अस्‍पताल के कमरा नंबर 4 में अरुणा ने 42 साल किया था इच्‍छामृत्‍यु का इंतजार…

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर एतिहासिक फैसला सुना दिया है, जिसमें मरणासन्न व्यक्ति द्वारा इच्छामृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत (लिविंग विल) को मान्यता देने की मांग की गई थी. कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने कहा कि कुछ दिशा-निर्देशों के साथ इसकी इजाजत दी जा सकती है. दरअसल ‘लिविंग विल’ एक लिखित दस्तावेज होता है जिसमें कोई मरीज पहले से यह निर्देश देता है कि मरणासन्न स्थिति में पहुंचने या रजामंदी नहीं दे पाने की स्थिति में पहुंचने पर उसे किस तरह का इलाज दिया जाए.

अरुणा के लिए मांगी गई थी इच्‍छामृत्‍यु
इससे पहले मुंबई के केईएम अस्‍पताल में 37 सालों तक बेसुध पड़ी नर्स अरुणा रामचंद्र शानबाग की इच्‍छामृत्‍यु की याचिका कोर्ट खारिज कर चुकी है. हालांकि उस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ पैसिव युथनेसिया यानी इच्‍छामत्‍यु को मंजूरी दे दी थी. मरणासन्न मरीज, जिनकी हालत में सुधार की कोई गुंजाइश न हो और सिर्फ लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाने भर से उनकी मौत हो जाए, उसे पैसिव युथनेसिया कहा जाता है. अरुणा शानबाग के लिए इच्‍छामत्‍यु की मांग, लेखिका पिंकी विरानी ने की थी. अरुणा शानबाग केईएम अस्‍पताल के कमरा नंबर 4 में पूरे 42 साल तक रही और

अरुणा की दर्दभरी दास्‍तान
अरुणा रामचंद्रन शानबाग सन् 1966 में मुंबई के किंग्स एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) अस्‍पताल में नर्स की नौकरी की. हॉस्पिटल में ही एक सफाई कर्मचारी सोहनलाल वाल्मीकि ने 27 नवंबर 1973 को अरुणा के साथ दुष्कर्म किया था, जिसके बाद से वह कोमा में थीं.  याचिका में पिंकी वीरानी की ओर से भोजन बंद करने का आदेश मांगा गया था, ताकि अरुणा को नारकीय जीवन से छुटकारा मिल सके. पिंकी विरानी ने अरुणा शानबाग की मार्मिक कहानी को किताब का रूप दिया और इसका नाम रखा ‘अरुणा की कहानी’.

और भी आ चुके हैं मामले
हैदराबाद के 25 वर्षीय व्यंकटेश नाम के व्यक्ति ने इच्छा जताई कि वह मृत्यु के पहले अपने सारे अंगदान करना चाहता है, पर उसे इसकी अनुमति नहीं मिली. ऐसे ही केरल हाईकोर्ट द्वारा 2001 में वीके पिल्लै जो असाध्य रोग से पीड़ित थे, उनको भी इच्छा-मृत्यु की अनुमति नहीं मिली. इसी प्रकार की कुछ अपीलें भारत के राष्ट्रपति के पास भी आईं कि दया-मृत्यु की इजाजत दी जाए, पर अपील नामंजूर कर दी गई.

ये हैं दुनियाभर में कानून
अमरीका: यहां सक्रिय इच्‍छामत्‍यु गैर कानूनी है, लेकिन ओरेगन, वॉशिंगटन और मोंटाना राज्यों में डॉक्टर की सलाह और उसकी मदद से मरने की इजाजत है.
स्विट्ज़रलैंड: यहां खुद से जहरीली सुई लेकर आत्महत्या करने की इजाजत है, हालांकि इच्‍छामत्‍यु गैर कानूनी है.
नीदरलैंड्स: यहां डॉक्टरों के हाथों सक्रिय इच्‍छामत्‍यु और मरीज की मर्जी से दी जाने वाली मृत्यु पर दंडनीय अपराध नहीं है.
बेल्जियम: यहां सितंबर 2002 से इच्‍छामत्‍यु वैधानिक हो चुकी है.
ब्रिटेन, स्पेन, फ्रांस और इटली जैसे यूरोपीय देशों सहित दुनिया के ज्‍यादातर देशों में इच्‍छामत्‍यु गैर कानूनी है.

 

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