आरक्षण के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरने को तैयार हैं मध्यप्रदेश के अफसर

दिनेश गुप्ता 

दिल्ली के आईएएस अधिकारी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें राजनीतिक कारणों से निशाना बनाया जा रहा है लेकिन, मध्यप्रदेश के अफसर पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे के खिलाफ राजनीति के मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं. पिछले दो साल से पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कर्मचारी एवं अधिकारियों के संगठन (सपाक्स) ने अगले विधानसभा चुनाव में राज्य की सभी विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है.

अनारक्षित वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारी के संगठन के इस ऐलान से साल के अंत में होने वाले विधानसभा के चुनाव में जातिवादी राजनीति के हावी होने की संभावना बढ़ गई है. सपाक्स समाज से कई आईएएस, आईपीएस अधिकारी भी जुड़े हुए हैं. संगठन का राजनीतिक स्वरूप होने पर अधिकारियों एवं कर्मचारियों का आचरण संहिता से बचना मुश्किल होगा.

डेढ़ दशक से हावी है पदोन्नति में आरक्षण का मुद्दा

पिछले ड़ेढ दशक से कांग्रेस के सत्ता से बाहर रहने की मुख्य वजह पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था रही है. वर्ष 2002 में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने का कानून बनाया था. पदोन्नति में आरक्षण का लाभ अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग को ही दिया जाता है. पिछड़ा वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण नहीं दिया जाता है. राज्य में पिछड़ा वर्ग को नौकरियों में चौदह प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है. अनुसूचित जाति वर्ग के लिए बीस एवं जनजाति वर्ग के लिए सोलह प्रतिशत पद सरकारी नौकरियों में आरक्षित हैं. वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में दिग्विजय को पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने का कोई लाभ नहीं मिला था.

कांग्रेस बुरी तरह से चुनाव हार गई थी. भारतीय जनता पार्टी हर चुनाव में दिग्विजय सिंह शासनकाल की याद दिलाकर वोटरों को बांधे रखने की लगातार कोशिश करती रहती है. विधानसभा एवं लोकसभा के पिछले तीन चुनावों में बीजेपी को इस मुद्दे पर सफलता भी मिलती रही है. लगभग दो साल पहले मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने के लिए बनाए गए कानून एवं नियमों को असंवैधानिक मानते हुए निरस्त कर दिया था.

इस निर्णय के खिलाफ सरकार के सुप्रीम कोर्ट में चले जाने से गैर आरक्षित वर्ग के सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी नाराज हैं. सपाक्स संगठन इसी नाराजगी से उपजा है. संगठन के सक्रिय होने के बाद राज्य के सरकारी क्षेत्र में आरक्षित और अनारक्षित वर्ग के बीच स्पष्ट विभाजन देखा जा रहा है. वर्ग संघर्ष की पहली झलक दो अप्रैल के भारत बंद के दौरान देखने को मिली थी. इस बंद के दौरान राज्य के कई हिस्सों में व्यापक तौर पर हिंसा भी हुई थी. इस आंदोलन में आरक्षित वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.

सरकारी क्षेत्र के बाहर नहीं मिल पाया समर्थन

SPAKS

आरक्षण के खिलाफ संख्या बल दिखाने के लिहाज से ही पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक वर्ग को भी शामिल कर सपाक्स का गठन किया गया था. पिछड़ा वर्ग को हर स्तर पर चौदह प्रतिशत आरक्षण मिलता है. सिर्फ पदोन्नति में नहीं है. पिछड़ा वर्ग के अधिकारी एवं कर्मचारी आरक्षण समाप्त करने की मांग का समर्थन नहीं करते हैं. अन्य पिछड़ा वर्ग अधिकारियों एवं कर्मचारियों का अपाक्स नाम से अलग संगठन भी है. संगठन के अध्यक्ष भुवनेश पटेल कहते हैं कि हम सपाक्स के साथ नहीं हैं. पटेल ने कहा कि सपाक्स के लोग भ्रमित दिखाई दे रहे हैं. वे क्या करना चाहते हैं, उन्हें पता ही नहीं हैं. सपाक्स के अध्यक्ष डॉ. केदार सिंह तोमर ने कहा कि कोई भी राजनीतिक दल आरक्षित वर्ग को नहीं छोड़ना चाहता है. सपाक्स ने चुनाव लड़ने का फैसला आरक्षण व्यवस्था के खिलाफ लिया है.

