कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी से क्यों पीछे हटना पड़ा है

अमितेश 

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद को लेकर अपनी दावेदारी या यूं कहें कि अपनी चाहत दिखाई थी दो महीने पहले. मौका था कर्नाटक विधानसभा चुनाव का. दो महीने पहले ही खत्म हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के साथ-साथ गांधी-नेहरू परिवार के उत्तराधिकारी के मुख से निकले चंद अल्फाज ने उनकी दिल की भावना को जुबां पर ला दिया था.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि 2019 में कांग्रेस सबसे बड़े दल के तौर पर आती है तो वो प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे. राहुल गांधी के इस बयान को लेकर खूब सियासी बवाल भी हुआ. लेकिन, इस बयान को कांग्रेस के लोगों ने सकारात्मक बताया. हो सकता है कि राहुल गांधी अपने इस बयान के माध्यम से पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन, इसे विरोधियों ने राहुल की प्रधानमंत्री पद को लेकर ख्वाहिश के इजहार के तौर पर ही पेश किया.

कर्नाटक चुनाव के लगभग दो महीने बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सीडब्ल्यूसी यानी कांग्रेस वर्किंग कमिटी का गठन किया. इस बैठक में फिर से प्रधानमंत्री पद का मुद्दा गरमा गया.

रविवार को राहुल गांधी के नेतृत्व में हुई पहली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद पार्टी ने कहा था कि उसकी ओर से राहुल गांधी 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री का चेहरा होंगे. कांग्रेस ने राहुल गांधी को बीजेपी का मुकाबला करने के लिए समान विचारधारा वाले राजनीतिक दलों के साथ गठजोड़ करने के लिए अधिकृत किया है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम की तरफ से दिए गए प्रेजेंटेशन में चर्चा हुई कि कांग्रेस अपने दम पर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में 150 सीटों पर चुनाव जीत सकती है. जबकि अपने सहयोगियों के साथ 150 और सीटों का लक्ष्य रखा गया है. यानी कांग्रेस और दूसरी विरोधी पार्टियां मिलकर 300 से ज्यादा सीटें जीत सकती हैं.

सीडब्ल्यूसी की बैठक में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के चेहरे के तौर पर सामने लाने की जो कवायद की गई और इस मीटिंग से जो मेसेज गया, लगता है वो मोदी विरोधी क्षेत्रीय दलों को रास नहीं आया है. क्योंकि बीएसपी सुप्रीमो मायावती की तरफ से दो दिन बाद ही जो बयान आया, वो कांग्रेस के लिए परेशान करने वाला है.

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मायावती ने साफ कर दिया कि उनकी पार्टी आने वाले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा के चुनाव में तभी समझौता करेंगी जब उनकी पार्टी को सम्मानजनक सीटें मिलेंगी. बीएसपी सुप्रीमो के इशारे से साफ है कि भले ही वो इन तीन राज्यों की बात कर रही हैं, लेकिन, निशाना 2019 का है. असली खेल तो 2019 का ही है.

कुछ इसी तरह का बयान तेजस्वी यादव की तरफ से भी आया. तेजस्वी यादव ने भी राहुल गांधी के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर कांग्रेस की तरफ से की गई पहल और चर्चा पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि केवल राहुल गांधी ही अकले विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं है. तेजस्वी की तरफ से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बीएसपी अध्यक्ष मायावती, चंद्रबाबू नायडू और शरद पवार जैसे नेताओं का भी नाम लेकर राहुल की दावेदारी की हवा निकाल दी.

लगता है कांग्रेस को अपनी रणनीति में चूक का एहसास हो गया. अब कांग्रेस अपने कदम से पीछे हटने को मजबूर हो रही है. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस दो कदम पीछे हटने को तैयार हो गई है.

कांग्रेस ने संकेत दिए हैं कि उसे शीर्ष पद के लिए विपक्ष में से किसी भी ऐसे किसी उम्मीदवार को स्वीकार करने में एतराज नहीं है जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  का समर्थन नहीं हो.

इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार पार्टी के टॉप लेवल सूत्रों ने यह संकेत देते हुए कहा कि बीजेपी को 2019 में सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस राज्यों में विभिन्न दलों का गठबंधन बनाने पर विचार करेगी.

दरअसल, कांग्रेस की यही रणनीति है. कांग्रेस नेता पी चिदंबरम की तरफ से दिए गए प्रेजेंटेशन से भी यही बात झलकती है. कांग्रेस को लगता है कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में उसकी सीधी लड़ाई बीजेपी के साथ है. इन राज्यों में पिछली बार 2014 के मोदी लहर में बीजेपी को एकतरफा जीत मिली थी. लेकिन, अब पांच साल बाद कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि इन राज्यों में उसी हालत बेहतर होगी और बीजेपी से अच्छी खासी सीटें झटकने में कामयाब होगी.

दूसरी तरफ, बिहार में आरजेडी के साथ, झारखंड में जेएमएम के साथ और यूपी में एसपी-बीएसपी और आऱएलडी के साथ मिलकर बीजेपी और उसके सहयोगियों को पटखनी दी जा सकती है. कुछ इसी तरह की प्लानिंग कांग्रेस की तरफ से कर्नाटक में जेडीएस, तमिलनाडू में डीएमके, पश्चिम बंगाल में टीएमसी और केरल में भी पहले से मौजूद गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की है.

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कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगता है कि इस तरह के गठबंधन के दम पर वो मोदी को तगड़ी चुनौती दी जा सकती है. इसी उत्साह में कांग्रेस ने अपने अध्यक्ष को 2019 में विपक्ष की रणनीति के केंद्र में रखने की पूरी कोशिश की है. कांग्रेस ने गठबंधन से जुड़े हर फैसले लेने का अधिकार राहुल को दे दिया है.

लेकिन, दूसरे विपक्षी दलों की तरफ से आ रही प्रतिक्रिया से साफ है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को गठबंधन का नेता बनाने में अभी कई बाधाएं हैं. तभी तो कांग्रेस सूत्रों की तरफ से मायावती या ममता बनर्जी सरीखे किसी महिला उम्मीदवार के नाम को मोदी के मुकाबले आगे करने की बात कही जा रही है.

महिला होने के चलते विपक्ष को इनके नाम का फायदा भी हो सकता है. लेकिन, चुनाव से पहले विपक्षी दलों की तरफ से किसी एक के नाम को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करना इतना आसान नहीं होगा. विपक्ष में नेतृत्व को लेकर उलझन ने कांग्रेस को भी समझौतावादी कदम उठाने पर मजबूर कर दिया है.

 

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