कश्मीर और नक्सलवाद पर मोदी का विरोध जरूरी

लखनऊ । छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सलियों के हाथों सीआरपीएफ के 26 जवानों की हत्या के बाद पूरा देश गुस्से से उबल रहा है। लेकिन सरकार की प्रतिक्रिया बेहद ठंडी है। वैसे यह तय है कि हमले का बदला लेने के लिए सुरक्षा बल कोई बड़ी कार्रवाई करेंगे, लेकिन यह भी तय है कि यह कार्रवाई एक सीमित दायरे में ही होगी। ठीक वैसे ही जैसे उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक करवाया गया। सर्जिकल स्ट्राइक में भारतीय जवानों ने पाकिस्तान के कब्जे वाले इलाके के एक बड़े दायरे में काफी नुकसान पहुंचाया लेकिन नतीजा जस का तस रहा। आतंकवाद और पाकिस्तान से भेजे जाने वाले आतंकवादियों का सिलसिला जारी है। कुल मिलाकर नतीजा यही है कि मोदी सरकार कश्मीर और नक्सलवाद के मोर्चे पर भटकी हुई दिख रही है। वो वही सारी गलतियां कर रही है जिनके लिए अब तक वो कांग्रेस को कोसती रही है। कश्मीर में अलगाववादियों पर जिस तरह की सख्ती की उम्मीद की गई थी वैसा कुछ नहीं हुआ उलटे प्रधानमंत्री कश्मीर में विकास पहुंचाने की बातें करने लगे। ठीक ऐसी ही हालत नक्सली इलाकों में है। प्रधानमंत्री मोदी हर कुछ दिन पर उनसे हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने की अपील जारी कर देते हैं लेकिन वैसा कोई बड़ा कदम नहीं उठाते जिससे इस समस्या का जड़ से सफाया हो सके।

क्यों ढीले पड़ गए मोदी?

हमने इस बारे में सरकारी नीतियों से जुड़े कुछ जानकारों से बात की। कुल मिलाकर जो नतीजा है वो यही कि कश्मीर और नक्सलवाद दोनों ही सवालों पर मोदी यथास्थितिवाद के शिकार हो चुके हैं। सरकार के हावभाव से यही लग रहा है कि वो इन दोनों मोर्चों पर हाथ लगाना नहीं चाहती क्योंकि जैसे ही इन दोनों मसलों पर सेना को खुली छूट दे दी गई हंगामा खड़ा हो जाएगा और इसका असर सरकार की प्राथमिकताओं पर पड़ेगा। मतलब ये कि सरकार इन दोनों मोर्चों पर आक्रामक दिखना तो चाहती है, लेकिन कुछ भी बड़ा करने से बचना चाहती है। इसके लिए उसके पास तमाम बहाने भी हैं। जैसे कि सुप्रीम कोर्ट ने नक्सली इलाकों में सेना को स्पेशल पावर देने पर रोक लगाई है वगैरह-वगैरह। सच्चाई यही है कि सरकार चाहती तो इन बाधाओं को पार करके कार्रवाई की जा सकती थी। तो सवाल ये है कि इन मोर्चों पर पीएम मोदी ढीले क्यों पड़ गए? जवाब यही है कि वो अब इन दोनों ही मामलों में अपने जाने-पहचाने तेवरों के बजाय सलाहकारों की सलाह के भरोसे हैं। सुरक्षा एजेंसियों और अफसरशाही के जो लोग पीएम को इन मसलों पर सलाह देते हैं वो काफी किताबी किस्म के लोग होते हैं और कोई भी साहसी और निर्णायक कदम उठाने का विरोध करते हैं। सीआरपीएफ के पूर्व आईजी आरके सिन्हा

सुकमा कांड पर अब आगे क्या?

