इसलिए मुस्लिम देशों को साध रहे हैं नरेंद्र मोदी

lranian-leadersतेहरान। इस हफ्ते के अंत में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तेहरान पहुंचेंगे तो दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में नए युग की शुरुआत करेंगे या मौके को गंवा देंगे। नई दिल्ली और तेहरान का संबंध जितना बहुआयामी है उतना ही जटिल। दोनों देशों के बीच सदियों पुराना सांस्कृतिक और भाषायी संबंध रहा है। आधुनिक समय में दोनों देशों के बीच आर्थिक और रणनीतिक संबंध पर ज्यादा जोर है।

2011-12 तक इंडिया में ईरान क्रूड ऑइल का दूसरा सबसे बड़ा सप्लायर रहा है। गल्फ में ईरान रणनीतिक रूप से बेहद अहम देश है। वह भारत को अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया में वैकल्पिक ट्रेड रूट प्रदान कर सकता है।

ईरान के बाद इंडिया में दुनिया के सबसे ज्यादा शिया मुस्लिम रहते हैं। इंडिया में 45 मिलियन शिया मुस्लिमों की आबादी ईरान के लिए अहम है। दोनों देशों के संबंधों में यह कारक बेहद खास है। ईरान से इंटरनैशनल प्रतिबंध खत्म होने के बाद वहां भारतीय कंपनियों के लिए निवेश का शानदार मौका है लेकिन तेहरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर ईरान पर जारी कुछ प्रतिबंधों के कारण सब कुछ इतना आसान नहीं है।
भारतीय सरकारों की अमेरिका से करीबी के कारण ईरान के संबंधों को लेकर इंडिया खुलकर सामने नहीं आता है। जाहिर है अमेरिका का ईरान के साथ कैसा संबंध है उससे भारत और ईरान के संबंधों पर असर पड़ता है। यह ऐसी वजह है जिससे ईरानियों के बीच निराश साफ तौर पर देखी जा सकती है।

भारत ने जब 2009 में इंटरनैशनल अटॉमिक एनर्जी एजेंसी में ईरान के खिलाफ वोट किया था तो ईरानियों के बीच इस बात को लेकर काफी निराशा फैली थी। इसके बाद से अमेरिकी दबाव में भारत ईरान से तेल आयात लगातार कम करता गया। अमेरिका में ईरान-साउथ एशिया अफेयर्स ऐनालिस्ट फतेमेह अमन ने बीबीसी से से कहा, ‘ईरानियों के लिए यह एक कड़वा सबक था। ईरानी समझते हैं कि इंडिया किसी भी कलह की स्थिति में ईरान का साथ नहीं दे सकता है क्योंकि वह अमेरिका से अपने संबंधों को बिगाड़ ऐसा करने का जोखिम नहीं उठाएगा।’

पहले दो सालों के अपने कार्यकाल में मोदी ने हिन्द महासागर में अपने पड़ोसी देशों के संबंधों पर खास फोकस रखा। इसके बाद अमेरिका और पश्चिम के देशों के साथ भी अपने संबंधों में गर्मी लाने के लिए उन्होंने काफी ध्यान दिया। लंदन में इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्ट्रैटिजिक स्टडीज में साउथ एशिया के सीनियर फेलो राहुल रॉय चौधरी ने कहा, ‘इंडिया में बिल्कुल साफ है कि मोदी मुस्लिम देशों के साथ ज्यादा ध्यान फोकस कर रहे हैं। वह अपने पड़ोसियों का विस्तार कर रहे हैं। मोदी इसके पहले सऊदी अरब, यूएई जा चुके हैं। ईरान के बाद वह कतर की यात्रा पर जाने वाले हैं। मोदी की ईरान यात्रा इसी रणनीति का अहम हिस्सा है।

जब ईरान पर इंटरनैशनल प्रतिबंध था तब इंडिया ईरान से तेल के लिए भुगतान नहीं कर सकता था। अब भी इंडिया ने 6.5 बिलियन डॉलर ईरान को भुगतान नहीं किया है। नई दिल्ली ईरान का ऋणी है। इंडिया इस मामले में भुगतान करने के रास्तों की तलाश कर रहा है। पश्चिम के बैंक अब भी ईरान के साथ बिजनस करने को लेकर अनिच्छुक हैं क्योंकि अब भी ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध है। इंडिया इस बात से अवगत है कि प्रतिबंधों को कारण ईरान की बर्बाद हुई इकॉनमी के निर्माण में चीन लगा हुआ है। चीनी प्रेजिडेंट शी चिनफिंग इस साल जनवरी महीने में ईरान गए थे। उन्होंने इस यात्रा के दौरान कई डील की थी। पेइचिंग पहले से ही ईरान का सबसे बड़ा बिजनस पार्टनर है।

विदेशों में भारत के लिए मोदी की कड़ी मेहनत
2014 में सत्ता संभालने के बाद से मोदी पांच महादेशों में 40 देशों के दौरे पर जा चुके हैं। 2015 में मोदी सेशल्ज, मॉरीशस, श्रीलंका, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, चीन, मंगोलिया, साउथ कोरिया, बांग्लादेश, उजेबकिस्तान, कजाखस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, यूएई, आयरलैंड, यूके, सिंगापुर, रूस, अफगानिस्तान के दौरे पर गए। 2016 में मोदी ने बेल्जियम, सऊदी अरब का दौरा किया और अब ईरान, अमेरिका और कतर जाने वाले हैं।

अफगानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति का काफी खराब है। इंडिया इस युद्धग्रस्त राष्ट्र में अपना कदम जमाने के लिए कई रास्तों को खोजने में जुटा है ताकि वहां पाकिस्तानी प्रभाव को कम किया जा सके। पाकिस्तान की जमीन के जरिए भारत अफगानिस्तान नहीं जा सकता ऐसे में इंडिया ईरान के रास्ते अफगानिस्तान पहुंचने के लिए चीजों को सुगम बनाने में लगा है। दक्षिणपूर्वी ईरान में इंडिया चाबाहार पोर्ट विकिसत करने के लिए 150 मिलियन डॉलर इन्वेस्ट कर रहा है। उम्मीद है कि इस पोर्ट के जरिए इंडिया को अफगानिस्तान के लिए ट्रांजिट रूट मिल जाएगा। भविष्य में इंडिया सेंट्रल एशिया से गैस लाने के योजना पर भी काम कर रहा है। यह ईरान और अफगानिस्तान के जरिए ही संभव हो पाएगा।

इंडिया चाबाहार पोर्ट को अफगानिस्तान के गेटवे के रूप में देख रहा है। चाबाहार से एक रोड है जिसके जरिए अफगानिस्तान आसानी से पहुंचा जा सकता है। इसके लिए इंडिया अफगानिस्तान में काम भी कर रहा है। राहुल रॉय चौधरी ने कहा कि इंडिया अफगानिस्तान से किसी भी सूरत में निकलना नहीं चाहेगा। मोदी जून में अफगानिस्तान की यात्रा पर जाने वाले हैं। उम्मीद है कि इसी दौरान अफगानिस्तान, इंडिया और ईरान के बीच चाबाहर पोर्ट के लिए अहम डील पर मुहर लगेगी। मोदी की ईरान यात्रा के दौरान जब उनकी हसन रोहानी से मीटिंग होगी तब आश्वस्त कर सकते हैं कि भारत ईरान से लंबे समय के लिए मजबूत संबंध चाहता है लेकिन ईरान अपने अनुभवों के कारण शायद बहुत उत्साह नहीं दिखाए।

 

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