कानून व्यवस्था पर अखिलेश को 1०० में 5० तो योगी को 1०० में 7०, मै रबर स्टाम्प नहीं (राज्यपाल राम नाईक से विशेष मुलाकात )

राज्यपाल पद पर नाईक के चार साल पूरे होने पर बहस, मुबाहिसें और जिरह

‘जननेता’ के रूप में पहचान रखने वाले राम नाईक का उत्तर प्रदेश के राज्यपाल पद पर चौथा वर्ष आगामी 22 जुलाई को पूरा हो रहा है। इन चार वर्षों के दौरान शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो जब राज्यपाल राम नाईक अखबारों के पन्नों और मीडिया के स्क्रीन पर सुर्खियों, समाचारों में न रहे हों। इससे उन्हें प्रदेश के पहले ‘प्रो-एक्टिव’ राज्यपाल की ख्याति मिली तो अनेक सवाल भी उठे हैं। राज्य में लोकप्रिय सरकार के रहते राज्यपाल की इस तरह की सक्रियता से कुछ क्षेत्रों में यह चर्चा भी है कि राज्यपाल अपनी समानान्तर सरकार चलाना चाहते हैं तो कुछ सीधे आरोप तक लगाते हैं कि श्री नाईक राज्यपाल पद पर रहते हुए परोक्ष रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी का कार्य कर रहे हैं। इस सम्बन्ध में अनेक क्षेत्रों में बहस हुई, पक्ष-विपक्ष में तर्क आये, सवाल उठे हैं, दलीलें दी जा रही हैं। ये सब किसी न किसी रूप में निरन्तर जारी है। प्रदेश के विभिन्न भागों में जाते हुए राज्यपाल की भी ऐसे सवालों से मुठभेड़ हुआ करती है। दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री पर सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने भी कह रखा है कि अब शायद राज्यपाल ने प्रदेश सरकार को खत लिखना बंद कर दिया है। या फिर शायद अब उन्हें प्रदेश की कानून-व्यवस्था बिल्कुल ठीक लगती है। राज्यपाल ने इस मिथक को भी गलत करार दे दिया है कि राज्यपाल केवल रबर स्टैंप होता है। इससे अलग राज्यपाल प्रदेश की विधि-व्यवस्था के प्रति सतर्क हैं, मामला चाहे शिक्षा क्षेत्र का हो, कहीं भ्रष्टाचार का हो अथवा किसी भी क्षेत्र का। श्री नाईक हर जगह सम्पूर्ण सुशासन (गुड गवर्नेंस) की छवि और ध्वनि चाहते हैं। यही कारण है कि राम नाईक चार साल में अब तक के सबसे लोकप्रिय राज्यपाल के रूप में स्थापित हुए हैं जिन्होंने राजभवन के दरवाजे सही मायने में जनता के लिए खोल दिये हैं। श्री नाईक कहते हैं, उनकी अपनी कोई महत्वाकांक्षा नहीं, सिवा इसके कि राज्य में शासन विधि के अनुरूप चले; यही सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी भी है। संविधान की रक्षा की शपथ लेकर प्रदेश के राज्यपाल का पद संभालने वाले राम नाईक प्रारम्भ से ही राज्यपाल पद को ‘पेंशनर’ नहीं मानते। वे स्वयं के बारे में नकारात्मक बातों को दरकिनार करते हैं; अलबत्ता उन्होंने विनम्रता से स्वीकार किया है कि वह पहले ‘लोकसेवक’ हैं और बखूबी जानते हैं कि राज्यपाल पद के कार्य, संवैधानिक दायित्व व गरिमा क्या होती है। उनके रहते प्रदेश में कोई भी वह कार्य विधिक परिधि में ही हो सकेगा जो लोकहित के अनुकूल होगा। www.iwatchindia.com  के  स्पेशल करेस्पोंडेंट राजेश श्रीवास्तव ने एक भेंट में राज्यपाल से तमाम मुद्दों पर लम्बी बातचीत की और सवालों की बौछार से जानना चाहा कि राज्यपाल अपनी भूमिका के प्रति कितने ‘प्रो-एक्टिव’ हैं?

कानून व्यवस्था में अभी भी सुधार की जरूरत

राज्यपाल के तौर पर आपके चार वर्ष कैसे रहे?

