उत्तर प्रदेश- यह बच्चों की सुनियोजित हत्या है…

प्रभात रंजन दीन
नवजात शिशुओं की कोमल देह पर सूरजमुखी का तेल घिस कर सैकड़ों शिशुओं को मार डाला गया. अनगिनत बच्चे बुरी तरह जख्मी हुए. जो शिशु बच गए उनके शरीर पर बड़े-बड़े घाव निकल आए. उनकी कोमल त्वचा फटने लगी और वे घातक संक्रमण का शिकार हुए. आप उन बच्चों की तस्वीरें देखेंगे तो आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे और आपके मन में स्वाभाविक मानवीय सवाल उठेंगे कि वे पाशविक और बर्बर तत्व कौन थे जिन्होंने नवजात शिशुओं के साथ ऐसी आपराधिक हरकत की? तो आप इसका जवाब भी सुन लें.
नवजात शिशुओं पर सूरजमुखी का तेल घिस कर उन्हें मार डालने के पाशविक दुष्प्रयोग में केंद्र सरकार के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की उत्तर प्रदेश इकाई, एक एनजीओ कम्युनिटी इम्पावरमेंट लैब और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की तिकड़ी शरीक है. इसके पीछे गेट्स फाउंडेशन की अकूत फंडिंग है, जिसे चाटने के लिए सरकार से लेकर नौकरशाह और धंधेबाज संस्थाएं अपने ही देश के बच्चों और मांओं को खतरनाक रसायनों को परखने का उपकरण बना देते हैं. दुष्प्रयोगों के बाद सरकार और संस्थाएं सब भाग खड़ी होती हैं और भुक्तभोगी दर्दनाक मौत झेलने के लिए छोड़ दिए जाते हैं.
शीर्ष अदालतें भी ऐसे अमानवीय दुष्प्रयोगों पर संदेहास्पद कन्नी काट लेती हैं. ऐसा ही नवजात शिशुओं की दर्दनाक मौत के मसले में भी हुआ. मीडिया के चारित्रिक स्खलन की तो कोई सीमा ही नहीं. सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दे भी वही उछाले जाते हैं जिनमें मीडिया का अपना राजनीतिक पूर्वाग्रह और आर्थिक आग्रह होता है. उत्तर प्रदेश में महज डेढ़ साल में सौ से अधिक नवजात शिशुओं की मौत पर मीडिया ने शातिराना उपेक्षा बरती. गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में 50-60 बच्चों की मौत का मसला भी इसलिए उठा कि उसके पीछे राजनीतिक हित सध रहा था और सरकार उसे सही तरीके से ‘मैनेज’ नहीं कर पाई.
घटना के विस्तार में जाएंगे, उसके पहले यह बताते चलें कि जिन दो जिलों में नवजात शिशुओं के मरने और बुरी तरह जख्मी होने की भयावह घटना घटी, वहां के लोग कहते हैं कि मरने वाले शिशुओं की तादाद चार सौ से कम नहीं है. हमने सौ शिशुओं की मौत का जिक्र इसलिए किया कि यह आंकड़ा इलाहाबाद हाईकोर्ट के सामने औपचारिक तौर पर पेश हो चुका है. उदाहरण के बतौर हम आपके समक्ष 10 नवजात शिशुओं की मौत का ब्यौरा पेश करेंगे और इतने ही जख्मी बच्चों के बारे में बताएंगे. ‘चौथी दुनिया’ के पास अमेठी और रायबरेली के विभिन्न गांवों के ऐसे कई भुक्तभोगी परिवारों के रिकॉर्डेड बयान भी हैं जो उनके नवजात शिशुओं पर तेल घिसे जाने की त्रासद घटना का पर्दाफाश करते हैं.
आपने देखा ही कि किस तरह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के साथ साठगांठ कर देश के 145 जिलों में जन्म-दर कम करने के लिए ‘मिशन परिवार विकास’ के नाम पर महिलाओं को ‘डिम्पा’ इंजेक्शन चुभोने का अभियान चला रखा है. ‘डिपो मेड्रॉक्सी प्रोजेस्टेरोन एसीटेट’ (डिम्पा) दवा खूंखार यौन अपराधियों की यौन ग्रंथी नष्ट करने की सजा (केमिकल कैस्ट्रेशन) में इस्तेमाल की जाती है. ‘चौथी दुनिया’ ने पिछले दो अंकों में केंद्र सरकार की इस करतूत का सिलसिलेवार और तथ्यवार पर्दाफाश किया, लेकिन सरकार ने इस अमानवीय आपराधिक अभियान को वापस नहीं लिया.
