कर्नाटक में विपक्ष की ऐतिहासिक एकता की राह इतनी भी आसान नहीं

राजेश श्रीवास्तव

नविपक्षी दलों के सामने सबसे बड़ा मुद्दा

कौन होगा विपक्ष का चेहरा भाजपा की बढ़ी मुश्किल

                   मोदी के विजय रथ पर लग सकती है लगाम

लखनऊ । कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण के मौके पर जुटे विपक्ष के तमाम नेताओं ने मंच पर जिस तरह एकजुटता दिखाई। वह ऐतिहासिक जरूर थी लेकिन इस एकता को 2०19 तक संभाल पाना जहां विपक्षी दलों के लिए बेहद मुश्किल है या आसान, यह तो वक्त बतायेगा। लेकिन विपक्ष ने जिस तरह की मिसाल पेश की उससे सत्ता पक्ष यानि भारतीय जनता पार्टी की पेशानी पर बल जरूर पड़ गये हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो ऐसी विपक्षी एकता इससे पहले कभी नहीं देखने को मिली। जब दो धुर विरोधी सपा-बसपा, रालोद-कांग्रेस सभी एक-दृसरे के हाथ में हाथ मिलाये गलबहियां करते नजर आ रहे थ्ो। सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती जिस तरह हंसते-मुस्कुराते नजर आये वह ऐतिहासिक दृश्य भविष्य की तस्वीर की जहां इबारत लिख रहे थ्ो।

वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह संदेश जरूर दे रहे थ्ो कि अब 2०19 की उनकी राह इतनी आसान भी नहीं है। बुधवार को कर्नाटक में जो नजारा दिखा वह पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के द्बारा लगाए गए आपातकाल के बाद कांग्रेस्स के खिलाफ जनता पार्टी के साथ आए दलों की याद ताजी करा रहा था। लेकिन सवाल यह है कि विपक्षी नेताओं का ये साथ कितने दिनों तक रहेगा? क्या साल 2०19 के लोकसभा चुनाव में मोदी के खिलाफ विपक्ष इसी तरह एकजुट होकर सामना करेगा या फिर उससे पहले ही अपने बोझों तले दबकर बिखर जाएगा? मालूम हो कि कर्नाटक चुनाव नतीजों के बाद 21वें राज्य के रूप में बीजेपी के सरकार बनाने के दावे पर सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह पलीता लगाया। उससे कांग्रेस-जेडीएस ने आपस में हाथ मिला लिया। उससे संजीवनी मिली। इतना ही नहीं, विपक्ष के बाकी दल उनके समर्थन में खड़े हो गए। मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस सहित कई दलों के द्बारा विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश काफी समय पहले से चल रही थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पा रही थी।

इस राह में पहली सफलता तब मिली जब गोरखपुर और फूलपुर में संयुक्त विपक्ष को उपचुनाव में विजयश्री मिली। कर्नाटक में येदियुरप्पा के इस्तीफा देने के बाद राहुल गांधी ने कहा था, कि हम विपक्ष के साथ मिलकर साल 2०19 में मोदी को हराएंगे। यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान राहुल गांधी को सौंपने के बाद मार्च 2०18 में बीजेपी के खिलाफ गठबंधन को मजबूत करने के मकसद से कई विपक्षी पार्टियों के नेताओं को डिनर पर आमंत्रित किया था। इसमें विपक्ष के करीब 2० दलों के नेता उपस्थित हुए थे, लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने इसमें खुद शामिल न होकर अपनी पार्टी के नेताओं को भेजा था। लेकिन कर्नाटक में नजारा कुछ अलग ही दिखा। कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष के तकरीबन सभी दल एकजुट हुए।

इसमें पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक के गैर बीजेपी नेता शामिल हैं। यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, बसपा प्रमुख मायावती, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी, टीडीपी अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू, एनसीपी शरद पवार, आरएलडी अध्यक्ष अजीत सिह, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और सीपीआई डी राजा सहित विपक्ष के सभी नेता मौजूद थे। हालांकि तेलंगाना के सीएम केसीआर नहीं पहुंच सके। साल 2०14 में नरेंद्र मोदी जबरदस्त बहुमत के साथ देश की सत्ता पर काबिज हुए। मोदी लहर ने विपक्ष के सभी दलों का सफाया कर दिया था। पिछले लोकसभा चुनाव में कोई भी दल उनके आगे टिक नहीं पाया था। अब यही वजह है कि कर्नाटक के बहाने विपक्ष की एकजुटता को शक्ति प्रदर्शन के तौर पर भी देखा जा रहा है।

बीजेपी लाख इनकार करे, लेकिन मायावती और अखिलेश की जोड़ी फूलपुर और गोरखपुर के उपचुनावों में उसे चित कर विपक्षी एकता की ताकत का एहसास करा चुकी है. ऐसे में अगर साल 2०19 में ये सभी एकजुट होकर चुनावी रण में उतरे, तो फिर बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ जाएगी और मोदी के ‘विजय रथ’ पर लगाम लग सकती है। विपक्ष 429 लोकसभा सीटों पर मोदी-शाह के सामने पेंच फंसा सकते हैं। फिलहाल विपक्षी दल एक साथ नजर आ रहे हैं, लेकिन मोदी के मुकाबले चेहरा कौन होगा? यह विपक्ष के बीच बड़ा सवाल है, जिसका उत्तर तलाश कर पाना आसान नहीं है। कांग्रेस किसी क्षेत्रीय दल के नेता को प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में स्वीकार करने के मूड में नहीं दिख रही है। वहीं, विपक्ष के क्षत्रप, जो कांग्रेस के संभावित सहयोगी दल हैं, वो फिलहाल राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य किसी नेता को पीएम उम्मीदवार के तौर पर स्वीकार करने को राजी नहीं हैं। ऐसे में ये विपक्ष की एकता कितने दूर तक का सफर तय करेगी, ये कहना मुश्किल है।

 

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