नराज्यपाल के बतौर मेरी जवाबदेही सिर्फ दो लोगों या पक्षों के प्रति है। इनमें एक है- प्रदेश की जनता जिसका मैं विधिक अभिवावक हूं; और दूसरा- मेरी नियुक्ति करने वाले राष्ट्रपति। मुझे इस बात का सन्तोष है कि मैंने राज्य शासन को विधि के अनुरूप चलाने के लिए राज्य सरकार को उचित परामर्श देने की अपनी भूमिका का सही ढंग से निर्वहन किया है। मेरे काम का मूल्यांकन तो लोगों को करना चाहिए। मैं तो अपने काम को समय-समय पर जारी करता रहता हूं। कोशिश करता हूं कि हर शिकायत को सुनूँ और जो फरियाद लेकर आया है उसे संबंधित व्यक्ति तक भ्ोजूं। मैं शुरू से ही भाजपा की सक्रिय राजनीति की है। मैं इकलौता व्यक्ति हंू जो मुंबई से पांच बार सांसद रहा। कोई दो-तीन बार से ज्यादा नहीं जीता। राज्यपाल के साथ मेरे जो दायित्व हैं उनका ठीक से निवर्हन करूं यही प्रयास करता हूं। हआपने तीन साल अखिलेश सरकार के साथ गुजारे और अब एक साल से योगी सरकार के साथ हैं। दोनों में क्या फर्क देखते हैं ?
नमेरे लिये दोनों सरकारें अपनी हैं। मैं दोनों सरकारों को मश्विरा देता था और दे भी रहा हूं। यह बात और है कि अख्ोिलश सरकार मेरे मश्विरे को कम मानती थी। मैंने उन्हें भी कहा था कि यूपी का स्थापना दिवस मनायें। पर उन्होंने मेरी नहीं सुनीं। इस सरकार ने सुनीं और स्थापना दिवस हर जिला मुख्यालय पर तहसील दिवस पर मनाया गया। ऐसा नहीं कि अखिलेश सरकार ने कोई बात नहीं मानी। कुष्ठ पीड़ितों की बात है। उन्हें 2००8 में समिति ने 2००० रुपये मदद देने की सिफारिश की थी। उस समय उन लोगों को 3०० रुपये मिलता था। मैंने अखिलेश को कहा कि महंगाई बहुत है। 2०15 चल रहा है अब तो 2००० से अधिक राशि मिलनी चाहिए। अखिलेश ने मेरी सुनी औरर आज इन लोगों को 25००
रुपये मिल रहे हैं।

अखिलेश यादव कहते हैं कि लगता है कि राज्यपाल ने खत लिखना बंद कर दिया है या फिर वह कानून-व्यवस्था से संतुष्ट हैं ?

नइस बात पर राजनीति की जा रही है। मैं इतना ही कहूंगा कि मेरे सामने जो शिकायतें आती हैं मैं उस पर पत्र आज भी लिखता हूं। अभी बीते दिनों ही सपा का प्रतिनिधिमंडल आया था। उन्होंने जो ज्ञापन सौंपा या मांग रखी। मैंने उसे सरकार तक पहुंचा दिया। मेरा काम शिकायत को संबंधित व्यक्ति, राज्य सरकार, केंद्र सरकार और राष्ट्रपति तक पहंुचाना ही है। अखिलेश सरकार भी मेरी थी, यह भी मेरी ही सरकार है। मैं पहले भी कहता था कि सुधार की जरूरत
है आज भी सरकार को तीस प्रतिशत सुधार की जरूरत है। मैं आज भी सरकार को मश्विरा देता हूं।

अभी बीते दिनों लखनऊ विश्वविद्यालय में जो हुआ, वह बेहद गंभीर था, आप कुछ नहीं बोले ?

कुलाधिपति होने के नाते मेरा फर्ज था कि मैं बोलूं। लेकिन जिस दिन यह वाकया हुआ मैं मुंबई में था। दूसरे दिन जब सुबह आया तो देखा कि उच्च न्यायालय ने इस पर स्वत: संज्ञान ले लिया था। अब आप बताइये कि जिस मामले
पर हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है, जो न्यायिक जांच का हिस्सा है। उस पर मेरा बोलना क्या सही होता।। मैंने केवल इस घटना की निंदा की और कहा कि यह बेहद गंभीर मसला है। ज्यादा बोलना ठीक नहीं था। हाईकोर्ट जांच कर रही
है जो भी दोषी होगा, उसे सजा मिलेगी। एक बात और कहूंगा कि आप केंद्रीय विश्वविद्यालयों का हाल देखिये, उनसे अच्छी स्थिति आज राज्य के विश्वविद्यालयों की है। जहां का मैं कुलाधिपति हूं। एक लखनऊ विवि को छोड़ दें तो कहीं कोई ऐसी स्थिति नहीं है।

बीते दिनों एबीवीपी ने तीन दिवसीय समस्या समाधान शिविर लगाया था, जिसमें लविवि के छात्र-छात्राओं ने 8०० शिकायती पत्र दिये। शिकायतों में टॉयलेट, पीने के पानी और टीचरों की कमी जैसे मामले संज्ञान में आये?

