आर्थिक मोर्चे पर ये 6 सवाल सरकार को कर रहे हैं परेशान, आज जेटली करेंगे मंथन

नई दिल्ली। आर्थिक मोर्चे पर लगातार झटकों से घिरी मोदी सरकार अब इससे उबरने के उपायों पर चर्चा शुरू करने जा रही है. वित्त मंत्री अरुण जेटली आज वित्त मामलों से जुड़े बड़े अधिकारियों के साथ बैठक करेंगे. इसमें वर्तमान आर्थिक हालात की समीक्षा और विकास की रफ्तार तेज करने के उपायों पर चर्चा की जाएगी. हालांकि, पहले ये खबर आई थी कि मीटिंग की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे.

हाल के दिनों में आर्थिक मोर्चे पर सरकार को लगातार सवालों का सामना करना पड़ा है. खासकर पहली तिमाही में जीडीपी में 2.2 फीसदी की गिरावट के बाद विपक्ष ने इसके लिए नोटबंदी के फैसले को जिम्मेदार ठहराया था. साथ ही विपक्ष ने रोजगार के मोर्चे पर भी सरकार को घेरा और कहा कि युवाओं को हर साल 2 करोड़ रोजगार देने के वादे पर भी सरकार विफल रही है. पेट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर भी सरकार निशाने पर है. इन सब सवालों से उबरकर अर्थव्यवस्था को फिर से रफ्तार देने के उपायों पर मंथन होगा.

ये सवाल सरकार को कर रहे हैं परेशान

1. क्यों गिर रही है GDP? क्या नोटबंदी है वजह?

वित्त वर्ष की पहली तिमाही के जब आंकड़े आए तो सरकार को बड़ा झटका लगा. जीडीपी में सीधे 2.2 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. पिछले साल में इस तिमाही के 7.9 के मुकाबले जीडीपी घटकर 5.7 फीसदी रह गई. विपक्ष ने इसे नोटबंदी के फैसले का असर बताया और कहा कि नोटबंदी लागू होने के वक्त ही मनमोहन सिंह ने चेताया था कि इससे जीडीपी में 2 फीसदी तक गिरावट आएगी जो कि सही साबित हुई. कांग्रेस ने मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को विफल करार दिया. अब सरकार के सामने ये बड़ा सवाल है कि कैसे सकारात्मक आर्थिक आंकड़ों के साथ आगे बढ़े क्योंकि 2019 में आम चुनाव होने हैं और 17 महीने से ज्यादा का समय सरकार के पास नहीं बचा है.

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर लगातार छठी तिमाही में घटी है. आर्थिक समीक्षा-दो में यह अनुमान जताया गया है कि अपस्फीति दबाव के कारण चालू वित्त वर्ष में 7.5 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर हासिल करना संभव नहीं होगा. इसके साथ ही औद्योगिक वृद्धि दर भी 5 साल में सबसे नीचे आ गया है. निर्यात के समक्ष भी चुनौतियां हैं. अप्रैल-जून तिमाही में चालू खाते का घाटा (कैड) बढ़कर जीडीपी का 2.4 प्रतिशत या 14.3 अरब डॉलर पहुंच गया. मुख्य रूप से व्यापार घाटा बढ़ने से कैड बढ़ा है.

2. मेक इन इंडिया के बावजूद क्यों नहीं पैदा हो पा रहे नए रोजगार?

2014 के चुनाव प्रचार में मोदी ने देश के युवाओं के लिए हर साल 2 करोड़ रोजगार पैदा करने का वादा किया था. लेकिन इस मोर्चे पर आज सरकार सबसे ज्यादा घिरती हुई दिख रही है. हालांकि, सरकार ने मेक इन इंडिया और स्किल डेवलपमेंट जैसी योजनाओं की शुरुआत बहुत बड़े-बड़े दावों के साथ की थी. लेकिन रोजगार सृजन के आंकड़े कुछ लाख से आगे नहीं बढ़ पा रहे. हाल में कैबिनेट फेरबदल में जब स्किल डेवलपमेंट मंत्री राजीव प्रताप रूडी का मंत्री पद गया तो इसके लिए भी रोजगार सृजन के टारगेट में नाकामी को वजह माना गया. चुनावी मोड में आती दिख रही मोदी-शाह की जोड़ी के लिए ये सवाल काफी परेशान करने वाला साबित हो सकता है.

3. ब्लैक मनी को अर्थव्यवस्था से बाहर करने में क्यों नाकाम साबित हुई नोटबंदी?

