इंदिरा गांधी ने सिर्फ स्वार्थ सिद्धि में बढ़ाया वामपंथियो को

“1971 में इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बने रहने के लिए वामपंथी लोगों से मदद चाहिए थी। समझौता यह हुआ कि आप प्रधानमंत्री बनी रहो और हमारे लोगों को देश का शिक्षा बोर्ड दे दो।” कट्टर वामपंथी विचारधारा वाले डा. नूरूल हसन को केन्द्रीय शिक्षा राज्यमंत्री का पद सौंपा गया था, जिसने प्राचीन हिन्दू इतिहास तथा पाठ्य पुस्तकों के विकृतिकरण का बीड़ा उठा लिया।1972 में इन सैकुलरवादियों ने “भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद” का गठन कर इतिहास पुनर्लेखन की घोषणा की और सुविख्यात इतिहासकार यदुनाथ सरकार, रमेश चंद्र मजूमदार तथा श्री जी.एस. सरदेसाई जैसे सुप्रतिष्ठित इतिहासकारों के लिखे ग्रंथों को नकार कर नये सिरे से इतिहास लेखन का कार्य शुरू कराया गया।घोषणा की गई कि इतिहास और पाठ्यपुस्तकों से वे अंश हटा दिये जाएँगे जो राष्ट्रीय एकता में बाधा डालने वाले और मुसलमानों की भावना को ठेस पहुँचाने वाले लगते हैं।

लखनऊ। कांग्रेस पार्टी, वामपंथी मीडिया और वामपंथी पत्रकार आज भी देश की वास्तविक घटनाओं से देश की जनता को लगातार गुमराह करने का प्रयास किया करते है। देश द्रोहियो के समर्थन में तथा उनके बचाव में यह किस प्रकार घड़ियाली आंसू बहाते है,यह सबने देखा है। लोहे का बक्सा लेकर पत्रकारिता करने बिहार से  दिल्ली पहुंचे पत्रकार जिनका तकिया कलाम ‘हिदू-मुसलमान’ है सरकार की आलोचना में ऐसे विचार व्यक्त करते है जैसे विश्व मे उनसे बड़ा चिंतक और बुद्धिमान कोई दूसरा है ही नही। उनकी असलियत का खुलासा भी सोशल मीडिया ने ही की ।

कांग्रेस के इतिहास का जहाँ तक प्रश्न है सोशल मीडिया के ही माघ्यम से नेहरू-गांधी परिवार के पूर्वजो और उनके कृत्यों की जानकारी आज की युवा पीढ़ी को मिल पा रही है। आज कांग्रेसी प्रवक्ता सरकार के विरोध में तो सब तरह की बात कर जाते है पर जब प्रश्न 84 में सिखों के कत्ल- ए-आम का हो या राहुल गांधी के दादा की कब्र पर माथा न टेकने का तो पूछा गया प्रश्न ऐसे पलटते है जैसे देश की जनता महामूर्ख है। कांग्रेस समर्थकों द्वारा हार्दिक पटेल की अश्लील सीडी के प्रश्न पर मीडिया वालों के साथ कि गई हाथापाई राहुल गांधी के सहयोगियो की असलियत का बचाव दर्शाती है या गुजरात मे रात दिन एक कर देने के बाद जीत की नाउम्मीदी की हताशा और निराशा।

कांग्रेस की कारगुजारियों से त्रस्त देश की जनता, देशभक्त और देश की  आन बान और शान पर मर मिटने वाली कदाचित इसी कारण सोशल मीडिया पर इतने सक्रिय होकर देश का इतिहास सामने लाने का प्रयास कर रहे है।

शक्ति सिंह गोहिल जैसे नेता ने नीचता पर उतर कर हार्दिक पटेल  को सरदार पटेल का वंशज ही बता डाला। उसका बचाव कर रहे गोहिल ने सरदार पटेल की सारे एआम मानहानि कर डाली । सोशल मीडिया पर हार्दिक की सीडी का पूरा खुलासा हो चुका है पर वाम पंथी और कांग्रेस इस पर चुप्पी साधे हुए है और हार्दिक के बचाव में खड़ी है।

गुजरात के जामनगर में मंगलवार को जी न्‍यूज के कार्यक्रम में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने तोड़फाड की। हार्दिक पटेल की सीडी को लेकर सवाल पूछे जाने से भड़के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जी न्‍यूज की टीम पर हमला कर दिया। अभी तक किसी भी बड़े कांग्रेस नेता द्वारा इस घटना की निंदा नहीं की गई।

