कट्टरपंथियों की धमकी से खौफ में जी रहा सरदाना का परिवार, पत्नी की बात सुन कांप जाएंगे आप

नई दिल्ली। विवादित ट्वीट पर आज तक के एंकर रोहित सरदाना को मिल रही धमकियों पर उनकी पत्नी प्रमिला दीक्षित चिंतित हैं। उन्होंने एक लंबा-चौड़ा लेख लिखकर अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर सेलेक्टिव सोच रखने वालों के मुंह पर करारा तमाचा मारा है। फर्स्टपोस्ट पर प्रकाशित उनका लेख यहां दिया जा रहा।

पढ़िए क्या लिखतीं हैं  प्रमिला

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे, बोल जबां अब तक तेरी है तेरा सुतवां जिस्म है तेरा, बोल कि जां अब तक तेरी है फैज़ साहब ने जब इसे लिखा तो किसी कौम विशेष के लिए नही लिखा लेकिन मौजूदा वक्त में इसके मायने जरूर एकपक्षीय हो गए हैं सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम् । प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् , एष धर्मः सनातन: ॥ सत्य बोलना चाहिए, प्रिय बोलना चाहिए, सत्य

किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिए। प्रिय किन्तु असत्य नहीं बोलना चाहिए; यही सनातन धर्म है ॥ रोहित सरदाना सनातन धर्म से जरा भटके और पत्रकार हो गए. पत्रकार की तरह एक सवाल उठाया और उठाया भी क्या अनुवाद किया जिसका ओरिजिनल अंग्रेजी में उनके ट्वीट से चौबीस घंटे पहले ट्वीट किया गया था. लेकिन अंग्रेजी में सब सेक्यूलर होता है या शायद उस ओर से जानबूझ कर आंखे बंद कर ली. क्योंकि टारगेट रोहित सरदाना नहीं शायद वो जलते मुद्दे थे जिस पर उनसे पहले किसी ने बहस नहीं की. फिर चाहे वो मसला तीन तलाक का हो या बंगाल में दुर्गा पूजा बनाम मोहर्रम. खैर ये बहस तथाकथित निष्पक्ष पत्रकारिता और तथाकथित या कहिए एकपक्षीय अभिव्यक्ति की आजादी की है.

15 तारीख को यही ट्वीट कोई अंग्रेजी में करता है शाम 5 बजकर 56 मिनट पर…पूरा एक दिन बीत जाता है न किसी के धर्म का अपमान होता है न किसी की भावनाएं आहत होती हैं. सोलह तारीख को करीब पच्चीस घंटे बाद रोहित सरदाना पांच बजकर छप्पन मिनट पर उसका अनुवाद ट्वीट करते हैं. और फिर अचानक भावनाएं आहत होने लगती हैं और फिर आहत भावना में भी लोग योजनाए बनाते हैं संगठित तरीके से जुटते हैं.

देश भर में दर्जनों एफआईआर प्लान करते है और रोहित सरदाना के नंबर देश विदेश में बंटते हैं, वाट्सएप ग्रुप बनते हैं. सुनियोजित तरीके से उन्हें नौकरी से निकलवाने का प्लान बनाया जाता है. सवाल ये कि नौकरी जाने से आपकी आहत भावनाएं शरीर त्याग देंगी और नई भावनाएं सृजन ले लेगी. यहां ये बताना जरूरी है 22 तारीख को वो दो दफा इस पर खेद जता चुके हैं.

चलिए इस पर भी चर्चा नही करते. 21 नंवबर मंगलवार शाम एक कॉल आती है सैयद बोल रहे हैं लखनऊ से, ‘उस …(गाली) को कह देना जान से मार देंगें.’ थोड़ी देर बाद हैदर बोल रहे हैं गुजरात से.. ‘उस …(गाली) को कह देना गोली से उड़ा देंगे’. एक ही पैटर्न की कॉल थी. पति को बताया उन्होंने कोई भी कॉल उठाने से मना किया. बस तबसे रशिया, मालदीव, जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका, घाना, थाईलैंड जिन देशों के कहीं नाम भी नहीं सुने वहां से भी धमकी के फोन आ रहे हैं. सोचिए देश विदेश में रोहित सरदाना इतनी ख्याति कैसे पा गए कि लोग इनके एक-एक ट्वीट पर नजरें गड़ाए बैठे हैं.

21 तारीख से फोन बजना शुरू हुआ पहले थोड़ा डर तो लगा, लेकिन लगा धमकियों से क्या घबराना? 22 तारीख को मुझे उतारकर गाड़ी पार्किंग में लगाने गए पति के पीछे जब डर से मैं भागी तो समझ आया बात इतनी भी छोटी नही है. पत्रकार हूं लेकिन एक पत्नी जब ये वीडियो देखती है जिसमें कोई मौलाना उसके पति का सिर कलम करने के एक करोड़ रुपए दे रहा तो खबर नही लगती खौफ होता है.

समझ नही आता सुरक्षा लें कि न लें. बच्चे को स्कूल भेजें या न भेजें. पति ऑफिस जाएं न जाएं. दरवाजे की हर घंटी पर खुद आगे आने का फैसला. घर छोड़ कहीं चले जाने का खयाल और इन तमाम चिंताओं में किसी तरह दो निवाले और अभिव्यक्ति की आजादी का अचार.

आजादी की लड़ाई बहुत बड़ी बात है. मैं अभी अपने पति को इतना बड़ा भी नही आंकती, लेकिन बात तो बिल्कुल सच है जिनके परिवार होते हैं वो क्रांति नहीं राजनीति ही कर सकते हैं. और हां, इतनी ऐसी-तैसी में इसके भी कयास लगा लिए हैं लगाने वालों ने रोहित सरदाना पॉलिटिक्स ज्वाइन करना चाहते हैं वो रास्ता बना रहें है कंट्रोवर्सी के जरिए.

भाईसाहब जब आपके तेरह महीने के बच्चे के सर्दी के कपड़ों की शॉपिंग नही हो पाती महज इसलिए कि बाजार निकलने में भी खतरा हो सकता है तो ये कंट्रोवर्सी की बात सुनकर वाकई थप्पड़ मारने का मन करता है ऐसी थ्योरी को. आइए लीजिए पैसे और मेरे बच्चे के लिए थर्मल इनरवियर, मोजे और कुछ स्वेटर ले आइए.

एक कयास शो की टीआरपी बढ़ाने का भी

आदमी अपने हुनर से मुकाम बनाता है. आप ही आंकते हैं ये सब, लेकिन एक मध्यमवर्गीय इंसान नौकरी ही करता है और नौकरी बदलता है. नौकरी बदलने पर निश्चिंत होकर पार्टी करता है. परिवार को घुमाने ले जाता है उन्हें घर में बंद कर परिवार के लिए सुरक्षा की गुहार नही लगाता.

अभी भी कभी ये लगता है कि बात खत्म होने को है, लेकिन फिर कोई वीडियो डरा जाता है. कोई नही…बात फिल्मी लगेगी, लेकिन एक मध्यमवर्गीय पत्नी की तरह मैं साए की तरह हूं पति के साथ. उसे कुछ हुआ तो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर एक परिवार किस तरह तबाह होता है, ये भी देखेगा वो समाज जहां सलेक्टिव होना ही सेक्युलर होना बन चुका है.

(प्रमिला दीक्षित स्वतंत्र पत्रकार हैं.)-यह लेख  फर्स्ट्पोस्ट से साभार लिया गया है

 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button