अतीत के पन्‍नों से: आजादी की लड़ाई से लेकर आजाद भारत के निर्माण में थी इन पांच महिलाओं की अ‍हम भूमिका

अनूप कुमार मिश्र

नई दिल्‍ली। आजादी की लड़ाई से लेकर आजाद भारत के नव निर्माण तक महिलाओं ने भी अहम भूमिका अदा की है. आज हम आपको पांच ऐसी महिलाओं के बारे में बता रहे हैं; जिनके योगदान के बिना राष्‍ट्र का नव निर्माण संभव नहीं था. आजाद भारत के नए स्‍वरूप को तय करने वाली इन महिलाओं में सरोजिनी नायडू, सुशीला नैयर, राजकुमारी अमृत कौर, विजयलक्ष्मी पंडित और सुचेता कृपलानी के नाम सबसे अग्रणी हैं. आइए जानें इन 5 महिलाओं की आजादी के संघर्ष और राष्‍ट्र निर्माण में इनकी भूमिका के बारे में…

राजकुमारी अमृत कौर 
राजकुमारी अमृत कौर का जन्‍म 2 फरवरी 1889 को उत्‍तर प्रदेश के लखनऊ शहर में हुआ था. राजकुमारी अमृतकौर के पिता हरनाम सिंह पंजाब के कपूरथला रियासत के राजा था. राजकुमारी अमृत की पूरी शिक्षा इंग्‍लैंड में हुई. स्‍वदेश वापसी के बाद वह अपने पिता के दोस्‍त गोपाल कृष्‍ण गोखले के जरिए सामाजिक और राजनीतिक जीवन में आई. इसी बीच, राजकुमारी अमृत, महात्‍मा गांधी के संपर्क में आई. जिसके बाद वह लगातार 16 वर्षों तक गांधी जी की सचिव के तौर पर काम करती रहीं.

उन्‍होंने 1927 में अखिल भारतीय महिला समाज की स्‍थापना की. 1930 में महात्‍मा गांधी द्वारा शुरू किए गए दांडी मार्च और उसके बाद भारत छोड़ो आंदोलन में राजकुमारी अमृत कौर ने बेहद सक्रिय भूमिका निभाई थी. 1937 में उन्‍हें भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस की प्रतिनिधि के तौर पर पश्चिमोत्‍तर सीमांत प्रांत के बन्‍नू भेजा गया था. जिससे नाराज अंग्रेजों ने उन पर राजद्रोह का आरोप लगाकर जेल में बंद कर दिया था. आजादी के उपरांत देश के पहले मंत्रिमंडल में राजकुमारी अमृत को बतौर केंद्रीय मंत्री शामिल किया गया.

इसके अलावा, विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के अध्‍यक्ष के तौर पर कार्य करने वाली पहली भारतीय महिला भी हैं. 1947 से 1957 तक उन्‍होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री के तौर पर काम किया, जिसके बाद वह 1957 से 1964 तक राज्‍य सभा में रहीं. दिल्‍ली के अखिल भारतीय आयुविज्ञान संस्‍थान (एम्‍स) के स्‍थापना में भी राजकुमारी अमृत कौर की अहम भूमिका रही है. 2 अक्टूबर 1964 को राजकुमारी अमृत कौर का निधन हो गया.

विजय लक्ष्मी पंडित
पंडित मोती लाल नेहरू की बेटी और पंडित जवाहर लाल नेहरू की बहन, विजय लक्ष्मी पंडित का जन्‍म 18 अगस्त 1900 में हुआ था. 1921 में उनका विवाह काठियावाड़ के सुप्रसिद्ध वकील रणजीत सीताराम पण्डित से हुआ था. जिसके बाद, गांधी जी से प्रभावित होकर उन्होंने आज़ादी के अंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया था. आजादी के आंदोलन में सक्रिय विजय लक्ष्‍मी पंडित कुछ समय में अंग्रेजों को खटकने लगीं.

जिसके चलते उन्‍हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. 1937 में उन्‍हें संयुक्त प्रांत की प्रांतीय विधानसभा के लिए निर्वाचित किया गया. 1953 में उन्‍हें संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्षा के तौर पर चुना गया. इस पद पर पहुंचने वाली वह विश्‍व की पहली महिला भी हैं. अपने राजनैतिक जीवन में उन्‍होंने राजदूत और राज्‍यपाल के पदों को भी विभूषित किया.

