कर्नाटक चुनाव: कैसे बचेगी येदियुरप्पा सरकार, क्या है बीजेपी का प्लान?

नई दिल्ली/ बंगलुरू। बीजेपी कर्नाटक को दक्षिण भारत के प्रवेश द्वार की तरह देख रही है. यहां सरकार बनाने के लिए बीजेपी और बीएस येदियुरप्पा को आठ विधायकों की और जरूरत है. और आठ का आंकड़ा पार करने पर ही विधानसभा में उनका बहुमत साबित होगा. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें शपथ लेने की अनुमति तो दे दी लेकिन अभी 112 के मैजिक नंबर पर गहन मंथन और फैसला होना बाकी है.

क्या होगी बीजेपी की रणनीति?

अगर कर्नाटक सरकार को ‘C/O बेल्लारी’ माना जाए, तो रेड्डी बंधु और उनके सहयोगी ‘ऑपरेशन लोटस’ को जरूर दोहराना चाहेंगे. 2008 का वह ऑपरेशन जो उन्होंने बड़ी कामयाबी के साथ पूरा किया था. तब कांग्रेस और जेडीएस के कई विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद येदियुरप्पा के लिए बहुमत पाना आसान हो गया था. इनमें से सात ने तब बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और पांच जीत गए. कहा जाता है कि पूरी डील रेड्डी ग्रुप ने कराई थी.

उस दौर को लेकर तमाम बातें कही जाती हैं. येदियुरप्पा 2008 से 2011 तक मुख्यमंत्री थे. तब ‘माइनिंग बैरॉन’ कहे जाने वाले जी. जनार्दन रेड्डी कहा करते थे कि बीएसवाई तो बेंगलुरु में सीएम हैं, मैं बेल्लारी का सीएम हूं.

yediyurappa

उस घटना को एक दशक बीत चुका है. इस समय ‘ऑपरेशन लोटस 2.0’ की जरूरत है. पिछली बार के मुकाबले इस बार छह विधायक कम हैं. तब 110 थे, अब 104 हैं. अब जरूरत है कि 14 विधायक फ्लोर टेस्ट की वोटिंग के वक्त गैर हाजिर रहें. तभी बीजेपी 104 विधायकों के साथ बहुमत तक पहुंच पाएगी.

सीबीआई दिलाएगी बहुमत?

निशाने पर वो विधायक होंगे, जिनके खिलाफ सीबीआई या इनकम टैक्स से जुड़ा कोई मामला है. इससे उन्हें तोड़ने में आसानी होगी. इस तरह के लोगों में विजयपुरा के आनंद सिंह हैं, जो इलेक्शन से पहले बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आए. आनंद सिंह खदान से जुड़े धंधे में बड़ा नाम हैं. उन्हें सीबीआई ने गिरफ्तार किया था. बेल्लारी में वो अपने समर्थकों से कह रहे हैं कि कांग्रेस के साथ ही रहेंगे लेकिन पिछले 48 घंटे में एक से ज्यादा बार वो ‘पहुंच से बाहर’ हो चुके हैं. ऐसे में उनकी निष्ठा पर सवाल है.

इसी तरह, दूसरा निशाना लिंगायत विधायकों पर होगा. वे कुमारस्वामी से नाखुश हैं. कुमारस्वामी वोक्कालिगा हैं. लिंगायतों को कहा जा रहा है कि वे येदियुरप्पा का साथ दें, जो खुद भी लिंगायत हैं. हालांकि लिंगायत कांग्रेस विधायकों के लिए यह सफाई दे पाना आसान नहीं होगा कि चुने जाने के कुछ घंटों के बाद ही वे कैसे पार्टी बदल सकते हैं.

Reddy Brother with Yedurappa

जेडीएस के मुकाबले कांग्रेस ग्रुप को तोड़ना आसान लग रहा है. जेडीएस में जो लोग ओल्ड मैसूर इलाके से नहीं हैं, वे भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि कुमारस्वामी सरकार में मंत्रीपद मिल सकता है. वजह यह है कि कुमारस्वामी यह दिखाना चाहेंगे कि उनकी पार्टी साउथ कर्नाटक तक ही सीमित नहीं है. वे पूरे इलाके का प्रतिनिधित्व चाहेंगे. दूसरी तरफ कांग्रेस के वो नेता जो हैदराबाद कर्नाटक से हैं, उन्हें लेकर संदेह है. बेल्लारी, चित्रदुर्ग, रायचूर इलाके रेड्डी भाइयों के प्रभाव में आते हैं.

बीजेपी देगी पार्षद पद का लॉलीपॉप?

ऐसे विधायक जो एक और चुनाव नहीं लड़ना चाहते, उनके लिए प्लान बी है. कर्नाटक विधान परिषद की छह सीटों पर आठ जून को चुनाव होने हैं. 104 सीट के साथ बीजेपी इस हालत में है कि चार सीटें जीत सके. ऐसे में जो लोग बीजेपी से टिकट लेकर दोबारा चुनाव न लड़ना चाहें, उन्हें विधान परिषद का ऑफर दिया जा सकता है.

जनार्दन रेड्डी और बी. श्रीरामुलु के पास यह काम है कि येदियुरप्पा सरकार को बनाया और बचाया जाए. येदियुरप्पा 2007 में महज सात दिन के लिए सीएम बने थे. उसके बाद 2008 में 39 महीने तक सीएम रहे. तीसरे टर्म का पहला दिन शुरू हो गया है लेकिन येदियुरप्पा फिलहाल इस सस्पेंस में होंगे कि सरकार कितने दिन तक चलेगी. कुछ दिन या 2023 तक.

 

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