काले धन पर मोदी की सर्जीकल स्ट्राइक से यूपी चुनाव में तो लग गई कालेधन वालों की वाट, अफसर और माफिया भी मुश्किल में

rdescontroller-4लखनऊ। मोदी सरकार के 500 तथा 1000 रुपये के नोट बंद करने के एलान का यूपी के चुनाव पर व्यापक असर पड़ना तय है। चुनाव के लिहाज से यह बहुत बड़ा फैसला है। धनबल के जरिये टिकट हासिल करने तथा चुनाव जीतने की मंशा पाले लोगों को तगड़ा झटका लगा है।
इस फैसले से चुनाव के लिए एकत्र किए गए भारी मात्रा में कालेधन के बाहर आने की भी उम्मीद है। सत्ता में रहते हुए बीते साढ़े चार साल में चुनाव के लिए फंड इकट्ठा करने वाले नेताओं के मंसूबों पर तो पानी फिर गया है, लेकिन चुनाव आयोग के लिए यह राहत भरा कदम होगा। इस बार यूपी चुनाव में उसे कालाधन पकड़ने को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी।

 
जानकारों की मानें तो मुंबई के बाद उत्तर भारत में लखनऊ काले धन के कारोबार का बड़ा केंद्र है। चुनाव में टिकट हासिल करने से लेकर चुनाव जीतने तक, बड़े पैमाने पर कालेधन का इस्तेमाल किया जाता है। चुनाव में कालेधन की रोकथाम के लिए गठित फाइनेंशियल इंटलीजेंस यूनिट (एफआईयू) ने पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान चौंकाने वाला खुलासा किया था।

 लोकसभा चुनाव में खर्च हुआ था 500 करोड़ कालाधन
 
एफआईयू ने आशंका जताई थी कि नेताओं ने टिकट लेने, शक्ति प्रदर्शन करने और आला नेताओं को खुश करने में अरबों रुपये खर्च किए। एफआईयू के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में चुनाव में सिर्फ यूपी में ही करीब 500 करोड़ रुपये के कालेधन का इस्तेमाल हुआ था।
 
इससे पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में भी यह आंकड़ा 300 करोड़ रुपये के आसपास बताया जाता है। बता दें कि चुनाव आयोग के निर्देश पर फाइनेंशियल इंटेलीजेंस यूनिट का गठन किया गया है जिसमें आयकर व प्रवर्तन निदेशालय के अफसरों के साथ-साथ वित्तीय मामलों से जुड़े आला अधिकारी हैं।
 
चुनाव में कालाधन खपाने की थी तैयारी
 
बड़ी-बड़ी रैलियों, वाहनों के लंबे काफिले और वोटरों को लुभाने के लिए नए-नए हथकंडे अपनाने वाले नेताओं के लिए मोदी सरकार का फैसला नींद उड़ाने वाला है।
 
नेशनल इलेक्शन वॉच व एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) से जुड़े लोगों की मानें तो इस बार भी विधानसभा चुनाव में बड़े पैमाने पर कालाधन खपाने की तैयारी की गई है। बड़ी संख्या में ठेकेदार, खनन, शिक्षा माफिया तथा चिटफंड कंपनियां चलाने वाले कालेधन के बल पर चुनाव जीतने की मंशा पाले हुए हैं।
 
इनका सारा गणित गड़बड़ा गया है और अब इनके सामने दबाए गए कालेधन को बाहर निकालने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया है।
 
बड़ी संख्या में गाड़ियों व संपत्ति की खरीद
 
लोकसभा चुनाव से पहले एफआईयू ने सितंबर 2013 से फ रवरी 2014 के दौरान यूपी के बैंक खातों से लेन देन की सघन जांच की थी।
 
सूत्रों के मुताबिक जिन खातों की जांच की गई उनमें से अधिकतर विभिन्न दलों से जुड़े नेताओं के थे। इस जांच में कई हैरान कर देने वाली जानकारी मिली। पता चला कि सितंबर 2013 से फ रवरी 2014 तक यूपी में बड़ी संख्या में वाहन और संपत्ति की खरीद फरोख्त हुई।
 
यूपी में बैंकों से रोजाना लगभग 20 अरब रुपये निकले और लगभग 18 अरब रुपये जमा होते हैं। लेकिन सितंबर 2013 से 28 फरवरी 2014 तक रोजाना औसतन 32 अरब रुपये निकाले और 23 अरब रुपये जमा किए गए। इसके बाद बैंकों का कारोबार अचानक स्थिर हो गया।
 
