इंग्‍लैंड में भी दलितों से छुआछूत, इंकार के बाद कानून की तैयारी…

अनुसूचित जाति जनजाति उत्पीड़न निवारण कानून में दो महीने पहले सुप्रीम कोर्ट की ओर से किए गए बदलावों के बाद से भारत में दलित आंदोलित हो गए हैं. इस मामले में बीजेपी और कांग्रेस सहित तकरीबन सभी पार्टियां कह चुकी हैं कि दलित उत्पीड़न कानून में तत्काल गिरफ्तारी वाला प्रावधान बहाल किया जाए. सरकार ने खुद सुप्रीम कोर्ट में यह आग्रह किया, लेकिन अदालत ने अपने आदेश में बदलाव करने से मना कर दिया. देश में चल रहे इस घटनाक्रम के बीच यह जानना महत्वपूर्ण होगा कि दलितों के अधिकारों की लड़ाई सिर्फ भारत में ही नहीं चल रही है, सात समुंदर पार ब्रिटेन में रह रहे दलित भी वहां फैले छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ रहे हैं.

क्या है ब्रिटेन का मामला
दरअसल ब्रिटेन में दक्षिण एशियाई मूल के करीब 30 लाख लोग रहते हैं. ब्रिटेन की एजेंसियों का अनुमान है कि इनमें से 50,000 से 2 लाख के बीच आबादी दलितों की है. भारत की तरह ब्रिटेन में दलित उत्पीड़न रोकने के लिए कोई कानून नहीं है. हालांकि वहां नस्लीय उत्पीड़न रोकने के लिए समानता कानून है. भारतीय मूल के दलितों का दावा है कि अगर अश्वेत व्यक्ति नस्लीय भेदभाव का शिकार होता है, तो वह इस कानून के तहत मामला दर्ज कराकर न्याय की गुहार लगा सकता है, लेकिन किसी दक्षिण एशियाई मूल के व्यक्ति को जातिसूचक शब्द या छुआछूत का शिकार होना पड़ता है तो न्याय पाना तो दूर वह अधिकारियों को यह समझा भी नहीं पाता है कि वह नस्लीय भेदभाव जितने ही खतरनाक जातीय भेदभाव या छुआछूत का शिकार हो रहा है.

ब्रिटेन में मौजूद है जात-पांत!
पिछले कई दशक से ब्रिटेन के दलित मांग उठा रहे हैं कि भारत की तरह इंग्लैंड में भी उन्हें जात-पांत का शिकार होना पड़ रहा है. ब्रिटेन में लंबे समय से जातिवाद को कानूनी अपराध घोषित करने की लड़ाई लड़ रहीं पूर्व अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता संतोष दास के मुताबिक, ‘पहले तो कोई मानता ही नहीं था कि ब्रिटेन में दलितों के साथ भेदभाव हो रहा है. और यह भेदभाव और कोई नहीं बल्कि ब्रिटेन में रह रहे भारतीय मूल के अगड़ी जातियों के लोग ही कर रहे हैं.’ ब्रिटेन में छुआछूत की रिपोर्ट तैयार करने का काम दिसंबर 2010 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक एंड सोशल रिसर्च को सौंपा गया. संस्थान की ओर से हिलेरी मेटकॉफ और हीथर रोल्फ ने कास्ट डिसक्रिमनेशन एंड हैरासमेंट इन ग्रेट ब्रिटेन नाम की अपनी 114 पन्ने की रिपोर्ट 28 जुलाई 2011 को सौंप दी. रिपोर्ट में जो कहा गया वह चौंकाने वाला था.

स्कूल में कहे जाते हैं जातिसूचक शब्द, नौकरियों में अगड़ों को तरजीह
रिपोर्ट में ब्रिटेन में रह रहे दलित समुदाय के लोगों और वहां काम कर रहे दो दर्जन से ज्यादा दलित संगठनों से बातचीत की गई. स्कूलों में किए गए अध्ययनों में पता चला कि भारतीय मूल के सवर्ण छात्र अपने सहपाठी दलित छात्रों को जातिसूचक शब्दों से जलील करते हैं. कुछ ऐसे मामले भी सामने आए जहां पहले तो छात्रों के बीच दोस्ताना था, लेकिन एक-दूसरे की जाति पता चलने के बाद उनका व्यवहार बदल गया. कई मामलों में जातिगत भेदभाव के कारण छात्रों ने स्कूल ही छोड़ दिया. एक मामले में तो एक छात्रा ने स्कूल आना ही छोड़ दिया और घर रहकर इयरफोन से क्लास अटेंड की.