इस प्रसंग में भी मीडिया ने शातिराना चुप्पी साधे रखी. समाचार चैनल न्यूज-24 ने खबर उठाई भी तो उसे आखिर में झूठा बता दिया. ‘चौथी दुनिया’ ने अपने पिछले अंक में न्यूज-24 के उस कृत्य को भी प्रामाणिकता के साथ ‘एक्सपोज़’ किया. नवजात शिशुओं पर सूरजमुखी का तेल घिसने का दुष्प्रयोग ‘डिम्पा-अभियान’ के पहले किया गया. इसके लिए उत्तर प्रदेश के दो जिले अमेठी और रायबरेली चुने गए थे. बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की फंडिंग पर चलने वाली योजना नवजात शिशुओं के शरीर पर सूरजमुखी का तेल घिसने की थी.
कहा गया कि नवजात शिशुओं की मृत्यु-दर कम करने के लिए शिशुओं की देह पर सूरजमुखी का तेल मला जाएगा. लेकिन असलियत में इसके पीछे का इरादा नवजात शिशु मृत्यु-दर कम करना नहीं, बल्कि शिशुओं के शरीर पर ‘कोल्ड प्रेस्ड सनफ्लावर सीड ऑयल’ घिस कर उसका असर देखना था. यह सबगेट्स फाउंडेशन के इशारे पर हो रहा था और उसके लिए जरिया बना केंद्र सरकार का राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और लखनऊ की एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) कम्युनिटी इम्पावरमेंट लैब.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की उत्तर प्रदेश इकाई के तत्कालीन निदेशक अमित कुमार घोष ने इस आपराधिक कृत्य में एनजीओ को मदद पहुंचाने का बीड़ा उठाया और अमेठी और रायबरेली के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को बाकायदा लिखित आदेश (एसपीएमयू/एनएचएम/सीएच/18-9-4/2015-15/3329/30, दिनांकः 30.10.2014) जारी कर दिया कि इस कृत्य में वे एनजीओ की मदद करें. शासन का आदेश पाकर दोनों जिलों के सीएमओ ने सभी सरकारी अस्पतालों के अधीक्षकों कोयही फरमान जारी कर दिया. एनजीओ के प्रमुख डॉ. विश्वजीत कुमार की सरकार में कितनी पैठ है, इसका अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है.
यह तुगलकी फरमान जारी करने के पहले राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन या उसके सहयोगी सरकारी उपक्रम ‘सिफसा’ (राज्य परिवार नियोजन सेवा अभिनवीकरण परियोजना एजेंसी) ने न तो तेल की तकनीकी या उसके विषैलेपन की वैज्ञानिक जांच कराई और न एनजीओ से ही इसकी जांच कराने को कहा. सीधे नवजात शिशुओं के शरीर पर तेल घिसने की मंजूरी दे दी. एनएचएम निदेशक ने अपने सरकारी आदेश-पत्र में एनजीओ के मालिक विश्वजीत कुमार को देश का मशहूर पब्लिक हेल्थ साइंटिस्ट बता कर एनजीओ के साथ अपनी साठगांठ पर आधिकारिक मुहर लगा दी.
नवजात शिशुओं के शरीर पर खतरनाक तेल घिसने की परियोजना दो वर्ष (जनवरी 2015 से लेकर दिसम्बर 2016) के लिए थी. एनजीओ खुद यह मानता है कि अमेठी और रायबरेली के 276 गांवों के 41 हजार 72 नवजात शिशुओं की देह पर सूरजमुखी का तेल घिसा गया. लिहाजा, इलाके के लोगोंकी इस बात में दम है कि तेल की घिसाई के कारण तीन-चार सौ नवजात शिशुओं की मौत हुई. सौ नवजात शिशुओं की मौत का संदर्भ हाईकोर्ट के संज्ञान में आ चुका है. सूरजमुखी तेल की घिसाई के कारण सौ बच्चों के मरने की मौत तो छोड़िए,सरकार ने अपने दस्तावेज में एक भी बच्चे की मौत को शुमार नहीं किया है.