पिछले साल 8 नवंबर को जब पीएम मोदी ने नोटबंदी के फैसले का ऐलान किया था तो कहा था कि इससे छुपा हुआ काला धन बाहर आएगा या फिर काली तिजोरी में छुपाया काला धन बेकार हो जाएगा. मोदी ने कहा कि कुछ महीनों की दिक्कत है और फिर निखरा हुआ भारत आपके सामने होगा. लेकिन हुआ क्या आरबीआई के पास पहले से भी ज्यादा पैसा आ गया. यानी कि जाली और काला धन भी अर्थव्यवस्था में आ गया. इसके अलावा सरकार ने विदेशों से काला धन वापस लाने का भी वादा किया था. इस मोर्चे पर भी अबतक कोई बहुत बड़ी सफलता नहीं मिलती दिखी है.

4. जीएसटी को लेकर क्यों नहीं खत्म हो रहा व्यापारियों का डर?

सरकार ने 1 जुलाई को आधी रात को भव्य समारोह में जीएसटी लागू किया था और इसे आजादी के बाद देश में सबसे बड़ी टैक्स क्रांति करार दिया था. अब तीन महीने पूरे होने जा रहे हैं लेकिन अभी भी कारोबारी पूरी तरह से इस सिस्टम से नहीं जुड़ पाए हैं. खुद बीजेपी सांसद और आर्थिक मामलों के जानकार सुब्रहमण्यम स्वामी इसपर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि जीएसटी कैसे फाइल करना है, क्या इसका सिस्टम है इसे लेकर अराजकता का माहौल बना हुआ है. कारोबार पर इसके असर के आंकड़े तो अभी सामने आने बाकी है. अगर ये नकारात्मक रहते हैं तो भी सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी.

5. पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने का क्या कोई है उपाय?

पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतें भी मोदी सरकार की मुश्किल बढ़ा रही हैं. सरकार ने 15 दिन पर कीमतों की समीक्षा की जगह डायनेमिक कीमतें लागू की थीं ये कहते हुए कीमतें घटते वक्त लोगों को उसी दिन से इसका फायदा मिलने लगेगा. लेकिन लोगों को इसका फायदा तो दूर पिछले तीन महीने में पेट्रोल की कीमतें 7 रुपये तक बढ़ गईं. सोशल मीडिया पर लोगों में इसपर काफी गुस्सा दिखा. लोगों ने सरकार से सवाल किया कि इसे जीएसटी में क्यों नहीं लाते.

पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान खुद इसपर सफाई देने आए और डायनेमिक फेयर का बचाव किया. कीमत निर्धारण की इस व्यवस्था पर इसलिए सवाल उठ रहा है कि मई 2014 में जब कच्चे तेल की कीमतें लगभग 107 डॉलर प्रति बैरल थी, तब दिल्ली में पेट्रोल और डीजल की कीमत क्रमश: 71.41 रुपये और 60 रुपये प्रति लीटर थी. अब कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में मात्र 54 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है तो भी 14 सितंबर 2017 तक पेट्रोल की कीमत मई 2014 की कीमत के आसपास 70.39 रुपये प्रति लीटर और उसी प्रकार डीजल की कीमत 58.74 रुपये प्रति लीटर हो चुकी है.

6. 17 महीने में कैसे पूरे होंगे मोदी के बड़े वादे?

2019 में आम चुनाव होने हैं और बीजेपी संगठन के स्तर पर मिशन 2019 की तैयारियों में अभी से जुट गई है लेकिन आखिरकार चुनाव में मोदी सरकार के काम को लेकर ही जाना होगा. ऐसे कई वादे हैं जो मोदी ने चुनाव के वक्त किए थे. पीएम मोदी ने चुनाव जीतने के बाद वादा किया था कि 2019 में अपना रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने रखेंगे. चुनाव से पहले जनता पीएम मोदी से उन वादों पर जवाब जरूर चाहेगी?

क्या किए थे बड़े वादे-

-मेक इन इंडिया के जरिए देश में रोजगार बढ़ाना

-हर साल दो करोड़ रोजगार सृजन करना

-पाकिस्तान समेत पड़ोसी देशों से निपटने में सख्त रुख

-गंगा सफाई

-हर गांव तक बिजली कनेक्शन

-काला धन देश वापस लाना

चुनाव में जाने से पहले सरकार को आर्थिक हालात की सकारात्मक तस्वीर पेश करनी होगी. विनिवेश, रोजगार, कंपनियों को प्रोत्साहन, इज ऑफ डुइंग बिजनेस समेत कई ऐसे मुद्दे हैं जिनपर सरकार नए सिरे से विचार कर अपनी रणनीति बना सकती है. सूत्रों के अनुसार बैठक में आर्थिक वृद्धि को गति देने, रोजगार सृजन और निजी निवेश को पटरी पर लाने के उपायों पर चर्चा की जा सकती है.

 

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