नकद जब्ती में यूपी अव्वल
 
जब जांच हुई तो पता चला कि देश में 84 लाख से ज्यादा लोगों के एक से अधिक खाते हैं। सूत्रों की मानें तो जांच में 29 दलों से जुड़े करीब 2200 नेताओं के खातों से किए गए लेन-देन संदेह पैदा कर रहे थे। वजह यह थी कि इन खास खातों में सितंबर 13 से फरवरी 14 के बीच हुए लेन देन की जानकारी आयकर रिटर्न में नहीं दी गई थी। कई मामलों में तो खातों की ही जानकारी आयकर रिटर्न से गायब थी।
 
2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान नकद धनराशि की जब्ती में यूपी अव्वल था। चुनाव के दौरान आयोग की टीमों ने प्रदेश में 43 करोड़ रुपये से ज्यादा नकद जब्त किए। चुनाव के दौरान पकड़ी गई ज्यादातर धनराशि का कोई लेखा-जोखा नहीं था।
 
इसी चुनाव के दौरान में एक बड़े शराब कारोबारी के यहां भी कालेधन की आशंका में छापा मारा गया था। यह शराब कारोबारी उस समय की सरकार का करीबी था। माना जा रहा था कि शराब कारोबारी चुनाव के लिए सत्तारूढ़ दल को फंड मुहैया करा रहा था।
 
सियासी दल चेक के बजाय नकद चंदा लेने में आगे हैं। एडीआर की रिपोर्ट केअनुसार 2004, 2009 तथा 2014 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने 1039.06 करोड़ रुपये नकद चंदा जुटाया जबकि चेक के जरिये 1299.53 करोड़ रुपये चंदा लिया गया।
 
चुनाव पर पड़ेगा तगड़ा असर
 
इसी तरह 2004 से 2015 के बीच विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टियों ने 2107.8 करोड़ रुपये नकद तथा चेक से 1244.86 करोड़ रुपये चंदा एकत्र किया। एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि 2004, 2009 तथा 2014 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने अपने कुल खर्च का 10 फीसदी यानी 257.61 करोड़ रुपये नकद खर्च किया जबकि 2004 से 2015 के बीच विधानसभा चुनावों कुल खर्च का 12 फीसदी यानी 336.03 करोड़ रुपये नकद खर्च किया।
 
एडीआर-यूपी इलेक्शन वॉच के संयोजक संजय सिंह का कहना है कि 500 और 1000 रुपये के नोटों के बंद होने का चुनाव में व्यापक असर पड़ेगा। केंद्र सरकार का यह कदम निश्चित तौर पर देशहित में है। इससे हमारे अभियान को गति मिलेगी। चुनाव में ठेकेदार, बिल्डर, माफिया उतरने की तैयारी में थे जिनपर अब रोक लग सकेगी।
 
चुनाव में सुधार के ल‌िए बड़ा कदम
 
लोक प्रहरी संस्था से जुड़े व पूर्व डीजीपी आईसी द्विवेदी कहते हैं कि बड़े नोट बंद करने का फैसला बहुत अच्छा है। इसका यूपी चुनाव में बहुत व्यापक असर दिखाई देगा। अंधाधुंध खर्च होने वाली ब्लैक मनी भी आगामी चुनाव में अब खर्च नहीं हो सकेगी।
 
चुनाव सुधार की दिशा में यह बहुत बड़ा कदम है। अभी तक कालेधन की ही बदौलत बिल्डर, क्रिमिनल, ठेकेदार, खनन माफिया चुनाव में खड़े हो जाते थे। इनकी वजह से चुनाव काफी महंगा हो जाता था। इस फैसले के बाद अब धनपशु चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। यह फैसला आम जनता के हित में है। इससे समाज के पढ़े-लिखे व शरीफ लोग भी चुनाव लड़ने की हिम्मत जुटा पाएंगे।
 
लोक प्रहरी संस्था के महासचिव एसएन शुक्ला का मानना है कि यह फैसला आगामी चुनाव में बड़ा असर डालेगा। इससे चुनाव में काले धन के इस्तेमाल पर रोक लगेगी। बड़े नोट को बंद करने की मांग काफी पहले से चली आ रही थी। केंद्र ने इस मांग को मानकर एक बोल्ड कदम उठाया है। इसका असर आने वाले दिनों में दिखाई देगा। मनी पॉवर के दम पर चुनाव लड़ने वालों को इस फैसले से गहरा धक्का लगा है।
 

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