किसान आंदोलन को अफीम तस्करों ने बनाया हिंसक, खुफिया एजेंसियों ने पहले से मंदसौर को एसपी को चेताया था

नई दिल्ली।  मध्य प्रदेश में  हिंसक हुए किसान आंदोलन के पीछे बड़ी साजिश के संकेत मिल रहे हैं। जून के पहले हफ्ते में जिस नीमच-मंदसौर जिले में यह बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ, वह पूरा इलाका काला-सोना नाम से बदनाम है। काला-सोना इसलिए कि मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच मालवा-मेवाड़ का यह वो चर्चित  एरिया है, जिसका नाम दुनिया में अफीम की खेती के लिए जाना जाता है। यहां बंपर पैमाने पर अफीम की फसल लहलहाती है, वो भी सरकारी अफसरों की निगरानी में खेती होती है। हालांकि यहां अफीम की खेती दवाओं के लिए होती है। मगर भ्रष्ट अफसरों और माफिया की मिलीभगत से यह एरिया अब अफीम की जबर्दस्त तस्करी के लिए बदनाम है।  लंबे अरसे से हो रही तस्करी के चलते इस इलाके में बड़े-बड़े तस्कर और माफिया जड़ जमा लिए हैं।किसान आंदोलन की आड़ में सूबे को अस्थिर करने की साजिश में अफीम माफिया का हाथ सामने आ रहा है।

किसान आंदोलन में गोली चलने से पांच किसानों की मौत  के बाद सीएम शिवराज ने मंदसौर के एसपी का ट्रांसफर कर नीमच के एसपी मनोज कुमार सिंह को भेजा । एक पुलिस अफसर ने बताया कि खुफिया एजेंसियों ने पहले से मंदसौर को एसपी को अलर्ट कर दिया था कि जिस एरिया में किसान आंदोलन हो रहा है, वह बहुत संवेदनशील है। क्योंकि यह अफीम तस्करों का गढ़ है। ऐसे में आंदोलन में अराजक तत्व शामिल होकर हिंसक बना सकते हैं। बावजूद इसके इस इनपुट को हल्के में लिया गया। नतीजा शांति से हो रहा प्रदर्शन बाद में हिंसा में बदल गया।

अफीक की खेती से गुलजार रहने वाला नीमच और मंदसौर अक्सर गैंगवार से थर्रा उठता है। कई बार तो तस्करी के खिलाफ एक्शन होने पर माफिया पुलिस पर ही हमला करा देते हैं। तस्करी का काम आपराधिक प्रवृत्ति के लोग संभालते हैं। वे तस्करी के अलावा इलाके के व्यापारियों और प्रभावशाली लोगों को डरा-धमकाकर वसूली का भी काम करते हैं।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कई दफा मंच से तस्करों को खुली चेतावनी देते रहते हैं। नीमच-मंदसौर में पुलिस को भी खुली छूट दे रखी है तस्करों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए। जिससे तस्करों के धंधे में खलल पड़ता है। अक्सर तस्करों के खिलाफ एक्शन लेने के निर्देश देने से  तस्कर सीएम शिवराज सिंह चौहान से हमेशा खफा रहते हैं। कहा जा रहा है कि यही वजह है कि जब मंदसौर आंदोलन में किसान आंदोलन खड़ा हुआ तो इन माफियाओं ने शिवराज चौहान की कुर्सी हिलाने के लिए इसे मौके के रूप में लपक लिया। नतीजा किसान आंदोलन हिंसक हो उठा।

भारतीय किसान मजदूर संघ के अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा कहते हैं कि आंदोलन भले उनके संगठन ने खड़ा किया, मगर वे दावे के साथ कहते हैं कि एक भी किसान  हिंसा में शामिल नहीं रहा। इसका ठीकरा वह सरकारी मशीनरी पर फोड़ते हैं। कहते हैं कि सरकारी मशीनरी की नाकामी की वजह से ही अराजक तत्वों ने आंदोलन को हिंसा की राह पर ले जाने का काम किया। उधर संघ के क्षेत्रीय संगठन मंत्री शिवकांत दीक्षित सफाई देते हैं कि संघ का अनुषांगिक संगठन भारतीय किसान संघ 1 से 4 जून तक आंदोलन में सक्रिय था। मगर जैसे ही मुख्यमंत्री से वार्ताहुई तो आंदोलन वापस ले लिया गया। फिर भी बिना नेतृत्व के कैसे किसान आंदोलन चलता रहा। भीड़ बेकाबू हुई। गोलीबारी से आंदोलन हिंसक हो गया। आखिर वह कौन लोग थे जो सोशल मीडिया पर इस आंदोलन को हवा दे रहे थे।

 

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