मुझे इस शिविर या इसमें मिलने वाली शिकायतों के बारेे में कोई जानकारी नहीं है। लेकिन फिर भी साफ-सफाई, पीने का पानी, टॉयलेट की व्यवस्था देखना विवि प्रशासनन का काम है। हां मेरे तक बात आयेगी तो मैं जरूर देखूंगा। जहां तक टीचर्स की कमी की बात हैं तो मैंने 2०15 में एक समिति बनायी थी जो टीचर्स समेत अन्य मुद्दों पर विचार करने के लिए बनायी गयी थी। अब तक इस समिति की 4० से अधिक बैठकें हो चुकी हैं। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। जिसे मैंने सरकार को सौंप दिया है। जल्दी ही अच्छे परिणाम नजर आयेंगे। मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि आज विवि में पैसे की कमी नहीं है।

लखनऊ विवि के पीएचडी ओर्डिनेंस का क्या हुआ, क्यों लटका हुआ है?

इस बारे में मैं इस फोरम पर बात नहीं करना चाहता। आप विवि प्रशासन से पूछिये। उन्होंने मुझे भेजा था मुझे जो खामी लगी मैंने उसे वापस भेज दिया। जब वह वापस भ्ोजेंगे तो देखूंगा। जरूरी नहीं कि जो भी बात आये उसे मैं स्वीकार कर ही लूं। जो वाजिब नहीं है उसे कैसे मांग लूं। हसरकार के कामकाज के बारे में आपकी क्या राय है ? नयोगी सरकार में कुछ विषयों पर बहुत अच्छा काम हो रहा है। कृषि एवं किसानों के साथ-साथ औद्योगिक विकास और शिक्षा-व्यवस्था के क्षेत्र में अच्छा काम हुआ है। बीते दो वर्षो से समय पर दीक्षांत समारोह हो रहे हैं। 15.6० लाख विद्यार्थियों को उपाधि मिली है। सरकार ने इन्वेस्टर्स मीट का आयोजन किया। सरकार बिजली और कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर भी तेजी से काम कर रही है। सरकार के मुखिया अक्सर चर्चा करते हैं। मश्विरा लेते हैं और राय पर अमल भी करते हैं।

विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव कब तक होंगे?

कुछ जगहों पर चुनाव हो रहे हैं। ये निर्देश पिछले साल ही दे दिये गये थे। अभी विवि व महाविद्यालयों में प्रवेश की प्रक्रिया चल रही है। जब यह पूरी हो जाएगी चुनाव तो तभी होगा।

राज्यपाल के तौर पर आपका एक वर्ष शेष है अभी क्या लक्ष्य शेष है?

मैं अब तक के अपने सभी कामों से संतुष्ट हूं आगे भी जो भी चीजें सामने आएंगी उसको अच्छे ढंग से पूरा करूं, बस यही प्रयास करूंगा। मैं चाहता हूं कि मेरे कार्यकाल के दौरान यूपी सर्वोत्तम प्रदेश बन जाए। हालांकि इस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अच्छा काम कर रहे हैं।

राज्य में बेहतरी के लिए आप किस क्षेत्र में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता अनुभव करते है?

कानून-व्यवस्था सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यह ठीक होने पर बहुत हद तक सुशासन सुनिश्चित किया जा सकता है किन्तु सुधार की जरूरत तो निरन्तर शासन के सभी क्षेत्रों में है। एक अहम बिन्दु भ्रष्टाचार भी है। यह प्रदेश को तेजी से आगे बढ़ने से रोका रहा है जबकि ज्यादा आबादी तथा जरूरतें होने के कारण यहां सबसे ज्यादा आवश्यकता तीव्रतर विकास की है। हशासन के विभिन्न मामलों में बढ़ते भ्रष्टाचार के मसले पर आपका दृष्टिकोण क्या है? नयह चिन्ताजनक है। अलबत्ता, इस बारे में मुझे भी बहुत बार शिकायतें आप (पत्रकारों) और जनता के जरिये सवालों में मौखिक तथा सूचनाओं, अख़बारों में लिखित रूप से मिलती हैं। जब कोई मामला मेरे संज्ञान में लाया जाता है तो मैं उसके सम्बन्ध में मुख्यमंत्री या सरकार के अन्य सम्बन्धित लोगों से यथोचित बात करता हूं। अलबत्ता, यह देखना सरकार तथा इसकी मशीनरी का काम है।