एनजीओ ने भी शासन को ऐसी कोई रिपोर्ट न देकर सबूत छिपाने और मिटाने का आपराधिक कृत्य किया है. एनजीओ से जुड़े लोग ही यह कहते हैं कि एक समय ऐसा भी आया जब खुले बाजार से सनफ्लावर रिफाइंड ऑयल खरीद कर शिशुओं के शरीर पर घिसवा दिया गया. एनजीओ रायबरेली के शिवगढ़ से अपना कैंप ऑफिस चला रहा था और तेल की कारगुजारी वहीं से ऑपरेट हो रही थी. कम्युनिटी इम्पावरमेंट लैब ‘सक्षम स्नेह नवजात शिशु तेल’ के नाम पर सूरजमुखी का तेल (कोल्ड प्रेस्ड सन फ्लावर सीड ऑयल) मुफ्त में मुहैया कराता था और सरकारी अस्पतालों में जन्म लेने वाले शिशुओं के शरीर पर उसे घिसवाता था.
अंधेरगर्दी देखिए कि शिशुओं की देह पर तेल घिसवाने में सरकारी अस्पताल के कर्मचारियों से काम लिया जाता था. इस आपराधिक कृत्य की वजह से तकरीबन डेढ़ साल में सौ से अधिक शिशुओं की मौत हो गई और सैकड़ों बच्चे गंभीर रूप से जख्मी हो गए. जख्मी शिशुओं के शरीर फफोलों से भर गए. उन्हें तरह-तरह के चर्म रोग हो गए और वे एलर्जी का शिकार हो गए. एनजीओ ने जख्मी बच्चों का इलाज भी नहीं कराया और सहमति-प्रपत्र दिखा कर भाग खड़े हुए.विष-विज्ञान (टॉक्सिकोलॉजी) के विशेषज्ञ डॉ. एलकेएस चौहान बताते हैं कि सूरजमुखी के बीज का तेल सबसे अधिक असंतुलित तेल होता है.
इसके अणुओं में लंबी कारबन श्रृंखला होती है और हाइड्रोजन अणुओं से असंतृप्त होते हैं. इसमें पैलमिटिक एसिड की मात्रा नौ प्रतिशत, स्टीयरिक एसिड सात प्रतिशत, ओलेइक एसिड 40 प्रतिशत और लिनोलेइक एसिड की मात्रा 74 प्रतिशत तक पाई जाती है. खाने में भी इसके इस्तेमाल से परहेज किया जाना चाहिए, नवजात शिशुओं की देह पर इसे मलने की तो बात ही दूर रही. डॉ. चौहान कहते हैं कि जो लोग नवजात शिशुओं पर सनफ्लावर सीड ऑयल की मालिश करते हैं, वे शिशुओं की जान जोखिम में डालते हैं. नवजात शिशुओं के शरीर पर मलते ही यह तेल फैटी एसिड्स में ब्रेक कर जाता है और शिशुओं की कोमल त्वचा की ऊपरी सतह को तोड़ कर तमाम संक्रामक और क्षोभक तत्वों (इरिटेंट्स) को त्वचा के अंदर घुसने का रास्ता बना देता है.
इससे शिशुओं की त्वचा की नमी नष्ट हो जाती है, त्वचा में दरारें पड़ने लगती हैं, पानी रिसने लगता है और एक्जिमा समेत कई अन्य घातक बीमारियां प्रवेश कर जाती हैं. शिशु रोग विशेषज्ञों का कहना है कि नवजात शिशुओं के शरीर पर सूरजमुखी के तेल की मालिश कतई उचित नहीं है. डॉक्टर बताते हैं किमां की कोख से ही देह के ऊपर एक पतली झिल्ली (वर्निक्स) लेकर पैदा हुए शिशुओं के शरीर को वही झिल्ली बाहरी संक्रमण से बचाती है. जांचे-परखे हुए स्वच्छ और स्वस्थ तेल की अत्यंत कोमल मालिश से धीरे-धीरे झिल्ली हटती है और तब तक शिशु का शरीर बाहरी आबोहवा से अनुकूलन बना लेता है.
