इलाहाबाद बैंक के पूर्व निदेशक ने किया खुलासा:निराव मोदी के धोखाधड़ी मामले में कांग्रेस सरकार का हाथ

लखनऊ। सच छुपाये नही छुपता|अपना रास्ता ढूंड ही लेता है बहार आने का| ऐसा ही हुआ निराव मोदी के केस में| एक आदमी ने निराव मोदी घोटाले की पूरी कहानी और विशाल बैंक लूट का काला चिठा सब के सामने खोल दिया है। कांग्रेस 8 साल पहले हुई बड़े पैमाने की बैंक की लूट में अपनी भूमिका से बचने की कोशिश कर रही थी और सारा दोष मोदी सरकार के मथे मड़ने की कोशिश कर रही थी। लेकिन आखिरकार, इस व्यक्ति जिसका ये पूरा घोटाला आँखों देखा है उसने सारा सच सामने ला ही दिया कि किसने निराव मोदी और उनके अंकल मेहुल चोक्सी का समर्थन किया था जिन्होंने बैंकों से 11,400 करोड़ रुपये लूट लिए है।

इलाहाबाद बैंक के पूर्व निदेशक दिनेश दुबे ने निरव मोदी और उनके अंकल चोकसी की काली करतूतों से पर्दा उठा दिया है जो 2011 से बैंकों को धोखा दे रहे थे और जिन्होंने ज़मानत या गारंटी प्रदान किए बिना करोड़ों पैसे लूट लिए है। दिनेश ने फर्स्ट पोस्ट के साथ एक विशेष साक्षात्कार में यह खुलासा किया है कि गीतांजलि जेम्स के मालिक मेहुल चोकसी ने 2013 में 50 करोड़ रुपये के ऋण के लिए अनुरोध किया था, जो 1500 करोड़ रुपये के अतिरिक्त था जिसे उन्होंने पहले ही ले रखा था। लेकिन दिनेश दुबे ने इसके बाद उनके अनुरोध के लिए असहमति दर्ज की थी कि मेहुल चोकसी पहले 1500 करोड़ के ऋण का भुगतान करे उसके बाद ही फिर वे नए ऋण के लिए आवेदन कर सकता है।

लेकिन दिनेश दुबे को बाद में यह पता चल गया कि चोकसी द्वारा माँगा 50 करोड़ का ऋण बैंक के बोर्ड के सदस्य द्वारा 1500 करोड़ के ऋण को वापस करने से पहले ही मंजूरी दे भी दी गई थी। 14 सितंबर, 2013 को हुई इलाहाबाद बैंक बोर्ड बैठक में, दुबे ने ऋण की स्वीकृति का जोरदार विरोध किया। उन्होंने कहा, “जब मैंने गीतांजलि जेम्स के ऋण प्रस्ताव का विरोध किया, इलाहाबाद बैंक बोर्ड के साथ मेरी लड़ाई सचमुच गहन और गंदे तरीके से हो गई, उन्होंने मुझे राजी करने, शांत करने और यहां तक ​​की धमकी देने की कोशिश की लेकिन मैंने कहा कि वसूली के बिना कंपनियों को ऐसे ऋण केवल एनपीए में बड़ावा करेंगे|

मैंने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और वित्त मंत्रालय को भी एक बड़े घोटाले की चेतावनी देते हुए पत्र लिखा था। मैंने अनुरोध किया था कि तत्काल इस पर कार्रवाई की जाए और और चोक्सी की फर्म से जुड़ी सभी कंपनियों पर नजर रखी जाए, क्योंकि वे बैंक को भुगतान किए बिना ऋण जमा कर रहे थे। ”

जब मुझे और कोई तरीका नही दिखा तो मैंने आरबीआई के तत्कालीन उप-गवर्नर के.सी. चक्रवर्ती को पत्र लिख कर समझाया समझाया कि “इलाहाबाद बैंक के एमसीबीओडी की बैठक 14 सितंबर, 2013 को हुई थी। एम / एस गीतांजलि ज्वैलर्स से संबंधित एजेंडा मद नंबर 4/6 के संबंध में 1500 करोड़ + 50 करोड़ की मंजूरी के लिए मैंने अपनी सहमति नहीं दी है, लेकिन उन्होंने मेरी असंतोष के नोट को नजरअंदाज कर दिया और ऋण को मंजूरी दी। यह आपकी जानकारी और आवश्यक कार्रवाई के लिए है।

दुर्भाग्य से, मुझे कोई जवाब नहीं मिला और चोकसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। दुबे को तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा बैंक के निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था, लेकिन सरकार के साथ उनके रिश्ते खराब होने शुरू हो गये जब उन्होंने बड़े व्यापारियों को ज़िम्मेदारियों के बिना ऋण का विरोध करना शुरू कर दिया।

पूरे प्रकरण में एक बड़ा घोटाला महसूस होने पर दुबे ने अगले महीने नवंबर 2013 में वित्त मंत्रालय में शीर्ष अधिकारियों को फिर से लिखा था। अपने पत्र में उन्होंने सरकार और अधिकारियों को सतर्क कर दिया था कि एक बड़ा घोटाला आकार ले रहा है और बैंक को कल को हो सकता है एक विशाल वित्तीय संकट का सामना करना पड़े अगर इसे जारी रखने की अनुमति दी जाती है लेकिन वित्त मंत्रालय के पत्र के पश्चात कुछ दिनों के भीतर, सरकार और इलाहाबाद बैंक से उनके इस्तीफे को तुरंत देने के लिए उन पर भारी दबाव डाला गया था।

