अब योगी सरकार भी केंद्र की मोदी सरकार के फार्मूले पर, नंदी से लेकर मौर्या जैसे मंत्रियों के कतरे पर, सचिव हुए पॉवरफुल

लखनऊ। यूपी में जब अफसरों की तैनाती में बोलियां लगने लगीं। दलबदलू  मंत्री ट्रांसफर-पोस्टिंग के धंधे में लग गए। दो अफसरो की गुमनाम चिट्ठियों ने पीएमओ तक हड़कंप मचा दिया। इसका असर हुआ कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐसे अपने आधे दर्जन मंत्रियों के हाथ ही अब बांध दिए हैं। अब ये कहने को मंत्री रह गए हैं, मगर विभाग का असली पावर सचिवों के पास चला गया है। इनके विभाग में कोई भी ट्रांसफर-पोस्टिंग तभी होगी, जब योगी आदित्यनाथ और मुख्य सचिव राजीव कुमार को भी फेरबदल वाजिब लगेगी।

यानी अब योगी सरकार बिल्कुल केंद्र की मोदी सरकार के उसी फार्मूले पर चलेगी, जिसके तहत मोदी के मंत्री चाहकर भी मनमानी नहीं कर पाते। मोदी के भरोसेमंद अफसर ही हर महकमे में काबिलियत के आधार पर अफसरों की फील्डिंग सजाते हैं। अब उसी तरह से केंद्र से बुलाए गए राजीव कुमार यूपी के हर महकमे में फील्डिंग सजाएंगे।

इन मंत्रियों पर गिरी गाज

कभी बसपा सरकार में मंत्री रहे इलाहाबाद के नंद गोपाल नंदी इस वक्त योगी सरकार में स्टांप एवं पंजीयन महकमा देख रहे हैं। हाल में कुछ जिलों में क्लास वन अफसरों की तैनाती के लिए इन्होंने प्रमुख सचिव से कहा। करीबी सूत्रों ने बताया कि मंत्री की सिफारिश को आला अफसर ने तत्काल मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री कार्यालय को भेज दिया। उधर से हरी झंडी नहीं मिली तो पोस्टिंग रोक दी गई। यूं तो स्वाति सिंह दलबदलू पृष्ठिभूमि की नहीं हैं।

मगर जब से उन्होंने लखनऊ में बीयर बार का उद्घाटन कर सरकार के लिए किरकिरी का सबब बनीं तो उन्हें भी साइडलाइन कर दिया गया। स्वाति के करीबी सूत्रों का कहना है कि वे अपनी सिफारिश पर 15 प्रतिशत अफसरों की भी पोस्टिंग नहीं करा पाईं हैं। कुछ यही हाल रीता बहुगुणा जोशी का भी है। एक तो कद के हिसाब से बड़ा महकमा नहीं मिला, दूजे महकमे में चल भी नहीं रही।

स्वामी प्रसाद मौर्या को लगता  था कि वह नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं तो सरकार में बड़ा मालदार ओहदा मिलेगा। मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं। एक तो श्रम विभाग जैसा  सामान्य और महत्वहीन  सा महकमा मिला, दूजे उनके विभाग में प्रमुख सचिव और सचिवों को अब टाइट कर दिया गया है। वाजिब सिफारिशों पर ही आदेश जारी करने के सीएम कार्यालय से फरमान हैं। स्वामी प्रसाद मौर्या भी अहम पदों पर अब बड़े अफसरों की तैनाती नहीं करा पा रहे हैं।

एक तो महकमा अदना सा ऊपर से हुकूम भी नहीं ठीक से बज रहा। ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्या इस कदर फ्रस्टेशन में हैं कि वे बयानों से योगी सरकार के सामने मुसीबत खड़ी कर रहे। ऊंचाहार में पांच व्यक्तियों की हत्या के मामले में गैरजरूरी बयानबाजी करते हुए मृतकों को बदमाश करार दिया। ऐसे समय में जब योगी सरकार कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर संकट का सामना कर रही है, तब ऐसे बयानों से स्वामी  बच सकते थे। नहीं तो उनके बयानों से यूपी में जाति विशेष में नाराजगी देखी जा रही। आलम यह है कि योगी सरकार के ही मंत्री ब्रजेश पाठक ने ही स्वामी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए बयान की कड़ी निंदा कर दी।

भाजपा के एक प्रदेशस्तरीय नेता कहते हैं कि स्वामी प्रसाद जैसे नेता के बयान से इ साफ जाहिर है कि महकमे में हुक्म न चलने पर स्वामी प्रसाद जैसे मंत्री योगी सरकार की किरकिरी करने की ठान चुके हैं।

सिर्फ इन मंत्रियों को हर फैसले लेने की छूट

योगी सरकार में खांटी भाजपाई पृष्ठिभूमि के मंत्रियों को ही फैसले लेने की छूट है। इसमें दोनों डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्या, नगर एवं संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना, स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह, ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा, सतीश महाना प्रमुख हैं। बाकी ज्यादातर मंत्रियों के विभागों में अब सचिव ज्यादा पावरफुल हैं। उन्हें साफ कह दिया गया है कि मंत्रियों की सिफारिश पर आंख मूंदकर काम करने से पहले मुख्य सचिव को सूचना दें। ताकि मुख्य सचिव मुख्यमंत्री कार्यालय के संज्ञान में पहले से मामला डाल दें। मकसद है कि महकमों मे मंत्रियों की मनमानी और लूट-खसोट रोकने का।

दरअसल कुछ दिनों पहले यूपी के दो आइएएस अफसरों ने पीएमओ को गुमनाम चिट्ठियां भेजकर कुछ मंत्रियों पर ट्रांसफर-पोस्टिंग का धंधा चलाने का आरोप लगाया था। इसकी खबर सबसे पहले छह जुलाई को tahalkaexpress.com ने ब्रेक की थी। शीर्षक था- योगी के कौन-कौन मंत्री ट्रांसफर-पोस्टिंग से कमा रहे माल, PMO ने IB से मांगी रिपोर्ट

चिट्ठियों में क्लास वन के अफसरों की तैनाती 25 से 50 लाख रुपये का जिक्र है। ऐसे ही तहसील और ब्लाकस्तर के अफसरों का रेट भी खोला गया है। आधे दर्जन मंत्रियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग में शामिल करने का जिक्र है। इस पर पीएमओ ने आइबी से रिपोर्ट देने को कहा था। जिसके बाद योगी सरकार ने दूसरे दलों से आकर सरकार में मंत्री बने नेताओं की निगरानी करने का फैसला किया। तय हुआ कि इनके महकमे में ईमानदार प्रमुख सचिव, सचिव की तैनाती की जाए। ताकि मंत्री मनमानी न कर सकें।

 

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