गृह मंत्रालय ने 24 घंटे के अंदर यह साफ कर दिया है कि नक्सली समस्या के लिए सेना का इस्तेमाल नहीं होगा। जवानों को स्पेशल पावर भी किसी न किसी बहाने नहीं दिया जाएगा। नक्सलवाद से प्रभावित राज्यों की जो बैठक राजनाथ सिंह ने बुलाई है उसकी तारीख भी 8 मार्च की तय की है। यानी करीब आधा महीना बाद। कोशिश है कि तब तक लोगों का गुस्सा कुछ कम हो जाए और इसके बाद सुरक्षा एजेंसियों से यह सुनिश्चित करने को कहा जाएगा कि वो कहीं पर 20 से 30 नक्सलियों को मार दे। ताकि सरकार अपना चेहरा बचा सके कि सुकमा हमले का बदला लिया गया है। लोग भी इतने से शायद खुश ही हो जाएंगे। मोदी सरकार का यही रवैया हैरानी में डालने वाला है। क्योंकि सत्ता में आने से पहले इस मसले पर उनके तेवर बिल्कुल अलग थे। अब उसे यह चिंता ज्यादा है कि सख्त कार्रवाई हुई तो दुनिया भर में भारत की इमेज पर असर पड़ेगा। दिल्ली, मुंबई जैसे शहर जहां पहले से ही आतंकवादी खतरा है, वहां नक्सलियों के भी आकर हमला करने की आशंका बढ़ जाएगी। जहां तक छत्तीसगढ़ के सीएम रमन सिंह का सवाल है खुद उनकी भूमिका शक के दायरे में है। अक्सर आरोप लगते हैं कि उनकी नक्सलियों के साथ सेटिंग है। वैसे यह जरूर है कि मोदी सरकार चुपचाप ही सही लेकिन नक्सली इलाकों में चल रहे मौजूदा ऑपरेशन को जारी रखेगी। अंदर ही अंदर चल रही इस कार्रवाई में अब तक नक्सलियों को काफी नुकसान भी पहुंचाया जा चुका है। लेकिन इस रणनीति के साथ दिक्कत यही होती है कि इसमें लोगों को साफ फर्क दिखाई नहीं देता है।

कश्मीर पर भटक चुके हैं मोदी

एक जमाने में धारा 370 समेत कश्मीर से जुड़े तमाम मसलों पर आक्रामक दिखने वाले नरेंद्र मोदी सत्ता में आने के बाद उसी नीति पर चल रहे हैं जिस पर मनमोहन सिंह चला करते थे। इस रणनीति का ही असर है कि वहां के हालात बिगड़ते जा रहे हैं। लेकिन शायद खुद को सेकुलर और सबका साथ, सबका विकास पर अमल करने वाले प्रधानमंत्री के तौर पर दिखाने का नतीजा है कि पीएम मोदी उन सभी लोगों को निराश कर रहे हैं, जिन्होंने उनसे बहुत सारी उम्मीदें लगा रखी थीं। जम्मू और कश्मीर में हजारों रोहिंग्या मुसलमान अवैध तौर पर रह रहे हैं, केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियां अब तक इस मामले पर गाल बजाने के सिवा कुछ नहीं कर रहीं। पीएम मोदी ने भी इस तरफ से आंखें बंद कर रखी हैं। कश्मीर घाटी के जिन अलगाववादी आतंकवादियों से सख्ती से निपटना चाहिए था मोदी उनसे बातचीत और उन तक विकास पहुंचाने की बातें करने लगे हैं। कश्मीर घाटी में जवान अलगाववादियों के हाथों पिट रहे हैं और मोदी सरकार ऐसे गुंडों को रोजगार दिलाने की बात कर रही है। इस पूरे मामले में कश्मीरी पंडितों में सबसे ज्यादा निराशा है। कश्मीरी विस्थापितों के नेता सुशील पंडित का ये भाषण सुनकर आप समझ जाएंगे कि इस मसले पर मोदी किस हद तक भटक चुके हैं।

 

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