नौकरियों में भर्ती और प्रमोशन में भी ऐसे मामले सामने आए जहां अगड़ी जाति के लोगों ने दलितों के अवसर छीन लिए. कई मामलों में दलितों को अलग बैठकर खाना खाना पड़ता है, क्योंकि सवर्ण उनके साथ बैठना पसंद नहीं करते. ज्यादातर मामलों में पीड़ित अपने गोरे अफसरों को समझा ही नहीं पाए कि आखिर उनके साथ हो क्या रहा है. सबसे विचित्र मामला तो टैक्सी चलाने वाले एक दलित कारोबारी के साथ सामने आया. उसकी कंपनी में ज्यादातर सवर्ण टैक्सी ड्राइवर काम करते थे. ये आपसी बातचीत में जातिसूचक शब्द और जातिवादी भावनाओं का इजहार करते रहते थे. जब कारोबारी ने उन्हें ऐसा करने से रोका, तो उन्होंने कहा कि इसमें क्या हर्ज है. तब कारोबारी ने बताया कि वह दलित है और जातिसूचक शब्दों से उसे अपमान महसूस होता है. कारोबारी के दलित होने की बात पता चलने पर पांच ड्राइवरों ने यह कहते हुए नौकरी छोड़ दी कि वे नीची जाति के व्यक्ति के यहां नौकरी नहीं करेंगे.

इन हालात पर द फेडरेशन ऑफ अंबेडकर एंड बुद्धिस्ट ऑर्गनाइजेशन्स यूके के अरुण कुमार कहते हैं, ‘यह रिपोर्ट ब्रिटेन के लोगों के लिए नई चीज थी. उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि ब्रिटेन में इस कदर छुआछूत फैली हुई है. हालांकि मेरे जैसे लोग 40 साल से यह बात सरकार को समझाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन साधन संपन्न हिंदुओं की लॉबी इसे दबाए हुए थी.’

पहली बार इंटरनेशनल अपराध बनने की चौखट पर पहुंचा जातिवाद
इसके बाद यह तय किया गया कि ब्रिटेन के समानता अधिनियम 2010 में एक उपबंध जोड़कर ब्रिटेन में नस्ल की तरह जातिवादी भेदभाव को भी अपराध माना जाएगा. 2013 में ब्रिटिश सरकार ने कानून में संशोधन की घोषणा कर दी. लेकिन मई 2016 में अपने वादे से पलटते हुए प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने इस विषय पर सर्वेक्षण कराने की बात कही. ब्रिटेन में बड़ी संख्या में रह रहे गैर-दलित दक्षिण एशियाई समुदाय ने अपनी दलील रखी कि 21वीं सदी के ब्रिटेन में जातिवाद की बात करना बकवास है. उन्होंने इसे हिंदू धर्म को अपमानित करने की साजिश बताया. इस मामले में लगातार संघर्ष कर रहे ब्रिटेन के दलित एक्टिविस्ट अरुण कुमार ने कहा- ब्रिटेन में रह रहे दक्षिण एशियायी समुदाय में अगड़ी जातियों का वर्चस्व देखते हुए थेरेसा मे अपने फैसले से पलट गईं. लेकिन दलितों के लगातार विरोध प्रदर्शन के बाद उन्होंने अगस्त 2017 में एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण शुरू कराया, जिसमें ऑनलाइन मत देकर लोगों को बताना था कि ब्रिटेन में जातिवाद है या नहीं. सितंबर 2018 में यह सर्वेक्षण पूरा हो गया. फिलहाल इसका नतीजा सार्वजनिक नहीं किया गया है. लेकिन इस बीच ब्रिटेन के हिंदू समुदाय ने अपना विरोध बढ़ा दिया. उन्होंने ऐसी दलील दी जिसे समझना जातिवाद से भलीभांति वाकिफ भारतीयों तक के लिए कठिन है.

