आरबीआई गवर्नर पद की दौड़ में हरचरना (उलटबांसी)

Vinayak1विनायक राजहंस

जब से रघुराम राजन ने दोबारा आरबीआई का गवर्नर न बनने का फैसला किया हैए तभी से देश में यह चर्चा है कि भारत का अगला आरबीआई गवर्नर हरचरना हो सकता है। आप वाकिफ तो होंगे ही हरचरना से। यह वही हरचरना है जो फटा सुथन्ना पहने भारत भाग्य विधाता के गुण गाता फिरता है। अब भी नहीं पहचाने तो रघुवीर सहाय की इस कविता में उसे देखिए.
राष्ट्रगान में भला कौन वह भारत भाग्य विधाता हैए
फटा सुथन्ना पहने जिसका गुन हरचरना गाता है।
पहचान गए न! जी हां वही हरचरना है यह। वह कविता से निकलकर हमारे बीच आ गया है। एक्चुली वह हमारे बीच का ही थाए जो दुनिया और दुनियादारी से परेशान होकर कविता में समा गया था। अब वह फिर से बाहर की दुनिया में आ गया है जब से उसने सुना है कि रिजर्व बैंक का नया गर्वनर चुना जाना है। उसे लगा कि कविता में रहते.रहते वह ऊब गया है। चलो कुछ काम ही किया जाए।
दरअसल हरचरना बहुत व्यथित है देश की विकलांग अर्थव्यवस्था से और खूब गुस्सा भी। खासतौर पर महंगाई से। महंगाई डायन उसे हमेशा खाए जाती थी। इधर जब वह बाजार जाता तो खून के आंसू रोता। लोग तो बोरा भर पैसा ले जाते हैं और झोला भर सब्जियां लाते हैंए लेकिन हरचरना तो मुट्ठी में पैसा ले जाता है और सब्जियों के दर्शन करके वापस आ जाता है। भिंडीए तोरईए लौकीए आलूए टमाटरए कद्दू सब उसकी पहुंच से बहुत दूर हैं। दालों के बारे में तो वह सोच भी नहीं सकता। खाने.पीने की और भी दूसरी चीजें बहुत महंगी हैं। खाए तो क्या खाएए करे तो क्या करे! यही सब सोचकर वह कूदा है गवर्नर पद की रेस में।
उसे लगता है कि वह अगर आरबीआई का गवर्नर बन जाएगा तो कैसे भी करके सब्जियों के दाम कम कराएगा। दालों को स्टुपिड काॅमनमैन की पहुंच में लाएगा। लेकिन उसकी राह आसान बिल्कुल नहीं हैए उसे तमाम उम्मीदवारों से फाइट करना पड़ेगा। विजय केलकरए राकेश मोहनए अशोक लाहिड़ीए उर्जित पटेलए अरुंधति भट्टाचार्यए सुबीर गोकर्ण और अशोक चावला जैसे नामधारियों से उसे मोर्चा लेना है। इसके अलावा एक सबसे बड़ा रोड़ा हैं स्वामीजीए जो सबके पीछे हाथ.पैर धोकर पड़े रहते हैं। स्वामीजी को जब पता चलेगा कि अदना सा हरचरना भी गवर्नर पद की दौड़ में शामिल है तो पहले तो वे हरचरना की संपत्ति की जांच कराएंगेए फिर उसको भ्रष्टाचार में लिप्त बताएंगे। अदालत से चीख.चीखकर बताएंगे कि हरचरना ने 70 हजार करोड़ का घोटाला किया है। इस सबसे पार पाना उसके लिए आसान न होगा।
लेकिन हरचरना हार मानने वालों में से नहीं हैए वह डटा रहेगा अंतिम समय तक। उसे देश की अर्थव्यवस्था से ज्यादा रसोई की व्यवस्था ठीक करनी है। रसोई में रौनक रहेगी तो देश भी खुशहाल रहेगा। उसे आर्थिक मोर्चे पर दुनिया से शाबासी नहीं चाहिएए उसे तो देश के स्टुपिड काॅमन मैन की दुआ लेनी है। हर गरीब के मुंह में निवाला चला जाएए यही उसकी कोशिश रहेगी। वह लंदन स्कूल आॅफ इकोनाॅमिक्स या हार्वर्ड का पढ़ा हुआ नहीं है। उसे उसकी जिंदगी ने पढ़ाया हैए विषम परिस्थितियों ने समझाया है। अर्थशास्त्र की जगह भूखशास्त्र में उसकी पीएचडी है। भूख का मनोविज्ञान जितना वह जानता हैए दूसरे दावेदार क्या जान पाएंगे।
बहरहाल हरचरना बहुत बेचैन है और व्यग्र भी यह जानने को कि प्रधानमंत्री महोदय किसके नाम की घोषणा करते हैं गवर्नर पद के लिए। उसे उम्मीद तो बहुत है अपने चुने जाने की।
वैसे उम्मीद तो हमें भी है कि हरचरना ही गवर्नर चुना जाए। हमें ही क्याए उम्मीद तो हर उस व्यक्ति को होगी जिसकी रसोई का बजट बिगड़ा हुआ है। हमारा देशए दुनिया के किस देश के बराबर खड़ा होता है या उससे आगे निकलता हैए इससे क्या! देश अपने नागरिकों के साथ कितना खड़ा हैए यह अहम है। इसलिए हमारा फुल सपोर्ट हरचरना को है और आपका!

 

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