किसान बिल पर सपा का तंज, बहुमत के बुलडोज़र से कुचला जा रहा जनहित….

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा की छल प्रपंच और झूठ की रीतिनीति ने राजनीतिक शुचिता और लोकतंत्र पर गहरा आघात किया है। किसानों के हितों पर चोट करने और उनकी किस्मत कारपोरेट घरानों को सौंपने में उसे जरा भी हिचक नहीं होती है।

केन्द्र में संसद हो या प्रदेश में विधान परिषद दोनों जगह विपक्ष पर अपने बहुमत का रोडरोलर चलाकर वह लोकलाज से भी हाथ धो बैठी है। भाजपा तर्क से भागती है और विपक्ष की आपत्तियों का जवाब देने के बजाय बुनियादी मुद्दों पर भ्रमित करने का काम करती है।
उत्तर प्रदेश की विधान परिषद में विपक्ष का बहुमत है किन्तु अभी पिछले दिनों इसकी बैठकें समाप्त होने से पूर्व कई बिल बिना बहस के विपक्ष की तमाम आपत्तियों को अनसुना करते हुए, आश्चर्यजनक रूप से पास करा लिए गए। विधान परिषद के सभापति ने विपक्ष को संरक्षण नहीं दिया, सत्तापक्ष ही हाबी रहा।
भाजपा का चेहरा और चरित्र एक ही है, इसका दूसरा परिचय केन्द्र में राज्यसभा की कार्यवाही में देखने को मिला। इसमें कृषि विधेयकों को भी विपक्ष की बातों को अनसुना कर पास घोषित करा लिया गया। वहां भी जोर जबर्दस्ती साफ दिखाई दी।

इन विधेयकों पर विपक्ष ने जो आपत्तियां की उनकी सुनवाई नहीं हुईं। जब संसद के अंदर और बाहर इस पर कड़ी प्रतिक्रिया होते दिखाई दी तो बहकाने-भटकाने की अपनी शैली में भाजपा सरकार ने रबी की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य तत्काल घोषित कर दिए जबकि हमेशा अक्टूबर के तीसरे हफ्ते में ऐसे निर्णय सामने आते थे। एक माह पहले रबी की फसल के समर्थन मूल्य घोषित करके किसानों को ठगने की यह कोशिश कामयाब नहीं होेने वाली है।
सच तो यह है कि लम्बे संघर्ष के बाद किसानों को आजादी मिली थी, लेकिन कांट्रैक्ट खेती से देर सबेर किसान फिर पुरानी हालत में लौट जाएगा, अपनी ही जमीन पर मजदूर हो जाएगा। कृषि उत्पादन मण्डी समाप्त होने से किसान अपनी फसल औनेपौने दाम पर बेचने को विवश होगा।

किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य जब अभी भी नहीं मिल पा रहा है तो खुले बाजार में उसकी मोल तोल की ताकत कहां होगी? बड़े आढ़तियों, बड़ी कम्पनियों के सामने किसान के लिए क्या विकल्प होगा?
विपक्ष को आशंका है कि किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना मुश्किल होगा। सरकार ने अपने विधेयकों में इसकी व्यवस्था न रखकर सिर्फ वादे से आश्वस्त करना चाहा पर यह तो किसान को भटकाने की बात है। वर्तमान स्थितियों में किसान अपनी तंगहाली से परेशान होकर आत्महत्याएं कर रहा है, सरकार उसके आंकड़े तक नहीं दे पा रही है।

लागत से ड्योढ़ी कीमत देने और आय दुगनी करने तथा सभी कर्जे माफ करने के भाजपा के वादे हवा में ही रह गए है, तो उनके किसान हित के वादों का भरोसा कौन करेगा? भाजपा सब कुछ निजी क्षेत्र को सौंपने में लगी है, उसके लिए जनसामान्य की जिंदगी का कोई मोल नहीं है।

वह तो जनधन के शोषक पूंजीघरानों को ही बढ़ाने, उनके हाथों में राष्ट्रीय सम्पत्ति सौंपने को बेकरार दिखाई देती है। किसान नौजवान उन्हें 2022 में करारा सबक सिखाएंगे।

 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Back to top button