संक्रमण के कारण ही नवजात शिशुओं की मृत्यु का दर खास तौर पर भारत के ग्रामीण इलाकों में अधिक है. लोगों में जागरूकता का अभाव है, जिसका फायदा उठा कर बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के फंड से इतराए एनजीओ और एनएचएम ने सूरजमुखी का तेल घिस कर उसका नतीजा जानने की आपराधिक कोशिश की और इस कोशिश में सैकड़ों शिशुओं को मार डाला. यह खतरनाक क्लिनिकल ट्रायल था, जिस पर नियंत्रण का भारत सरकार ने आजादी के 70 साल बाद भी कोई कारगर तरीका अख्तियार नहीं किया है.
आप ध्यान रखें कि बच्चों के शरीर पर सूरजमुखी के बीज का तेल घिसने की परियोजना विश्व स्वास्थ्य संगठन के नाम पर घुसाई गई जिसकी फंडिंग बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन कर रहा है. तेल घिसने की योजना शुरू करते हुए एनजीओ के प्रमुख डॉ. विश्वजीत कुमार ने कहा था कि नवजात शिशुओं पर सूरजमूखी का तेल चमत्कारिक काम करेगा. और ठीक ऐसा ही हुआ, लेकिन नकारात्मक नतीजों के साथ. बिना जांचे परखे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने धंधेबाज एनजीओ के साथ मिल कर तेल-घिसने के प्रोजेक्ट को दो साल तक जारी रखने की मंजूरी दी.
यह किसी भी जागरूक व्यक्ति को पता है कि विषैले पदार्थ या रसायन का मानव पर प्रयोग आपराधिक कृत्य की परिधि में आता है. इसके बावजूद कानून को ताक पर रख कर इस खतरनाक तेल का इस्तेमाल नवजात शिशुओं पर किया गया. शिशुओं के मरने पर तेल की गुणवत्ता और प्रामाणिकता की वैज्ञानिक और वैधानिक जांच की मांग भी की गई, लेकिन इसकी भी सरकार ने अनदेखी कर दी. विडंबना यह है कि खतरनाक तेल के इस्तेमाल के लिए सरकार और एनजीओ दोनों ने मिल कर पहले ही सारी पेशबंदी कर ली थी. गांव के भोले-भाले अशिक्षित लोगों से एक फॉर्म पर हस्ताक्षर लेकर रख लिया था.
हस्ताक्षर लेने के बाद एनजीओ ने उस फॉर्म को भर कर उसे सहमति प्रपत्र बना लिया. जिनसे हस्ताक्षर लिया उन्हें यह नहीं बताया कि उनके नवजात शिशु पर किस तरह का तेल घिसना है, क्यों घिसना है और इसका क्या खतरनाक असर होगा. खतरनाक तेल के कुप्रभाव से बच्चे मरे और जो बुरी तरह जख्मी हुएउनका इलाज कराने में भोले-भाले गरीब मां-बाप आर्थिक रूप से भी भीषण संकट में आ गए. अमेठी और रायबरेली जिले के गांवों में बड़े ही गुपचुप तरीके से चलाए जा रहे इस खतरनाक खेल की सुगबुगाहट मिलने पर समाजसेवी पवन कुमार सिंह ने इस मामले में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से लेकर स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव और शासन तक से पूछताछ की और बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और एनजीओ के खिलाफ कार्रवाई के बारे में पूछा, लेकिन सरकार की तरफ से कोई सुगबुगाहट नहीं दिखी.
बाल स्वास्थ्य विभाग के महाप्रबंधक डॉ. अनिल कुमार वर्मा ने पहले तो बेसाख्ता झूठ बोला कि नवजात शिशुओं के शरीर पर तेल का उपयोग किए जाने के सम्बन्ध में भारत सरकार या एनएचएम द्वारा कोई आदेश जारी नहीं किया गया है. फिर यह कहा कि कम्युनिटी इम्पावरमेंट लैब को रायबरेली और अमेठी में केवल अध्ययन करने की इजाजत दी गई है और इस अध्ययन में दोनों जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को सहयोग देने का निर्देश दिया गया है. साफ है कि गेट्स फाउंडेशन, एनएचएम की यूपी इकाई और एनजीओ ने आपसी मिलीभगत करके खतरनाक खेल खेला और सैकड़ों नवजात शिशुओं को अपना शिकार बना डाला. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की राज्य कार्यक्रम प्रबंधन इकाई में कम्युनिटी प्रॉसेस अनुभाग के महाप्रबंधक डॉ. राजेश झा ने तो यहां तककह दिया कि ऐसी कोई सूचना ही उनके पास उपलब्ध नहीं है.
