आंध्र प्रदेशः नायडू के NDA से अलग होने की असल वजह जगन मोहन रेड्डी हैं

नई दिल्ली। अक्सर दिल्ली मीडिया से गायब रहने वाला आंध्र प्रदेश इन दिनों यहां की मीडिया के सुर्खियों में छाया हुआ है. राज्य के दो भाग (आंध्र प्रदेश और तेलंगाना) में बंटने के बाद यहां की पार्टियां आंध्र के लिए स्पेशल स्टेटस की मांग कर रही हैं. सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी लाने की तैयारी है लेकिन संसद में गतिरोध के चलते यह सदन के पटल पर अब तक नहीं आ पाया है.

दिल्ली में उठापटक जारी है लेकिन असली रणनीति को आंध्र प्रदेश में आजमाया जा रहा है. राज्य में सत्ता का सुख भोग रही तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू बेचैन और बेकल है. उनकी इस बेचैनी का कारण बने हैं वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) के नेता वाई एस जगन मोहन रेड्डी.

जगन इस समय प्रजा संकल्प यात्रा कर रहे हैं. यह एक पदयात्रा है. अब तक वह 120 दिन में 1600 किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं. अपनी इस पदयात्रा के दौरान जगन ने 175 विधानसभा क्षेत्रों में से 77 में अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं. सिर्फ मौजूदगी ही नहीं जोरदार मौजूदगी. इस दौरान उन्हें भारी समर्थन मिल रहा है.

शुरुआत में इस पदयात्रा को नजरअंदाज करने वाले अब इसकी गंभीरता को समझ रहे हैं. हालात तो यह है कि जगन जिस मुद्दे को पहले उठा रहे हैं उन मुद्दों को पीछे-पीछे टीडीपी और चंद्रबाबू नायडू भी उठा रहे हैं. अगर यह कहा जाए कि जगन के मुद्दे को वो हथियाने की कोशिश कर रहे हैं तो गलत नहीं होगा.

आगे-आगे मुद्दे को उठा रहे जगन, पीछे से हथियाने की कोशिश कर रहे नायडू

प्रजा संकल्प यात्रा के दौरान ही जगन ने राज्य के लिए विशेष दर्जे की मांग उठाई थी. टीडीपी ने इसे हल्के में लिया. जैसे ही इस मुद्दे को लेकर लोगों का समर्थन जगन को मिला. टीडीपी अपनी रणनीति को बदली और इस मुद्दे को वो भी जोर शोर से उठाने लगी. यहीं हाल रहा केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का भी.

Jagan Mohan Reddy 1

सबसे पहले जगन की पार्टी ने इस मुद्दे को आगे बढ़ाया था लेकिन जैसे ही चंद्रबाबू नायडू को इसकी भनक लगी उन्होंने तुरंत इसका समर्थन कर दिया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और जगन इस मामले में बाजी मार चुके थे.

प्रजा संकल्प यात्रा के शुरू होने से 11 दिन पहले, 26 अक्टूबर 2017 को जब प्रेस रिलीज जारी की गई तब उसमें आंध्र के लिए स्पेशल स्टेटस का मुद्दा शामिल नहीं था. जैसे-जैसे पदयात्रा आगे बढ़ी तब जगन मोहन रेड्डी को समझ आया कि यह जरूरी मुद्दा है. यात्रा शुरू होने के लगभग एक महीने बाद उन्होंने इस मुद्दे को उठाना शुरू किया. लोगों का भारी समर्थन मिलता देख स्पेशल स्टेटस की मांग को जगन ने मुख्य मुद्दा बना लिया.

जगन को मिल रहा समर्थन टीडीपी के लिए बन रहा परेशानी का सबब

ऐसा नहीं है कि जगन के पास सिर्फ यही एक मुद्दा है. वो पदयात्रा के दौरान जिस इलाके में जा रहे हैं, वहां के स्थानीय मुद्दे को स्पेशल स्टेटस की दर्जे की मांग के साथ उठा रहे हैं. यही कारण है कि लोगों का जुड़ाव दिन प्रतिदिन उनसे बढ़ता जा रहा है और यही टीडीपी के लिए परेशानी का सबब बन रहा है.

