है मगर पाकिस्तान की ओर से उस पर कोई विचार नहीं किया जा रहा है। पश्तूनी नेताओं का कहना है कि पाकिस्तान उन पर बर्बरता करता है, वो अपने को यहां सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं उनको दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है। इस वजह से वो अपने को स्वतंत्र करने की मांग करते रहते हैं। जब पाकिस्तान में रहने वाले लोग ही वहां की सरकार का विरोध कर रहे हैं ऐसे में जल्द ही सेना ऐसे प्रधानमंत्री को हटाकर किसी और की ताजपोशी करने की तैयारी कर रही है।

7- नया पाकिस्तान का नारा हवाहवाई 
2018 में पाकिस्तान की जनता के लिए नया पाकिस्तान का नारा इमरान ने दिया था, इसे संक्षेप में भ्रष्टाचार मुक्त अर्थव्यवस्था और सही तरीके से काम करने वाली सरकार के रूप में देखा गया था, यह इमरान खान और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ के उभार और सत्ता तक पहुंचने की कहानी भी रहा है। जुलाई 2018 में हुए आम चुनावों में गड़बड़ी के आरोप लगे, लेकिन फिर भी पाकिस्तान के लोग और दूसरी पार्टियों ने इमरान खान को एक मौका दिया। विपक्षी पार्टियों की मजबूरी ये थी कि अगर वो इस चुनाव के नतीजों को नहीं मानते तो आशंका थी कि कहीं यह पाकिस्तान में लोकतंत्र के अंत और फिर से फौजी हुक्मरानों के सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने की वजह ना बन जाए।

8- अर्थव्यवस्था को नहीं संभाल सके 
इमरान के सत्ता संभालने के सालभर बाद अब लगता है कि अर्थव्यवस्था को ठीक करने के उनके वादे हवाहवाई निकले हैं। अर्थव्यवस्था आगे तो नहीं बढ़ी, बल्कि और भी पीछे पहुंच गई है। एक विकासशील देश में हमेशा पूंजीवाद काम आता है।  इमरान खान की पार्टी कहती है कि वो सिस्टम को ठीक कर देंगे, लेकिन उन्हें पता ही नहीं कि सिस्टम काम कैसे करता है। इन सब के बावजूद खर्चों की सबसे मुख्य कटौती शिक्षा और स्वास्थ्य के मद में की गई है, इसका नुकसान होना तय था, वही हुआ। यदि कर्ज की बात की जाए तो एक पाकिस्तानी अखबार के मुताबिक, नवाज शरीफ की सरकार ने अपने कार्यकाल में जितना कर्ज लिया उसका दो-तिहाई कर्ज इमरान खान की सरकार महज एक साल में ले चुकी है।

9- घरेलू और विदेशी नीति 
विदेश नीति में इमरान की सरकार चीन और अमेरिका के साथ अपने संबंधों में सामंजस्य बिठाने में असफल रही है। चीन की महत्वाकांक्षी चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना अभी अधर में है। वहीं, अमेरिका भी पाकिस्तान को अफगान शांति वार्ता में  उसके मुताबिक काम नहीं करने पर कोई भी मदद देने को तैयार नहीं है। अर्थव्यवस्था को स्थिर करने की कोशिश में पिछले एक साल में सऊदी अरब और यूएई को लुभाने के लिए झुकना, पाकिस्तान की आर्थिक स्थिरता के लिए बहुत थोड़ी ही राहत ला सका है। जो लोग पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास से परिचित हैं वो ये बात अच्छे से जानते हैं कि आवाज दबाने का प्रतिरोध इतना घातक होता है कि वो सरकार की जड़ों को हिला देता है।

 

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