काशी में किन्नरों ने परंपरा तोड़कर पितरों को याद करते हुए किया पिंडदान

kinnarवाराणसी। विश्व की धार्मिक और सांस्कृतिक राजधानी कही जाने वाली काशी में शनिवार को सदियों पुरानी परंपरा वैदिक मंत्रों के बीच टूट गई। अब तक ज्ञात इतिहास में पहली बार पितृपक्ष की नवमी तिथि पर पिशाचमोचन कुंड पर किन्‍नरों ने अपने पितरों को याद करते हुए त्रिपिंडी श्राद्ध किया। इस श्राद्ध को करने के लिए किन्‍नर अखाड़ा के महामंडलेश्‍वर लक्ष्‍मीनाराण मणि त्रिपाठी के साथ सौ से ज्यादा किन्‍नर जुटें।

आदिकाल से चली आ रही परंपरा ने किन्‍नरों के सम्‍मानपूर्वक जीने पर ही नहीं बल्कि मरने पर भी प्रतिबंध लगा रखा है। हिंदू धर्म में जन्‍म लेने के बावजूद किन्‍नरों का शवदाह नहीं होता। उन्‍हें दफनाए जाने संग हिंदू परंपरा के अनुसार तर्पण-अर्पण भी नहीं किया जाता है। किन्नर अखाड़ा के महामंडलेश्‍वर लक्ष्‍मीनारायण ने इस परंपरा को तोड़ने की पहल की है। इसके लिए देशभर के किन्‍नर समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ त्रिपिंडी श्राद्ध करने काशी पहुंचे।

किन्नर अखाड़ा के महामंडलेशवर ने कहा कि परंपरा तोड़ने का मकसद मात्र यह है कि हिंदू धर्म में जन्‍मे किन्‍नरों को सम्‍मानपूर्वक मरने का अधिकार मिलना चाहिए। गंगा महसभा के स्‍वामी जितेंद्रानंद सरस्‍वती ने कहा यह पहला मौका है जब किन्‍नर अपने को सनातन हिंदू मानते हुए पिंडदान के जरिए अपने समुदाय के पितरों को याद किया।
 

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