सक्रियता की सनद

श्री राम नाईक के राज्यपाल के बतौर राजभवन प्रवेश के बाद ही जनता के लिए राज भवन के दरवाजे खोल दिये गये और राज्यपाल का लोकसम्पर्क शुरू हुआ।

सीधे प्रवर्ग और आंकड़ों पर एक नजर :-

आम नागरिकों,                         संस्थाओं से प्राप्त
मुलाकात-                          2०15 में                                       5,81०
मुलाकात-                          2०16 में                                        6,682
मुलाकात-                           2०17 से अब तक                          6,751
लखनऊ में कार्यक्रम-           2०15 में                                        199
लखनऊ में कार्यक्रम-           2०16 में                                        2०9
लखनऊ में कार्यक्रम-           17 से अब तक 245
प्रदेश के बाहर कार्यक्रम-       2०15 में                                       143
प्रदेश के बाहर कार्यक्रम –      2०16 में                                        136
प्रदेश के बाहर कार्यक्रम-        17 से अब तक114
राजभवन के द्बारा विज्ञप्तियां-            2०15 में 368
राजभवन के द्बारा विज्ञप्तियां –            2०16 में 438
राजभवन के द्बारा विज्ञप्तियां-             2०17 में 516
राजभवन द्बारा विज्ञप्तियां-                 17 से अब तक 497
उप्र के बाहर जाने के लिए एक वर्ष में राज्यपाल को कुल स्वीकृत दिन         -73
वर्ष 2०18 में राज्यपाल उप्र के बाहर गये कुल दिवसों की संख्या                  -24
राज्यपाल को 2० दिन का वार्षिक अवकाश उपभोग करने की अनुमति है। लेकिन
श्री नाईक ने मात्र दो बारही अपने वार्षिक अवकाश को प्रयोग किया है। वे 3
से 12 अक्टूबर 2०15 तक कुल 11० दिन उत्तराखंड के नैनीताल और 14 से 22 मई
2०16 तक कुल 9 दिन हिमांचलल प्रदेश के शिमला के भ्रमण पर रहे। वर्ष 2०17
और 2०18 में उन्होंने किसी तरह का अवकाश नहीं लिया है।