जगन के पदयात्रा के दौरान मिल रहा भारी समर्थन और उनके मुद्दे से लोगों के जुड़ाव को देख कर चंद्रबाबू नायडू की बेचैनी बढ़ने लगी. उन्होंने इसको काउंटर करने के लिए पहले अपने दो मंत्रियों को केंद्र सराकर से इस्तीफा दिलवाया और एनडीए में बने रहने का सेफ गेम खेला. नायडू जब तक जगन के अगली चाल को समझ पाते तब तक जगन ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को आगे बढ़ा दिया. आनन-फानन में नायडू को एनडीए से नाता तोड़ना पड़ा. अब टीडीपी भी इस मुद्दे को पूरी ताकत से उठा रही है. टीडीपी यह बताने की कोशिश भी कर रही है कि यह असल में उनका कदम है.

पार्टी बनने के बाद कभी भी अकेले चुनावी मैदान में नहीं उतरी है टीडीपी

1982 में बनी टीडीपी आज तक किसी चुनाव में अकेले मैदान में नहीं उतरी है. हर चुनाव में टीडीपी ने किसी न किसी से गठबंधन किया है. टीडीपी के एनडीए से अलग होने की खुशी जगन को जरूर हुई होगी. क्योंकि यथास्थिति बनी रही तो टीडीपी को अकेले ही जगन की पार्टी वाईएसआरसीपी से मुकाबला करना पड़ेगा. यह जगन के लिए फायदे का सौदा होगा.

अगर 2014 के गणित को देखें तो जगन की पार्टी को टीडीपी और बीजेपी गठबंधन से मात्र 2 प्रतिशत वोट ही कम मिले थे. टीडीपी और बीजेपी गठबंधन ने राज्य में 46.63 प्रतिशत वोट के साथ 107 सीट हासिल किए वहीं वाईएसआरसीपी को 44.12 प्रतिशत वोट मिले थे और पार्टी के हिस्से में 66 सीटें आई थी.

Chandrababu-Naidu

ऐसा नहीं है कि जगन मोहन रेड्डी पहली बार पदयात्रा पर निकले हो. इससे पहले वो 2010 में 17 हजार किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा कर चुके हैं. हालांकि उनकी इस यात्रा से उन्हें ज्यादा राजनीतिक लाभ नहीं मिला था. इस बार की यात्रा से उन्हें उम्मीद है कि जो करिश्मा उनके पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी ने 2003 की पदयात्रा से की थी वो इसे दोहरा पाएंगे. अप्रैल 2003 में निकाली गई पदयात्रा एक आंध्र प्रदेश के मुद्दे पर थी. 2004 में इसी की बदौलत चंद्रशेखर रेड्डी दोबारा सत्ता पर काबिज हुए थे.

नायडू के लिए अमरावती अगला हैदराबाद न बन जाए

2010 की यात्रा से सबक लेते हुए जगन ने इस पदयात्रा के समय का चुनाव तरीके से किया है. जब उनकी यह यात्रा समाप्त होने वाली होगी तो राज्य में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में एक साल से कम का भी समय बचा रहेगा. इस यात्रा के सहारे लोगों के जेहन में बस चुके जगन को उम्मीद है कि वो टीडीपी से सीधे मुकाबले में अच्छा करेंगे. यह तो आने वाला वक्त बताएगा कि इस पदयात्रा का कितना लाभ उन्हें मिलता है, लेकिन अभी हालात उनके पक्ष में हैं. जगन की पदयात्रा ने राज्य की राजनीति को बदल तो जरूर दिया है और इसी बात से चंद्रबाबू नायडू परेशान हैं.

अंततः, अमरावती का हाल भी हैदराबाद जैसा न हो जाए जिसे बनाने में नायडू अपना दिलोजान लगा देते हैं और उस पर अधिकार किसी अन्य का हो जाता है.

 

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