उत्तराखंड में शराब विरोधी आन्दोलन : महिलओं कहा- ‘नशा नहीं रोजगार दो’

श्रीनगर गढ़वाल ।  उत्तराखंड में शराब विरोधी आन्दोलन पिछले 4 महीने से चल रहा है। इसे इस प्रदेश की महिलायें चला रही है जिन्होंने 70 के दशक में “नशा नही रोजगार दो” का नारा देकर टिंचरी(शराब) विरोधी आन्दोलन किया तो 1994 और उसके बाद के सालों में अपनी जान और इज्जत लुटा कर पृथक उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में आगे की पंक्ति में खड़े होकर ये नया राज्य छीना।

आज जब इस नये राज्य को बने 17 साल हो गये है तब ये महिलाएं फिर से सड़कों पर है अपने राज्य को बचाने की, शराब से मुक्त करने की जिद्द के साथ। कांग्रेस की सरकार का डेनिस प्रेम सबने देखा और जनता ने डेनिस के खिलाफ वोट देकर अपनी लोकतान्त्रिक ताकत को दिखा उसे सत्ता से बेदखल किया।

2017 में भाजपा की नई सरकार आई। जिन्होंने अपने चुनावी घोषणा पत्र (दृष्टि पत्र नाम दिया था इसे) लिखा था कि “नशाखोरी के बढ़ते दुष्प्रभावों के मद्देनजर विशेष पहल की जाएगी”। लोगो ने विश्वास किया और 70 में से 56 सीटें भाजपा की झोली में डाल कर पहली बार किसी पार्टी को इतना बड़ा बहुमत दिया।

राज्य में तमाम समस्याओं को दरकिनार करते हुए नई भाजपा सरकार ने सत्ता में आने के कुछ दिनों के बाद नई आबकारी नीति 017-18 जारी की। इस नीति को लेकर सवाल उठे कि यह शराबमाफियाओं के पक्ष बनाई गई नीति है।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड राज्य के लिए एक मामले में निर्णय लिया कि शराब से होने वाली दुर्घटनाओं से बचने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग से 500 मीटर और राज्य मार्गों से 250 मीटर की दूरी तक शराब की दुकान नही होनी चाहिए। सरकार ने इस निर्णय को खत्म करने के लिए राज्य मार्गों को जिला मार्ग ही घोषित कर दिया।

उत्तराखंड की डबल इंजन सरकार के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि उनकी सरकार धीरे धीरे शराब को कम करेगी लेकिन सरकार का बजट कुछ और ही कहानी पेश कर रहा है। उत्तराखंड के 2016-17 के बजट में शराब से प्राप्त होने वाला राजस्व 1900 करोड़ का था लेकिन नई सरकार का 2017-18 के बजट में यह राशी 2300 करोड़ की हो गयी।

ये तो है बजट के आंकड़े। डेनिस का ये प्रदेश पिछली सरकार तक विदेशी दारू को वैध मानता था लेकिन अब नई डबल इंजन सरकार में देशी दारू से भी सरकार के इंजन को तेल मिलेगा। ये कैसा शराब कम करने का अभियान सरकार से चला रही है समझ से परे है।

इस बीच शराब विरोधी आन्दोलन लगातार जारी है और सरकार उसे कुचलने के लिए रोज़ नये नये पैंतरे भी अपना रही है। सरकार शराब आन्दोलनकारियों पर मुकदमे ठोक रही है। कभी खुद तो कभी दुकानदारों से तो कभी शराबियों से। लेकिन इन सब के बावजूद आंदोलनकारी डटे है।

सरकार शराब माफियाओं की चाकरी करने में व्यस्त है। उत्तराखंड की सत्ता में बैठने वाली कोई भी सरकार सम्भावनाओं से परिपूर्ण इस राज्य को पर्यटन प्रदेश भले ही न बना सकी हो लेकिन दारू प्रदेश बनाने की अपनी प्रतिबद्धता पूरी तन्मयता से निभा रही है।

 

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