कांग्रेस ग्रहण करते ही नसीमुद्दीन पर लगा ग्रहण, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता संजय दीक्षित का विरोध

लखनऊ। जैसी की सुगबुगाहट थी मायावती का विरोध करने वाले उन्ही के दाहिने हाथ नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने पार्टी का गठन न कर अब कांग्रेस के खेमे में शामिल होने का विचार किया था और आज अन्ततः कांग्रेस में शामिल हो गए। स्वभाव से शालीन पर दिलो दिमांग से चतुर नसीमुद्दीन सिद्दीकी मायावती के राज में महत्त्वपूर्ण विभागों का दायित्व बाखूबी निभा  चुके है।

आपको बता दे मायावती के मुख्यमंत्रित्व काल मे आवास विभाग में मंत्री रहते हुए इनके काल मे तत्कालीन प्रमुख सचिव स्व0 हरमिंदर राज सिंह की रहस्यमय परिस्थितयो में मौत हो गई थी। वे रात्रि देर  अपने सहयोगी IAS देश दीपक वर्मा के घर से वैवाहिक कार्यक्रम में सम्मलित होने के बाद वापस लौटे थे। बताया जाता है कि उन्होंने स्वंम अपनी रिवाल्वर से गोली मार ली थी। खासियत यह थी कि नसीमुद्दीन के घर के पीछे हुई इस घटना की जांच कब और कैसे हुई किसी को नही पता। यह रहस्य आज भी आवास विभाग में रहस्य बना हुआ है।

कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण करते ही जैसे ‘सिर मुंडाते ही ओले पड़े’ गये हो। ऐसा ही कुछ नसिंमुद्दीन सिद्दीकी के साथ आज घटित हुआ। आज वही कहावत  नसीमुद्दीन के लिए जैसे सही साबित हो गई।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नई दिल्ली के 24, अकबर रोड स्थित एआईसीसी (कांग्रेस मुख्यालय) दफ्तर पर एक तरफ नसीमुद्दीन कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर रहे थे वही दूसरी ओर हज़रतगज निवासी लखनऊ में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता संजय दीक्षित ने उनकी मुखालफत शुरू कर दी। संजय दीक्षित ने अपनी  फेसबुक वॉल पर , नसीमुद्दीन सिद्दीकी का नाम तो नही लिखा, पर  स्वागत कुछ इस प्रकार किया गया।

‘जनाधार वाले नेता पार्टी मे आये उनका हृदय से स्वागत है, लेकिन केन्द्रीय नेतृत्व को कुछ नेताओं द्वारा अपने निजी स्वार्थों को पूरा करने के लिये मिसगाइड किया जा रहा है। यह पार्टी की यूपी इकाई के लिये आत्मघाती साबित हो रहा है। अन्य दलों के कुछ रिजेक्टेड और बदनाम छवि/भ्रष्टाचार में सिर तक डूबे हुए नेताओं को पार्टी में शामिल करवाने और पार्टी की इमेज को चौपट करने वाले लोग कांग्रेस में शामिल किए जा रहे हैं। सवाल यहां यह उठता है कि उन नेताओं को जिनकी अपने समाज और क्षेत्रों में कोई मान्यता नहीं है और उनका खुद का समाज उन पर भरोसा नहीं करता उन्हें शामिल करवाने का मुख्य उद्देश्य उनकी काली कमाई के अकूत भंडार से कुछ हिस्सा झटकने के साथ पार्टी की ईमानदार सेक्युलर और गांधीवादी छवि को धूलधूसरित कर अपना स्वार्थ पूरा किया जा रहा है।’

सवाल यह उठता है कि कांग्रेसी आलाकमान के फैसले को कार्यकर्ता नहीं मानते या फिर कार्यकर्ताओं की बात आलाकमान तक नहीं पहुंच पाती। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कहते हैं कि पार्टी में अभी भी कुछ दलाल टाइप के नेता हैं। वह निजी स्वार्थ के लिए पार्टी के शीर्ष नेताओं को उल्टा-सीधा पाठ पढ़ाया करते हैं। जब शीर्ष नेताओं को केवल फायदे गिनाए जाएंगे तो वह अपना फैसला फायदे के लिए ही करेंगे।

नसीमुद्दीन का विरोध करते हुए संजय दीक्षित की पोस्ट पर राकेश बाजपेयी लिखते हैं कि वह राजनेता नहीं बल्कि राजनीति के नौकर है। वहीं संतोष सिंह लिखते हैं कि पार्टी में अब ईमानदारी का कोई महत्व नहीं है। ईमानदार नेताओं को पार्टी ऐसे ही किनारे लगा देगी। अब पार्टी के कई नेताओं ने यह कहना शुरू कर दिया कि सपा सरकार के तत्कालीन खनन मंत्री गायत्री प्रजापति भी अब कांग्रेस में शामिल होंगे।

कभी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती का दाहिना हाथ रहे नसीमुद्दीन आज अपने कई समर्थकों के साथ पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की उपस्थिति में कांग्रसी हो गए। बसपा के बड़े मुस्लिम चेहरे रहे नसीमुद्दीन की कभी पार्टी और सरकार में तूती बोलती थी। सिद्दीकी के साथ तीन पूर्व मंत्री, चार पूर्व सांसद, लगभग तीन से चार दर्जन पूर्व विधायक, विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ चुके उम्मीदवार भी कांग्रेस में शामिल हुए। कभी बीएसपी के उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, बुंदेलखंड और पश्चिमी यूपी के प्रभारी रह चुके नसीमुद्दीन सिद्दीकी बसपा के प्रभावशाली नेता रहे हैं। पिछले वर्ष 10 मई को मायावती ने पैसों के लेन-देन के कारण  उन्हें पार्टी से निकाल दिया था। एक सप्ताह बाद ही नसीमुद्दीन ने अपने समर्थकों के साथ एक नई पार्टी राष्ट्रीय बहुजन मोर्चा भी बना ली थी।

जहाँ तक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता संजय दीक्षित का प्रश्न है यह दो-तीन पीढ़ी से कांग्रेस से जुड़े है। संजय दीक्षित भ्रष्टाचार जे विरुद्ध आवाज उठाने वाले कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे है ।मनरेगा के  भ्रष्टाचार का खुलासा करने को लेकर काफी चर्चित रहे है। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान इन्होंने यूपी में अकेले तत्कालीन उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का किसान यात्रा निकालकर विरोध किया। राहुल की खाट पंचायत यात्रा में इन्होंने मुख्य भूमिका का निर्वहन किया। यूपी में मनरेगा में चल रहे कथित भ्रष्टाचार की खिलाफत कर यह चर्चा में आए थे। सूत्रों का कहना है कि उस समय संजय दीक्षित बसपा के इसी कद्दावर नेता के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे, जो आज कांग्रेसी हो गया।

 

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