समाजसेवी पवन कुमार सिंह ने फिर अमेठी और रायबरेली के सीएमओ से सम्पर्क कर इस खतरनाक खेल को तत्काल प्रभाव से बंद करने का आग्रह किया, लेकिन दोनों सीएमओ ने मुख्यालय और शासन के आदेश का हवाला देकर मना कर दिया. जीवन रक्षा के मूल संवैधानिक अधिकार का संरक्षण करने के बजाय प्रदेश सरकार एनजीओ के आपराधिक कृत्य को अपना संरक्षण देती रही और नवजात शिशुओं की हत्या होती रही. आखिरकार विवश होकर पवन कुमार सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में जनहित याचिका दाखिल की. याचिका में पूरे घटनाक्रम की जांच कराने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इस मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया. हाईकोर्ट की डबल बेंच में खुद मुख्य न्यायाधीश दिलीप बी. भोसले मौजूद थे और उनके साथ न्यायाधीश राजन रॉय बैठे थे.
हाईकोर्ट ने इस मामले को संवेदनशील मानते हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की यूपी इकाई के निदेशक आलोक कुमार (तब तक अमित कुमार घोष स्थानांतरित हो चुके थे) को तलब कर लिया. सरकार से कोई समुचित जवाब देते नहीं बन पड़ा. आलोक कुमार ने अदालत के समक्ष गलती स्वीकार की और अदालत से कहा कि सरकार प्रोजेक्ट से सम्बन्धित सभी आदेश वापस लेती है. हाईकोर्ट ने उन सारे निर्देशोंको भी वापस लेने का आदेश दिया जो तेल-प्रोजेक्ट को सहयोग करने के लिए विभिन्न स्तर के अधिकारियों को जारी किए गए थे. मिशन निदेशक नेमुख्य न्यायाधीश की बेंच को यह भी आश्वासन दिया कि प्रोजेक्ट बंद करने के बाद के अनुवर्ती आदेश भी तत्काल प्रभाव से जारी कर दिए जाएंगे. यानि, सरकार ने हाईकोर्ट के हस्तक्षेप पर तेल-घिसने की परियोजना के पूरा होने के हफ्ताभर पहलेउस पर रोक लगा दी.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकार 15 दिनों के भीतर सारे जरूरी कदम उठाए जिससे भविष्य में नवजात शिशुओं की जान जोखिम में न पड़े. हाईकोर्ट का फैसला सात दिसम्बर 2016 को आया. हाईकोर्ट ने सरकार को 15 दिन का समय दिया था. लिहाजा, सरकार को 22 दिसम्बर तक का वक्त मिल गया. इस तरह नवजात शिशुओं के शरीर पर तेल-घिसने की करतूत औपचारिक तौर पर रुक भी गई और व्यवहारिक तौर पर प्रोजेक्ट का लक्ष्य पूरा भी हो गया. प्रोजेक्ट को 31 दिसम्बर 2016 तक ही चलना था.हाईकोर्ट ने तेल घिसने से हुई नवजात शिशुओं की मौत की तरफ ध्यान नहीं दिया और न ही सरकार या मिशन को यह निर्देश ही दिया कि इस जघन्य करतूत के दोषी अफसरों और एनजीओ पर कानूनी कार्रवाई की जाए.

जिसने शिशुओं को मारा, सरकार ने उसे ही दे दिया दूसरा प्रोजेक्ट..!