फर्स्ट पोस्ट के अपने बयान में उन्होंने कहा, “वित्त मंत्रालय और इलाहाबाद बैंक में शीर्ष अधिकारी चाहते थे की मैं इस्तीफा दे दूँ। मुझे अपने तरीके सुधारने के लिए कहा गया था। मैंने कहा कि सरकार ने मुझे बैंक की गतिविधियों पर नजर रखने और किसी भी गलत काम को रोकने के लिए के लिए नियुक्त किया है । अगर मैं अपना काम नहीं कर सकता, तो अच्छा यही है मुझे जाना चाहिए। फिर मुझे कहा गया कि यदि  मैं अपना इस्तीफा देने के लिए तैयार हूं मुझे ये कारण देना है कि मैं इसे स्वास्थ्य कारणों से कर रहा हूं। मैंने ऐसा किया और फरवरी 2014 में इस्तीफा दे दिया|

“मैंने बोर्ड को बताया था कि चोकसी और उसकी फर्म एक दिन बड़े घोटाले का रूप लेंगे|अगर उन्होंने मेरी बात सुनी होती तो यह घोटाला रोका जा सकता था। मुझे याद है कि पीएनबी के मौजूदा प्रबंध निदेशक तब इलाहाबाद बैंक के मेनेजर की तरह काम कर रहे थे और वह बोर्ड की बैठक की काली दीवारों के अंदर क्या हो रहा है, इसके बारे में जानते थे”|

लेकिन आखिरकार उन्हें तत्कालीन कांग्रेस सरकार और बैंक के भारी दबाव से इस्तीफा देना पड़ा। वित्त मंत्रालय के लिए लिखे पत्र में उन्होंने लिखा है कि

“शुक्रवार, 22 नवंबर, 2013 को, एमसीबीओडी और अन्य चार समितियों की एक बैठक और एक बोर्ड की बैठक कोलकाता में ग्रांड ओबरई होटल में आयोजित की गई। बोर्ड की बैठक में गीतांजली ज्वैलर्स के बारे में एजेंडा था। पिछले बोर्ड बैठकों में चार बार से अधिक इस मामले पर बात हो चुकी थी  और हर बार मैंने अपनी असहमति व्यक्त की थी, लेकिन इस बैठक में फिर से इसे लाया गया था और इसे मंजूरी दी गयी। सीएमडी ने मुझसे कहा था कि इसे पारित करने के लिए मैं अपनी सहमति दूँ , लेकिन मैंने इनकार कर दिया और फिर से अपनी और से असंतोष का नोट प्रदान किया। “

“मैंने अपने चालीस वर्षों के पत्रकारिता के कैरियर में कभी इतना नीच काम नही देखा, कार्यालय का दुरुपयोग करना और भ्रष्टाचार करना। मैं आपको दिशानिर्देशों में कुछ बदलावों के लिए अनुरोध करना चाहूंगा। जब प्रबंधन के पास ऋण की स्वीकृति 400 करोड़ रुपये के लिए, तो ऐसे मामलों को बोर्ड की बैठकों में क्यों लाया जाता है?

यह बहुत स्पष्ट है कि उन्हें सुधार और विचलन के नाम पर किसी भी जांच और कानूनी कार्रवाई से बचाने के लिए, वे ऐसे मामलों को बोर्ड अनुमोदन के लिए लाते हैं … जब बोर्ड इसे स्वीकार करता है, तो वे किसी भी कानूनी जांच या प्रशासनिक कार्रवाई से मुक्त होते हैं बोर्ड की ओर से। ”

दुबे का कहना है कि उन्होंने पूरे घोटाले का सृजन होते देखा है जिसने आज एक विशाल घोटाले का रूप ले लिया है। वे कहते हैं कि बहुत कम मात्रा में ऋण छोटे पद के अधिकारियों द्वारा मंजूर नहीं किए जाते थे और इसमें बैंकों के शीर्ष अधिकारियों और शीर्ष मंत्रियों को शामिल किया गया था जिन्होंने करोड़ों में ऋण प्राप्त करने में निरव मोदी और उनके चाचा चोक्सी का समर्थन किया था। वह यह भी कहते हैं कि पीएनबी के वर्तमान प्रबंध निदेशक, जो तब इलाहाबाद बैंक के महाप्रबंधक थे, घोटाले के बारे में सब कुछ जानते थे लेकिन कुछ कारणों से वह चुप रहे। वित्त मंत्रालय को भी यह पता था कि यह एक बड़ा घोटाला है, लेकिन इसे अनदेखा किया गया और बदले में श्री दुबे के मुंह को बंद करने की कोशिश की गयी और उसे चुप रहने के लिए कहा गया।

अब हर किसी को यह समझना चाहिए कि देश में हर बैंक में ऐसे एनपीए घोटाले कब से लटक रहे हैं, जिसने अर्थव्यवस्था को मुख्य रूप से तोड़ दिया है। यह निराव मोदी बैंक धोखाधड़ी न तो पहला है और न ही आखिरी है, लेकिन जल्द ही आप ऐसे कई बैंक धोखाधड़ी देखेंगे जो भविष्य में सामने आयेंगे क्योंकि मोदी सरकार ने अब इन लोगों को कसने के लिए शिकंजा तयार कर लिया है|

यहाँ आप उस ख़त को पढ़ सकते है

 

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