दरअसल, जामनगर में गेम ऑफ गुजरात शो में कांग्रेस कार्यकर्ताओें ने हार्दिक पटेल की सीडी को लेकर सवाल पूछे जाने के बाद हंगामा शुरू कर दिया। उन्‍होंने न सिर्फ एंकर अमन चोपड़ा पर हमला कर दिया, बल्कि रिपेार्टर विशाल पांडे से भी बदसलूकी की। जी न्‍यूज की टीम से मारपीट करने वालों में कांग्रेस की महिला कार्यकर्ता भी शामिल थीं जिहोने कांग्रेसी महिलाओं को भी शर्मसार कर दिया। कांग्रेस ने आज भी कार्यक्रम न करने की धमकी दी है पर जी न्यूज से अपना कार्यक्रम बिना डरे चालू रखने की घोषणा की है।

“1971 में इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बने रहने के लिए वामपंथी लोगों से मदद चाहिए थी। समझौता यह हुआ कि आप प्रधानमंत्री बनी रहो और हमारे लोगों को देश का शिक्षा बोर्ड दे दो।”

कट्टर वामपंथी विचारधारा वाले डा. नूरूल हसन को केन्द्रीय शिक्षा राज्यमंत्री का पद सौंपा गया था, जिसने प्राचीन हिन्दू इतिहास तथा पाठ्य पुस्तकों के विकृतिकरण का बीड़ा उठा लिया।

1972 में इन सैकुलरवादियों ने “भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद” का गठन कर इतिहास पुनर्लेखन की घोषणा की और सुविख्यात इतिहासकार यदुनाथ सरकार, रमेश चंद्र मजूमदार तथा श्री जी.एस. सरदेसाई जैसे सुप्रतिष्ठित इतिहासकारों के लिखे ग्रंथों को नकार कर नये सिरे से इतिहास लेखन का कार्य शुरू कराया गया।

घोषणा की गई कि इतिहास और पाठ्यपुस्तकों से वे अंश हटा दिये जाएँगे जो राष्ट्रीय एकता में बाधा डालने वाले और मुसलमानों की भावना को ठेस पहुँचाने वाले लगते हैं।

डा. नूरूल हसन ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भाषण करते हुए कहा- महमूद गजनवी औरंगजेब आदि मुस्लिम शासकों द्वारा हिन्दुओं के नरसंहार एवं मंदिरों को तोड़ने के प्रसंग राष्ट्रीय एकता में बाधक है अत: उन्हें नहीं पढ़ाया जाना चाहिए। वामपंथियों ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर पर अंग्रेजों से क्षमा माँगकर, अण्डमान के काला पानी जेल से रिहा होने जैसे निराधार आरोप लगाये और उन्हें वीर की जगह ‘कायर’ बताने की बात लिखीं ।

देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य कुछ हो नहीं सकता है कि बच्चे यह नहीं पढ़ पा रहे हैं कि औरंगजेब ने किस तरह से देश में हिन्दुओं का कत्लेआम करवाया था। इन लेखकों ने यह तो लिख दिया कि गांधी की हत्या नाथूराम ने की थी किन्तु यह नहीं बताया कि गुरू गोविन्द जी कैसे शहीद हुए थे।

सबसे बड़ा मजाक यह है कि स्कूल की किताबों में कौन सा लेखक क्या लिख रहा है इसकी जाँच करने के लिए कोई भी बोर्ड नहीं है. कोई लिखता है कि “राम नहीं थे तो कोई महाभारत को एक कहानी लिखता है”!! किन्तु एक खास धर्म से पंगा नहीं लेता है। आज भी कांग्रेस की दया के चलते ही कई वामपंथी लोग शिक्षा बोर्ड पर कब्जा किये बैठे हैं।

इसी योजना के तहत JNU जैसे अनेक तथाकथित ‘स्वायत्त’ विश्वविद्यालयों की स्थापना करके भी उन्हें वामपंथियों को सौंप दिया गया जो आज देशविरोधी जहर उगलने वाले ‘बच्चों’ का पोषण कर रहे हैं। इस विषय में केंद्र सरकार को एक आयोग बनाकर “इनके गठन के उद्देश्यों की पूर्ति” की जाँच करवाकर कार्यवाही करनी चाहिए !

जहाँ मदरसों में मुगल काल की स्वर्णिम गाथाएं गाकर, मुस्लिम बच्चों में श्रेष्ठता की भावना भरी जाती है वहीं हिंदुओं को या तो दीन-हीन बना रहे है या सेक्युलर !!

सोशल मीडिया पर यह भी दावा किया जा रहा है कि ‘हमें ना केवल, लिखा इतिहास बदलना है, नया इतिहास लिखना भी है।

 

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