उत्तर प्रदेश सरकार ने उसी एनजीओ को ‘कंगारू मदर थिरेपी प्रोजेक्ट’ का काम सौंपा है, जिस पर बेजा तेल घिस कर तकरीबन सौ नवजात शिशुओं को मार डालने और अनगिनत बच्चों को जख्मी करने का गंभीर आरोप है. हाईकोर्ट के आदेश पर सरकार ने तेल-प्रोजेक्ट को बंद कर परोक्ष रूप से एनजीओ का अपराध स्वीकार भी कर लिया. लेकिन फिर भी उसी एनजीओ को नए प्रोजेक्ट में शरीक कर लिया जाना एनजीओ के साथ शासन की मिलीभगत की आधिकारिक पुष्टि करता है. इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि आखिर कम्युनिटी इम्पावरमेंट लैब नामक इस एनजीओ पर सरकार इतनी मेहरबान क्यों रही है.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की उत्तर प्रदेश इकाई ने इस एनजीओ के माध्यम से नवजात शिशुओं पर सूरजमुखी तेल का दुष्प्रयोग कर उनके जीवन और स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया और अब उसी एनजीओ को अपना हेल्थ पार्टनर बना कर करोड़ों का खेल कर रही है. शासन के एक आला अधिकारी ने ही बताया कि इस एनजीओ को लगातार काम मिलता रहे और शासन-प्रशासन में उसका धंधा निर्बाध गति से चलता रहे इसके लिए एनजीओ ने कई बड़े अफसरों के रिश्तेदारों को मोटे वेतन पर अपने यहां मुलाजिम नियुक्त कर रखा है. विचित्र किंतु सत्य है कि बच्चों को मारने के बाद अब वही एनजीओ‘कंगारू मदर थिरेपी प्रोजेक्ट’ में शरीक होकर माताओं को सिखा रहा है कि बच्चों को कैसे कलेजे से लगा कर रखें.

एनएचएम हो या सिफ्सा, सबको है बस धन की लिप्सा..!

नवजात शिशुओं के शरीर पर सन फ्लावर सीड ऑयल घिसने के प्रोजेक्ट में उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, सिफसा (स्टेट इन्नोवेशन्स इन फैमिली प्लानिंग सर्विसेज़ प्रोजेक्ट एजेंसी) और एनजीओ कम्युनिटी इम्पावरमेंट लैब की मिलीभगत थी. इसे त्रिपक्षीय सहभागिता का नाम दिया गया था. हद यह है कि सरकार ने एक पीसीएस अधिकारी अवनीश सक्सेना को सिफसा में परियोजना प्रबंधन इकाई का प्रमुख बना कर बैठा दिया था. सक्सेना परियोजना के बीच ही भाग खड़े हुए या हटा दिए गए.सक्सेना को ‘डिम्पा प्रोजेक्ट’ की भी निगरानी करनी थी और इसके लिए उन्हें तीन लाख रुपए मासिक वेतन पर रखा गया था. फिलहाल यह पद रिक्त है, जल्द ही किसी ‘अनुकूल’ नौकरशाह को इस पद पर बैठाया जाएगा.
सिफसा का अस्तित्व भी विवादों से घिरा रहा है. इसकी नींव ही भीख के धन से पड़ी थी. अमेरिकी फंडिंग से उत्तर प्रदेश के 18 जनपदों में जन्मदर स्थिर करने के लिए सिफसा प्रोजेक्ट शुरू किया गया था, लेकिन वर्ष 2006 में प्रोजेक्ट के पूरी तरह फेल हो जाने के कारण अमेरिका ने फंडिंग  रोक दी थी. दरअसल, जिन जिलों में यह एजेंसी काम कर रही थी वहां जन्म-दर कम होने के बजाय बढ़ गई. तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस संस्था को बंद करने का निर्णय लिया, लेकिन तत्कालीन अधिशासी निदेशक चंचल कुमार तिवारी ने इस संस्था को बंद होने से बचाया. उन्होंने सभी अठारह जिलों में सिफसा की यूनिटों को तो बंद किया, लेकिन राज्य स्तर पर इसे जिंदा रखा.
तिवारी ने उन जिलों के निकम्मे प्रभारियों सहित लगभग सौ अधिकारियों/कर्मचारियों को अमेरिकी फंड के बचे हुए धन से आने वाले ब्याज से वेतन देने देने का विकल्प मुख्यमंत्री को सुझाया. वर्ष 2006 तक यह व्यवस्था चलती रही. उसी समय राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का प्रारम्भ हुआ और सिफसा को पुनर्जीवित करने का मौक़ा मिल गया. सभी मंडलों में उन्हीं अठारह निकम्मों को मंडलीय कार्यक्रम प्रबंधक बना दिया गया. बाद में उन्हें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से ही वेतन दिया जाने लगा. सिफसा के अधिशासी निदेशक को ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का मिशन निदेशक भी बना दिया गया.
