अविश्वास प्रस्ताव से सरकार को कोई खतरा नहीं, अकेले दम पर बीजेपी के पास है बहुमत

नई दिल्ली। मानसून सत्र की शुरुआत के साथ ही पहले दिन का आग़ाज़ हंगामेदार रहा है और विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया जिसे लोकसभा स्पीकर ने मंजूर कर लिया. संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने कहा कि वो चर्चा के लिए तैयार हैं.

लिंचिंग और दूसरे मुद्दों पर हंगामे के बीच टीडीपी ने लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया. कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया. स्पीकर सुमित्रा महाजन ने विपक्ष के इस प्रस्ताव को मंजूर किया तो सरकार की तरफ से इस चुनौती को स्वीकार करने में देरी नहीं की गई. संसदीय कार्य मंत्री ने दो टूक कहा कि वो बहस के लिए राजी हैं.

बीते चार साल में मोदी सरकार के खिलाफ ये पहला अविश्वास प्रस्ताव है जिसे स्पीकर ने स्वीकर किया है. हालांकि, विश्लेषकों के मुताबिक मोदी सरकार के पास पर्याप्त नंबर है और सरकार को किसी तरह का कोई खतरा नहीं है. इस वक़्त लोकसभा में संख्या बीजेपी के पास है. इसीलिए विश्लेषकों का मानना है कि ये अविश्वास प्रस्ताव सरकार को गिराने के मकसद से नहीं, बल्कि सियासी मुद्दे उछालने के लिए से पेश किया गया है.

क्या है लोकसभा का आंड़का?

लोकसभा की कुल सीटों की संख्या 543 है, जिनमें अभी 9 सीटें खाली हैं यानि इस वक्त लोकसभा के पास कुल 534 सांसद हैं. इस तरह से बहुमत का आंकड़ा 268 होता है. लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी है जिसके पास अकेले ही 272 सांसद हैं यानि बीजेपी अकेले दम पर ही बहुमत साबित करने में न सिर्फ सक्षम है बल्कि उसे बहुमत से 4 सीटें ज्यादा हैं. इसलिए सरकार के पास किसी तरह का कोई खतरा नहीं है.

इसके साथ ही बीजेपी के सहयोगी दलों के सांसदों की संख्या 40 है. कुलमिलाकर एनडीए के पास 312 सांसदों का समर्थन है. शिवसेना 18, एलजेपी 6, अकाली दल 4, आरएलएसपी 3, अपना दल 2, जेडीयू 2 और एनआर कांग्रेस, पीएमके, एनपीपी, एनडीपीपी, एसडीपी के एक-एक सांसद हैं.

सरकार की परेशानी-विपक्ष का फायदा?

यह सही है कि सरकार को संख्या के हिसाब से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन सरकार के लिए थोड़ी शर्मिंदगी तब आएगी जब उनके सहयोगी दल छिटकते हैं या गठबंधन दल की नाराजगी संसद में दिखती है. दूसरी तरफ ये अविश्वास प्रस्ताव विपक्षी एकता को लामबंद होने का मौका देगा. अगर कोई सहयोगी पार्टी सरकार से दूर होती है तो मोदी और बीजेपी के रणनीतिकारों के लिए आगामी लोकसभा चुनावों में सिर दर्द बन सकता है.

 

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