कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व और BJP का सॉफ्ट सेक्युलरिज़्म 2019 में क्या गुल खिलाएगा?

नई दिल्ली। पिछले कुछ समय से कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों के नेता अपनी विचारधारा के विपरीत व्यवहार कर रहे हैं. हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कैलाश मानसरोवर यात्रा कर के लौटे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज ही इंदौर में बोहरा मुसलमानों के एक कार्यक्रम में ‘चुनावी सजदा’ किया है.

कांग्रेस पर जब-तब हिंदू विरोधी होने के आरोप लगते रहते हैं. लेकिन गुजरात और कर्नाटक चुनाव में जिस तरह राहुल गांधी ने मंदिर-मंदिर ‘दौड़’ लगाई, उससे उन्होंने यह मिथ तोड़ने की कोशिश की. वहीं बीजेपी की बात करें तो इस पार्टी पर भी मुस्लिम विरोधी होने का आरोप चस्पा है.

भले ही दोनों पार्टियां खुद को सबसे सेक्युलर बताती हों, लेकिन ये भी सच है कि राहुल गांधी के मंदिर जाने को कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व कहा गया और पीएम मोदी के अहमदाबाद की जाली मस्जिद, मगहर में कबीर जयंती और अब इंदौर में सैफी मस्जिद में जाने को बीजेपी का सॉफ्ट सेक्युलरिज़्म कहा जा रहा है.

पीएम मोदी के सैफी मस्जिद दौरे की बात करें तो इसके भी बड़े राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं. मध्य प्रदेश में आसन्न चुनाव से ठीक पहले शिवराज सिंह चौहान ने पीएम मोदी को यहां बुलाकर बड़ा दांव चला है.

ये पहला मौका है जब बोहरा समुदाय के किसी प्रवचन कार्यक्रम में कोई पीएम शामिल हुआ है. बीजेपी का दावा है कि वो हमेशा से ‘सबका साथ सबका विकास’ की बात करती आई है, लेकिन पिछले कुछ मौकों पर पीएम मोदी के टोपी नहीं पहनने से नाराज़ रहने वाले नेता इसे मुस्लिम वोट बैंक में पैठ बनाने की बीजेपी की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं. पीएम मोदी के इस पैंतरे को बीजेपी के सॉफ्ट सेक्युलरिज़्म के तौर पर भी देखा जा रहा है. पीएम मोदी के सैफी मस्जिद में जाने को बोहरा के ज़रिए मुसलमान वोट बैंक साधने की कोशिश भी मानी जा रही है. ऐसे में सवाल उठते हैं कि क्या 2019 में राम औऱ इमाम दोनों को बीजेपी साधेगी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंदौर में बोहरा समुदाय की मस्जिद में जाकर एक बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है. सैफी मस्जिद में मोदी शिया धर्मगुरु से गले मिले और उनसे पुराने रिश्ते को भी याद किया. मोदी के मस्जिद दौरे को इमेज बदलने की कोशिश मानी जा रही है.

बोहरा समुदाय के मुसलमानों के बीच पीएम मोदी का गर्मजोशी से स्वागत हुआ. धर्मगुरु ने खुद आगे बढ़कर अगवानी की. देश के प्रधानमंत्री को गले लगाया और उन्हें इस धार्मिक आयोजन के मंच तक लेकर आए. जब बोलने की बारी आई तो पीएम मोदी ने भी मन की बात कहने में हिचक नहीं की. मोदी ने कहा कि बोहरा समुदाय से पुराना रिश्ता रहा है.

इंदौर की सैफी मस्जिद में मोदी की संगत से कई गौर करने वाली तस्वीरें आईं. धर्मगुरु सैयदना आलीकदर मुफद्दल सैफुद्दीन से पीएम मोदी की बार-बार होती गुफ्तगू, पीएम के अभिवादन का अंदाज सब कुछ दिल जीतने की कोशिश जैसा था. पीएम मोदी को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया. बाकी भेंट भी मोदी ने माथे से लगाकर स्वीकार किया.

देश में बोहरा समुदाय के 15 लाख से ज्यादा मुसलमान हैं. सिर्फ मध्य प्रदेश में मुसलमानों की आबादी ढाई लाख के करीब है और ये चुनावी साल भी है. सियासत की समझ रखने वाले बोहरा समुदाय की इस संगत के मायने समझते हैं. मस्जिद में जाकर पीएम मोदी ने स्वच्छता अभियान, मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं का जिक्र किया तो साफ हो गया कि प्रधानमंत्री की निगाहें कहां हैं और निशाना कहां हैं.

2014 में भले ही बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दे पर फ्रंट फुट पर रही, लेकिन चुनाव जीतने के बाद पार्टी ने न सिर्फ राम मंदिर का ‘राग’ कम किया, बल्कि मुस्लिमों के लिए भी दरियादिली दिखाने की बात की.

बीते कुछ समय से बीजेपी ने उग्र हिंदुत्व पर जिस तरह से अपनी आवाज कुछ धीमी की है, उससे कयास लगाए जाने लगे हैं कि पार्टी को अपना ये हिंदूवादी चेहरा चुभने लगा है. यानि उसे अहसास होने लगा है कि यदि 2019 का ‘रण’ जीतना है तो सही मायने में ‘सबका साथ सबका विकास’ करना होगा.

 

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