सिफसा प्रशासनिक अधिकारियों के नाते-रिश्तेदारों और चहेतों की ऐशगाह की तरह है. एनएचएम में भर्ती सहित तमाम महत्वपूर्ण काम सिफसा के चहेतों से कराया जाने लगा और आज भी कराया जा रहा है. सभी मंडलों में उन्हीं अठारह निकम्मों को मंडलीय कार्यक्रम प्रबंधक बना दिया गया. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उत्तरप्रदेश की परिवार नियोजन और प्रचार-प्रसार की गतिविधियों को सिफसा के माध्यम से करा कर पिछले पांच साल में लगभग दो हज़ार करोड़ के बजट की हेराफेरी की जा चुकी है.

सौ शिशुओं की मौत में दस की बानगी

        गांव और विवरण                                                                       मरने वाले बच्चों की संख्या

1. ग्रामः इंदौरा, ब्लॉकः महराजगंज –                                                                                                  3
(तीन परिवार ने पहचान सार्वजनिक किए जाने से मना किया)
2. ग्रामः जैतीपुर, ब्लॉकः सतावां –                                                                                                       1
(रामपाल लोधी का बच्चा)
(जन्मः 27.11.2015, मृत्युः तरीख अनुपलब्ध)
3. ग्रामः कोन्सा, ब्लॉकः सतावां –                                                                                                         1
(गीता पत्नी नन्हें पाल का बच्चा)
(जन्मः 09.07.2015, मृत्युः 11.07.2015)
4. ग्रामः हाजीपुर, मजराः पुरेलाल साहब –                                                                                           1
(कमलेश लोध का बच्चा)
(जन्मः 17.06.2015, मृत्युः 19.06.2015)
5. ग्रामः सौइठा, मजराः झरिया, ब्लॉकः सतांव –                                                                                  1
(संतलाल पासी का बच्चा)
(जन्मः 27.07.15, मृत्युः 02.08.15)
6. ग्रामः पोरई, मजराः पुरे लोध –                                                                                                        1
(रूपवती पत्नी रामबाबू का बच्चा)
(जन्मः 30.07.2015, मृत्युः 01.08.2015)
7. ग्रामः हाजीपुर, मजराः पुरे महेशी, ब्लॉकः सतांव –                                                                          1
(रामकुमार लोध पुत्र श्रीपाल का बच्चा)
(जन्मः 02.08.2015, मृत्युः 03.08.2015)
8. ग्रामः अरियांव, मजराः डिहवा बाबा, ब्लॉकः तिलोई –                                                                     1
(हेमऊ पासी पुत्र विशंभर पासी का बच्चा)
(जन्मः 03.08.2015, मृत्युः 05.08.2015

   सैकड़ों जख्मी शिशुओं में दस की बानगी

        गांव और विवरण                                                                 गंभीर रूप से जख्मी होने वाले बच्चों की संख्या

1. ग्रामः पोखरनी (भुजिया गांव) –                                                                                                                   1
(सुनीता पत्नी केशवलाल का बच्चा)
2. ग्रामः खुसरूपुर, मजराः हुसेपुर, ब्लॉकः सतांव –                                                                                         1
(बिट्टन देवी का बच्चा)
3. ग्रामः सोइठा, पुरवा झड़िया, ब्लॉकः सतांव –                                                                                               1
(बिसुना पत्नी सोनू का बच्चा)
4. ग्रामः डोमापुर, ब्लॉकः महराजगंज –                                                                                                          1
(श्रीमती गुधनू का बच्चा)
5. ग्रामः जैतीपुर, ब्लॉकः सतांव –                                                                                                                    1
(मां प्रेमा का बच्चा)
6. ग्राम कोन्सा, ब्लॉकः सतांव –                                                                                                                     1
(पहचान सार्वजनिक किए जाने से मना किया)
7. ग्रामः भीतरगांव, ब्लॉकः खीरों –                                                                                                                 1
(पहचान सार्वजनिक किए जाने से मना किया)
8. ग्रामः जिहवां, ब्लॉकः महराजगंज –                                                                                                           1
(राम अवतार का बच्चा)
9. ग्रामः डोडेपुर, ब्लॉकः खीरों –                                                                                                                   1
(पहचान सार्वजनिक किए जाने से मना किया)
10. ग्रामः बोनई, ब्लॉकः सतांव –                                                                                                                   1
(रूपा का बच्चा)
 

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