हिंदुओं ने कहा- जात-पांत अंग्रेजों की उपज है
भारत में भले ही आजादी के बहुत पहले से डॉ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में मनुस्मृति को देश में जातिवाद के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता रहा हो, लेकिन ब्रिटेन के हिंदू संगठनों ने साफ कहा कि 21वीं सदी के ब्रिटेन में जातिवाद की बात करना बकवास है. वहां रह रहे भारतीय मूल के युवा तो यह जानते तक नहीं कि जाति होती क्या है. नेशनल काउंसिल फॉर हिंदू टेंपल्स एनसीएचटी यूके ने 7 अगस्त 2017 को एक रिपोर्ट जारी की, जिसका शीर्षक था- कास्ट कनवर्जन एंड ए थॉरोली कॉलोनियल कॉन्सपिरेसी. हिंदी में इसका अर्थ हुआ जाति और धर्मांतरण पूरी तरह ब्रिटिश राज का षडयंत्र. इस रिपोर्ट का अनावरण करने के लिए बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ब्रिटेन गए.

इस रिपोर्ट की शुरुआत में ही अपील की गई, ‘हिंदुओं के साथ 250 साल पहले हुए हेट क्राइम से लड़ने में हमारी मदद करें. इस हेट क्राइम से आज भी लोग पीड़ित हो रहे हैं.’ यहां हेट क्राइम महत्वपूर्ण शब्द है, क्योंकि नस्लीय दुर्व्यवहार के मामले हेट क्राइम में ही आते हैं और दलित उत्पीड़न भी इसी श्रेणी में आएगा. 1871 काउंसिल के जनरल सेक्रेटरी पंडित एस के शर्मा का दावा है कि भारत में जातिवाद ब्रिटिश क्रिमिनल ट्राइब एक्ट 1871 के कारण पैदा हुआ. इस कानून के जरिए अंग्रेजों ने बहुत सी जनजातियों को अपराधिक जनजाति की श्रेणी में शामिल कर दिया था. उन्होंने कहा कि एंग्लिकल चर्च ने जानबूझकर हिंदू धर्म को नीचा दिखाने के लिए जातिवाद को गढ़ा है. उन्होंने दावा किया कि जातिवाद को इतनी बार दोहराया गया है कि दुनिया को लगने लगा है कि जातिवाद हिंदू धर्म का हिस्सा है. काउंसिल ने अपनी रिपोर्ट में कांग्रेस सांसद शशि थरूर के बहुत से तर्कों को भी शामिल किया है. रिपोर्ट में दलितों से अपील की गई है कि यह घर का मामला है, इसे किसी को हिंदू धर्म को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल न करने दें.

लड़ाई लंबी चलेगी
जिस तरह सदियों से भारत में दलित अधिकारों की लड़ाई जारी है और अब तक अपने मकाम पर नहीं पहुंची है, उसी तरह ब्रिटेन में भी यह लड़ाई अभी लंबी चलेगी. दलित दस्तक पत्रिका के संपादक और दुनियाभर के दलित एक्टिविस्टों के संपर्क में रहने वाले अशोक दास ने अपनी प्रतिक्रिया कुछ ऐसे दी, ‘हम सदियों से अन्याय और झूठ से लड़ रहे हैं. यह हमारे लिए कोई नहीं बात नहीं है. आपको एक किस्सा याद होगा कि जब बाबा साहेब अछूत प्रथा खत्म करने के लिए लड़ते थे, तो अगड़ी जाति के लोग अंग्रेजों के सामने कहते थे, यह प्रथा हिंदू धर्म में नहीं है. ऐसे में बाबा साहेब पानी का एक गिलास आगे बढ़ाते थे और जैसे ही हिंदू सज्जन इसे लेने से इंकार करते थे, सच जगजाहिर हो जाता था. जो लोग आज ब्रिटेन में जाति प्रथा को मानने से इंकार कर रहे हैं, वे उसी दोगली मानसिकता के शिकार हैं. लेकिन चाहे भारत हो या इंग्लैंड बहुजन अपना हक लेकर रहेंगे.’

 

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