डॉ.तोमर पशु चिकित्सा विभाग में हैं. उन्होंने बताया कि आरक्षण के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई सपाक्स समाज संगठन द्वारा लड़ी जाएगी. सपाक्स की उत्पत्ति पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था के खिलाफ हुई थी, इस कारण इस संगठन को जमीनी स्तर पर सामान्य वर्ग का कोई खास समर्थन नहीं मिला. लिहाजा सपाक्स समाज नाम से अलग संगठन बनाया गया. इस संगठन में रिटायर्ड आईएएएस अधिकारी हीरालाल त्रिवेदी संरक्षक हैं. अन्य पदाधिकारी भी रिटायर्ड अधिकारी हैं. सपाक्स और सपाक्स समाज एक ही सिक्के दो पहलू हैं.

आरक्षण विरोधी दलों से मिलकर लड़ेंगे चुनाव

सपाक्स समाज के संरक्षक हीरालाल त्रिवेदी कहते हैं कि उन सभी राजनीतिक दलों से बात कर चनाव की रणनीति तय की जाएगी, जो आरक्षण व्यवस्था के विरोध में हैं. सवर्ण समाज पार्टी भी इनमें एक है. यह दावा भी किया जा रहा है कि रघु ठाकुर सपाक्स समाज का समर्थन कर रहे हैं. रघु ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष हैं. रघु ठाकुर अथवा उनके दल की ओर से इस बारे में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने दमोह में आरोप लगाया है कि बीजेपी ब्राहणों और दलितों को आपस में लड़ाने का काम कर रही है.

राज्य में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं. इनमें 148 सामान्य सीटें हैं. अनुसूचित वर्ग के लिए 35 और जनजाति वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं. दोनों ही प्रमुख राजनीति दल भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा आरक्षित सीटों को अपनी झोली में ड़ालने की रणनीति बना रहे हैं. कांग्रेस बसपा और सपा से भी तालमेल की संभावनाएं तलाश रही है. पिछड़े वोटों को जाति के आधार साधने के लिए पार्टी में महत्वपूर्ण पद दिए जा रहे हैं.

आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी और कांग्रेस अभी साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं. इससे सामान्य वर्ग नाराज है. इस नाराजगी का लाभ सपाक्स राजनीति में उतरकर उठाना चाहता है. सपाक्स से जुड़े हुए अधिकांश लोग सरकारी नौकरी में हैं. सरकारी नौकरी में रहकर राजनीति नहीं की जा सकती. इस कारण ऐसे दलों से उम्मीदवार उतारने की संभावनाएं भी तलाश की जा रही हैं, जो पहले से ही चुनाव आयोग में पंजीकृत राजनीतिक दल है. इसमें सवर्ण समाज पार्टी भी एक है. सपाक्स के श्री त्रिवेदी ने कहा कि संगठन को राजनीतिक दल के तौर पर पंजीयन कराने का फैसला सभी संभावनाएं टटोलने के बाद ही किया जाएगा.

वोट बंटे तो फायदा बीजेपी को होगा

SHIVRAJ-KAMALNATH

राज्य में कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी ब्राह्मण वोटों को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित है. पिछले पांच सालों में बीजेपी का ब्राह्मण नेतृत्व कमजोर हुआ है. कांग्रेस में भी दमदार ब्राहण नेताओं की कमी है. बीजेपी की आतंरिक राजनीति के चलते कई ब्राह्मण नेता नेपथ्य में चले गए हैं. सरकारी नौकरी में सामान्य वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की संख्या पांच लाख से भी अधिक है. अधिकारी एवं कर्मचारी भी सरकार से अनेक मुद्दों पर नाराज चल रहे हैं. प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष कमलनाथ कर्मचारी संगठनों से उनकी मांगों को लेकर बैठक भी कर चुके हैं.

कांग्रेस इस कोशिश में लगी हुई है कि किसी भी सूरत में सरकार विरोधी वोटों का विभाजन न हो. सपाक्स के उम्मीदवार यदि सामान्य सीटों पर चुनाव लड़ते हैं तो वोटों का विभाजन भी होगा. सत्ता विरोधी वोटों के विभाजन की स्थिति में लाभ बीजेपी को होना तय माना जा रहा है. मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया प्रभारी माणक अग्रवाल कहते हैं कि सपाक्स की लड़ाई बीजेपी से है. कांग्रेस चुनाव के वक्त ही सपाक्स के उम्मीदवार देखने के बाद कोई रणनीति बनाएगी.

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

 

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