कानून अपना – अपना ..!!

tarkeshतारकेश कुमार ओझा

मुझे पुलिस ढूंढ रही थी। पता चला एक महिला ने मेरे खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज करा दी है। मुझे लगा जब मैने अपराध किया ही नही तो फिर डर किस बात का। लिहाजा मैने थानेदार को फोन लगाया। दूसरी ओर से कड़कते हुए जवाब मिला… तुम हो कहां … हम तुम्हारी खातिरदारी को तैयार हैं… चले आओ। थानेदार की बेरुखी भरी गुर्राहट  ने मुझे डरा दिया…। मैने घबराते हुए थानेदार से कहा… आप तो जानते हैं … मैं इस तरह का आदमी नहीं… शिकायत भी झूठी है… दूसरी ओर से फिर कड़कती आवाज सुनाई दी… चोप्प… सही गलत का फैसला करना हमारा काम नहीं… खुद आते हो या हम बारात लेकर आएं…। इससे मेरी घबराहट और बढ़ गई। लेकिन मैने धैर्य का दामन नहीं छोड़ा। सत्यमेव जयते का उद्घोष मन ही मन करते हुए मै मोहल्ले के लोगों के बीच पहुंचा और उनसे फरियाद की कि … आप लोग तो मुझे बचपन से जानते हो… आप लोगों को यह भी पता है कि उस  ने मुझे बेवजह फंसा दिया। आप लोग तो मेरा साथ दो … चलो मेरे साथ थाने और पुलिस से कहो कि मैं निरपराध हूं। जवाब में ठंडी प्रतिक्रिया से मेरे शरीर का खून भी ठंडा पड़ने लगा। पड़ोसियों ने कहा … भैया , सही – गलत का सर्टीफिकेट देने वाले हम कौन होते हैं.. यह तो पुलिस और अदालत का काम है। बेहतर होगा आप सरेंडर कर दो, निर्दोष होगे तो छूट ही जाओगे। इससे मेरी रही – सही हिम्मत भी जवाब दे गई। मैं दौड़ा – दौड़ा मोहल्ले के नेताजी के पास पहुंचा और उनके समक्ष अपनी पीड़ा बयां की। लेकिन उधर से भी ठंडा जवाब… भैया तुम्हारा पक्ष लेकर हम बेवजह का विवाद और पक्षपात का आरोप नहीं झेल सकते। फिलहाल तो तटस्थ रहना ही हमारे लिए बेहतर होगा। तुम फौरन पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दो। इससे मेरा खून खौलने लगा…. मैं चिल्ला उठा… क्या सरेंडर – सरेंडर लगा रखा है। क्या मैं भागता फिर रहा हूं। मैने थानेदार को खुद फोन किया… अपने को  निर्दोष जान कर ही मैं आप लोगों से मदद की अपील कर रहा हूं और आप लोग बस… । इतना कहते ही पुलिस जवानों की फौज मुझ पर टूट पड़ी और लगभग घसीटते हुए  ले जाकर लॉकअप में डाल दिया। मेरी लाख मिन्नतों का उन पर कोई असर नहीं पड़ा। दूसरे दिन मैने खुद को जेल में पाया। सीखचों पर सिर पटकने के दौरान एक सहकैदी ने मुझे ढांढस बंधाया…। अरे गलती तुम्हारी है… तुम्हें मामले का पता लगते ही शिकायत करने वाले  के साथ म्यूचयल या कहें तो एडजस्टमेंट कर लेना चाहिए था। या फिर अदालत से अग्रिम जमानत के लिए ही ट्राइ करना चाहिए था। लेकिन तुम जैसों पर तो सच्चाई का भूत सवार रहता है। लगे अपने को निर्दोष साबित करने। तुम क्या कोई बड़े नेता हो … जो हफ्तों छिपे फिरोगे, लेकिन जब सरेंडर का वक्त आया तो कह सकोगे …. मैं कहीं भागा नहीं था… मैं तो अपने वकीलों से सलाह – मशविरा करने बाहर गया था…। कुछ दिन बाद तुम छूट भी जाओगे। निचली अदालत से सजा हो गई तो ऊपरी अदालत से छूट जाओगे। भक्तगण तुम्हें फूल – माला से लाद देंगे। फिर किसी चैनल पर बैठ कर तुम इंटरव्यू दोगे… मुझे न्याय – व्यवस्था पर पूरा भरोसा है… मेरे खिलाफ साजिश रची जा रही थी… । यही सच्चाई है बच्चू , समझा करो। मेरी आंखों के सामने अंधेरा छाता जा रहा था। जेल में लंबा वक्त बिताने का डर मुझे अंदर से तोड़ता जा रहा था। वह सह – कैदी मुझे महाज्ञानी प्रतीत हो रहा था। महसूस हो रहा था जैसे वह सहकैदी महाभारत का श्रीकृष्ण हो और मैं उनसे ज्ञान ले रहा अर्जुन । मैं सीखचों पर सिर पटकता हुआ बस नहीं … नहीं चिल्ला रहा था। मुझे अजीब नजरों से देख रहे दूसरे कैदी हंसते हुए कह रहे थे… यहां आने वाला हर नया कैदी ऐसे ही करता है… धीरे – धीरे सब एडजस्ट हो जाता है… , यह भी हो जाएगा।


लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं। तारकेश कुमार ओझा, भगवानपुर, जनता विद्यालय के पास वार्ड नंबरः09 (नया) खड़गपुर ( प शिचम बंगाल) पिन ः721301 जिला प शिचम मेदिनीपुर संपर्कः 09434453934
, 9635221463

 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button