कभी चुनाव न हारने वाले करुणानिधि, जिन्होंने अपनी कलम से लिखी तमिलनाडु की तकदीर

नई दिल्ली। दक्षिण भारत की कम से कम 50 फिल्मों की कहानियां और डायलॉग लिखने वाले करुणानिधि की पहचान एक ऐसे राजनीतिज्ञ के तौर पर थी जिसने अपनी कलम से तमिलनाडु की तकदीर लिखी. तेज तर्रार, बेहद मुखर करुणानिधि ने जब द्रविड़ राज्य की कमान संभाली तो उन्होंने कई दशक तक रुपहले पर्दे पर अपने साथी रहे एम जी रामचंद्रन और जे जयललिता को राजनीति में पछाड़ दिया. उनके अंदर कला और राजनीति का यह मिश्रण शायद थलैवर (नेता) और कलैग्नार (कलाकार) जैसे उन संबोधनों से आया जिससे उनके प्रशंसक उन्हें पुकारते थे.

करुणानिधि का राजनीतिक प्रभाव केवल उनके राज्य तक ही सीमित नहीं था. उनकी ताकत की धमक राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में सत्ता के गलियारों तक थी और इसी के बल पर उन्होंने कभी कांग्रेस के साथ तो कभी भाजपा के साथ गठबंधन करके उसे सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई. हालांकि इसके लिए उन्हें कटु आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा. आलोचकों ने उन्हें मौकापरस्त तक कह दिया.

सिर्फ 14 साल में राजनीति में कर ली थी एंट्री
मुथुवेल करुणानिधि के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1938 में तिरूवरूर में हिन्दी विरोधी प्रदर्शन के साथ शुरू हुई. तब वह केवल 14 साल के थे. इसके बाद सफलता के सोपान चढ़ते हुए उन्होंने पांच बार राज्य की बागडोर संभाली.

ई वी रामसामी ‘पेरियार’ और द्रमुक संस्थापक सी एन अन्नादुरई की समानाधिकारवादी विचारधारा से बेहद प्रभावित करुणानिधि द्रविड़ आंदोलन के सबसे भरोसेमंद चेहरा बन गये. इस आंदोलन का मकसद दबे कुचले वर्ग और महिलाओं को समान अधिकार दिलाना था, साथ ही यह आंदोलन ब्राह्मणवाद पर भी चोट करता था.

फरवरी 1969 में पहली बार बने मुख्यमंत्री
फरवरी 1969 में अन्नादुरई के निधन के बाद वी आर नेदुनचेझिएन को मात देकर करुणानिधि पहली बार मुख्यमंत्री बने. उन्हें मुख्यमंत्री बनाने में एम जी रामचंद्रन ने अहम भूमिका निभाई थी. वर्षों बाद हालांकि दोनों अलग हो गए और एमजीआर ने अलग पार्टी अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम (अन्नाद्रमुक) की स्थापना की.

1957 से छह दशक तक रहे विधायक
करुणानिधि 1957 से छह दशक तक लगातार विधायक रहे. इस सफर की शुरुआत कुलीतलाई विधानसभा सीट पर जीत के साथ शुरू हुई और 2016 में तिरूवरूर सीट से जीतने तक जारी रही. सत्ता संभालने के बाद ही करुणानिधि जुलाई 1969 में द्रमुक के अध्यक्ष बने और अंतिम सांस लेने तक वह इस पद पर बने रहे.

1971, 1989, 1996 और 2006 में भी बने मुख्य
इसके बाद वह 1971, 1989, 1996 और 2006 में मुख्यमंत्री बने. उन्हें सबसे बड़ा राजनीतिक झटका उस वक्त लगा जब 1972 में एमजीआर ने उनके खिलाफ विद्रोह करते हुए उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और उनसे पार्टी फंड का लेखा जोखा मांगा. इसके बाद उस साल एमजीआर को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. एमजीआर ने अलग पार्टी अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम (अन्नाद्रमुक) की स्थापना की और आज तक राज्य की राजनीति इन्हीं दो पार्टियों के इर्द गिर्द ही घूम रही है.

1989 में की सत्ता में वापसी
एमजीआर की अगुवाई में अन्नाद्रमुक को राज्य विधानसभा चुनावों में 1977, 1980 और 1985 में जीत मिली. एमजीआर का निधन 1987 में हुआ और तब तक वह मुख्यमंत्री रहे. इस दौरान करुणानिधि को धैर्य के साथ विपक्ष में बैठना पडा़. इसके बाद 1989 में उन्होंने सत्ता में वापसी की.

राजनीति में न तो स्थाई दोस्त होते हैं और न ही दुश्मन, इस कहावत को चरितार्थ करते हुए करुणानिधि ने कई बार कांग्रेस को समर्थन दिया. केंद्र की यूपीए सरकार में द्रमुक के अनेक मंत्री रह चुके हैं. इसके अलावा उन्होंने भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए को भी समर्थन दिया और अटल बिहारी वाजपेई कैबिनेट में भी उनके कई मंत्री थे.

फिल्मों का सफर
उन्होंने अपनी पहली फिल्म राजकुमारी से लोकप्रियता हासिल की. उनके द्वारा लिखी गई स्क्रिप्ट में राजकुमारी, अबिमन्यु, मंदिरी कुमारी, मरुद नाट्टू इलावरसी, मनामगन, देवकी, पराशक्ति, पनम, तिरुम्बिपार, नाम, मनोहरा आदि शामिल हैं.

 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Back to top button