सुचेता कृपलानी 
सुचेता कृपलानी का जन्‍म 1908 में पंजाब में हुआ था. उनकी शिक्षा पहले लाहौर और बाद में दिल्‍ली में पूरी हुई. मास्‍टर्स की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्‍होंने बनारस हिन्‍दू वश्विविद्यालय में अध्‍यापन का कार्य शुरू किया. 1938 में वह आजादी की लड़ाई में न केवल सक्रिय हुईं, बल्कि 1940 और 1944 के आंदोलन के दौरान उनकी अग्रणी भूमिका अंग्रेजों को खटकने लगी थी. जिसके चलते उन्‍हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. जेल की परवाह न करते हुए सुचेता कृपलानी ने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्‍होंने सक्रिय भूमिका निभाई.

देश के आजाद होने के बाद, 1948 में उन्‍हें पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्या के रूप में चुना गया. 1952 से 1967 तक वह लोकसभा सदस्या के रूप में कार्य किया. चन्द्र भानु गुप्त सरकार में मंत्री रही सुचेता कृपलानी को 1963 में बतौर मुख्‍यमंत्री उत्‍तर प्रदेश की बागडोर सौंपी गई. वह उत्‍तर प्रदेश की पहली महिला मुख्‍यमंत्री भी हैं. वह 2 अक्टूबर 1963 से 13 मार्च 1967 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं. 1 दिसम्बर, 1974 को नई दिल्ली में देहावसान हो गया.

सरोजिनी नायडू
भातर कोकिला सरोजनी नायडू का जन्‍म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था. देश के जाने माने विद्वान अघोरनाथ चट्टोपाध्याय की पुत्री सरोजनी नायडू बचपन से पढाई में बेहद कुशाग्र थीं. उन्‍होंने महज 13 वर्ष की आयु में लेडी ऑफ दी लेक नामक कविता की रचना की थी. १८९५ में वह उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चली गईं. 1898 में उनका विवाह डॉ. गोविंदराजुलू नायडू के साथ हुआ. 1914 में सरोजनी नायडू की मुलाकात महात्‍मा गांधी से इंग्‍लैंड में हुई.

गांधी जी से प्रभावित होने के बाद वह सक्रिय रूप से आजादी के आंदोलन में सक्रिय हो गईं.  आजादी की लड़ाई में उन्‍होंने न केवल कई आंदोलनों की अगुवाई की, बल्कि कई बार जेल भी गईं. अंग्रेजी, हिंदी, बंगला और गुजराती भाषा का ज्ञान रखने वाली सरोजनी नायडू को 1925 में कानपुर में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन का अध्‍यक्ष चुना गया. 1932 में भारत की प्रतिनिधि के रूप में उन्‍हें दक्षिण अफ्रीका जाने का मौका भी मिला. आजादी के बाद उन्‍हें उत्तर प्रदेश के पहले राज्‍यपाल के तौर पर नियुक्‍त किया गया.

सुशीला नैयर
सुशीला नैयर का जन्‍म 1914 में पंजाब के कुंजाह में हुआ था. उन्‍होंने लेडी हार्डिग मेडिकल कालेज से डॉक्‍टरी की पढ़ाई की. डॉक्‍टर की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने भाई प्‍यारे लाल के जरिए वह गांधी जी के संपर्क में आई. जिसके बाद, 1939 में वह सेवाग्राम का हिस्‍सा बन गईं. सेवाग्राम का हिस्‍सा बनने के कुछ दिन बाद ही वर्धा में कालरा की बीमारी एक महामारी के तौर पर फैल गई थी. इस दौरान, सुशीला नैयर द्वारा की गई सेवा से गांधी जी बेहद प्रभावित हुए थे.

गांधी जी के कहने पर उन्‍होंने अपनी एमडी की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद वह गांधी जी की निजी चिकित्‍सक के तौर पर हमेशा उनके साथ रहीं. 1945 में उन्‍होंने कस्‍तूरबा हास्पिटल की स्‍थापना की. जिसे आज महात्‍मा गांधी इंस्‍टीट्यूट आफ मेडिकल साइस के नाम से जाना जाता है. गांधी जी की हत्‍या के बाद सुशीला नैयर अमेरिका चली गई. जहां उन्‍होंने पब्लिक हेल्‍थ की डिग्रियां हासिल की. 1952 में सुशीला नैयर को दिल्‍ली विधान सभा के लिए चुना गया.

वह 1952 से 1955 तक सुशीला नायर नेहरू मंत्रिमंडल में स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री रहीं. सुशीला नैयर 1955 से 56 तक दिल्‍ली विधानसभा की अध्‍यक्ष रहीं. 1957 में उन्‍हें लोकसभा के लिए चुना गया. सुशीला नैयर 1957 से 1980 के बीच चार बार उत्‍तर प्रदेश की झांसी लोकसभा सीट का सांसद रहीं. 1 जनवरी 2001 को हार्ट अटैक के चलते उनकी मृत्‍यु हो गई.

 

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