शब्दों के आवरण में सजा नाईक का व्यक्तित्व

श्री राम नाईक उत्तर प्रदेश के 28वें राज्यपाल हैं। केन्द्र में सत्ता परिर्वतन के बाद 14 जुलाई 2०14 को यूपी के राज्यपाल के रूप में मोदी सरकार ने उनका मनोनयन किया था। इसके एक सप्ताह बाद 22 जुलाई 2०14 को उन्होंने कार्यभार भी ग्रहण कर लिया था। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन सरकार में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री राम नाईक उससे पहले रेल राज्यमंत्री थे। श्री नाईक ने सियासी पारी के दौरान कई महत्वपूर्ण कार्य किये। महाराष्ट्र के उत्तर मुम्बई लोकसभा क्षेत्र से लगातार पांच बार चुनाव जीतने का कीर्तिमान (रिकॉर्ड) उनके नाम है। 2००4 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के गोविन्दा के मुकाबले पराजय के बाद श्री नाईक को बड़ा धक्का लगा था किन्तु उन्होंने लोकसेवा से हार नहीं मानी और राजनीति क्षेत्र में बने रहे। राम नाईक ने 2०13 में चुनावी राजनीति से किनारा कर लिया फिर भी उन्होंने पार्टी के लिए निरन्तर कार्यरत रहने की भी इच्छा जतायी थी। मुम्बई वालों की नजर में ‘उपनगरीय रेल यात्रियों के मित्र’ नाईक की असली पहचान है। नाईक ने संसद में ‘वन्दे मातरम’ का गान प्रारम्भ करवाया। उनके प्रयासों के फलस्वरूप ही अंग्रेजी में ‘बाम्बे’ और हिन्दी में ‘बम्बई’ को उसके असली मराठी नाम ‘मुम्बई’ में परिवर्तित करने में सफलता मिली। राम नाईक को 1994 में कैंसर की बीमारी हुई परन्तु नाईक ने उस रोग को भी मात दी। तत्पश्चात विगत 2० वर्षों से वह पहले जैसे उत्साह और कार्यक्षमता से काम कर रहे हैं। राम नाईक उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में भी वैसी ही सुर्खिया बटोर रहे हैं जैसे पूर्व में ‘लोकसेवक’ और जनप्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हुए बटोरा करते थे।उत्तर प्रदेश स्थापना दिवस को सरकारी स्तर पर मनाने का श्रेय भी राज्यपाल राम नाईक को ही जाता है।आज भी उनकी छवि आम जनता से जुड़ाव की है। इसीलिए राज्यपाल रहते हुए उनके कई फैसलों पर विवाद भी होता है। दीक्षांत समारोह समय पर मतलब श्ौक्षिक सत्र समय पर चल रहा है एउच्चतर शिक्षा और विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली के बारे में आपका क्या विशेष कदम रहा? एराज्य में उच्चतर शिक्षा की मौजूदा गम्भीर विषय है। जब मैं आया था तो तमाम विश्वविद्यालयों के सत्र अनियमित थे जिन्हें नियमित करना कुलाधिपति
के नाते मेरी बड़ी जिम्मेदारी थी। हमने प्राथमिकताएं तय की थीं। शिक्षण-सत्र को किसी हद तक पटरी पर लाने में सन्तोषजनक कामयाबी मिली है। अब इस क्षेत्र में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ानी है। पाठ्यक्रम, इनकी उपयोगिता तथा शैक्षणिक वातावरण को सुनिश्चित करना होगा। शिक्षा क्षेत्र में मसले और भी बहुत हैं किन्तु बहुत सारा कार्य निर्वाचित- सरकार का है। जहां आवश्यक समझता हूं मुख्यमंत्री और मंत्रियों से वार्ता करता हूं, उन्हें उचित परामर्श, निर्देशन देता हूं। हालांकि अनेक बिन्दुओं पर बहुत ध्यान देने और काम की करने की जरूरत है। एविभिन्न विश्वविद्यालयों की आन्तरिक कार्यप्रणाली के सम्बन्ध में बहुत सी शिकायतें हैं, भ्रष्टाचार और गड़बड़ियां हैं, कामकाज सही नहीं है?
यह कुलपतियों और उनकी मशीनरी का कार्य-दायित्व है। मुझे जब भी कोई शिकायत मिली है, मैंने प्राथिमकता से उन्हें सम्बन्धित कुलपतियों के साथ-साथ जहां आवश्यक था, शासन को भी सचेत किया है। इससे सुधार भी आ रहा
है।

कानून व्यवस्था पर अखिलेश को 1०० में 5० तो योगी को 1०० में 7०

पूर्व की अखिलेश सरकार और अब की योगी सरकार की कानून-व्यवस्था में क्या अंतर पाते हैं?

मुख्यमंत्री निश्चित तौर पर अच्छा काम कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी तबके हिसाब से अच्छा ही किया था। यह सरकार कानून-व्यवस्था पर अच्छा काम कर रही है। संगठित अपराध पर लगाम लगाने में काफी हद तक सफलता मिली है। हालांकि व्यक्तिगत अपराध पर नकेल कसने में सरकार को अभी काफी काम करना बाकी है। संगठित अपराध में माफिया जुड़े होते हैं इसलिए उस पर नजर रखना भी आसान है। लेकिन व्यक्तिगत अपराध कौन अंजाम देगा, यह किसी को पता नहीं होता है। इसलिए यह अपराधी हत्या, दुष्कर्म और चोरी जैसी घटनाओं को अंजाम दे देते हैं और इन पर निगरानी करना या फिर रोक लगाना थोड़ी मुश्किल होती है। लेकिन सरकार को इस दिशा में काम करने की जरूरत है।

आप अखिलेश और योगी सरकार को 1०० में से कितने नंबर देंगे ?

मैं कानून-व्यवस्था की बात करूं तो अखिलेश को 1०० में से 5० तो योगी सरकार को 1०० में से 7० नंबर दूंगा।

मतलब

मतलब आप निकालिये, मेरा मतलब है कि योगी सरकार को भी 3० प्रतिशत सुधार की जरूरत है।

 

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