‘कुछ मुस्लिम मुल्लाओं ने अपनी हवस के लिए हलाला को बना लिया है अय्याशी का वैध तरीका’

लखनऊ। उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने कहा कि निकाह हलाले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा अपनी जिम्मेदारी न निभाए जाने का नतीजा है। वसीम ने कहा कि  हलाला प्रथा कुरआन मजीद में इसलिए लिखी गई है कि लोग जल्दी तलाक न दें लेकिन इसके नाम पर कई वर्षों से तलाकशुदा औरतों का शारीरिक शोषण किया जा रहा है. ज्ञात हो सोमवार को निकाह हलाला और बहुविवाह को असंवैधानिक घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। रिज़वी का यह बयान इसी सन्दर्भ में आया है.

वसीम रिजवी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस्लाम की आड़ में मुस्लिम महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों का संज्ञान लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि हलाला का मतलब यह है कि अगर कोई भी मुस्लिम व्यक्ति अपनी पत्नी को तीसरी बार जायज तरीके से तलाक दे देता है तो वह तलाकशुदा पत्नी उस व्यक्ति पर हराम हो जाती है। अब वह उससे दोबारा निकाह तब तक नहीं कर सकता जब तक कि उस महिला का किसी और से निकाह न हो जाए और उससे उसका तलाक न हो जाए।

तीन तलाक का सही अर्थ

वसीम रिज़वी ने ‘इंडिया संवाद’ से बताया कि दरअसल इस्लाम को बहुत तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया है. उन्होंने कहा कि तीन तलाक अर्थ एक साथ तीन तलाक बोलकर तलाक देना नहीं है. उन्होंने बताया कि तलाक तभी मान्य होता है जब उसे विधिवत तरीके से दिया गया हो. विधिवत तरीका बताते हुए रिज़वी ने कहा कि तीन तलाक का मतलब तीन चरणों में बैठक कर तीसरी बार अंतिम मुहर लगती है. तीन माह में तीन चरणों में बैठक करने के पीछे मतलब ही यह है कि अगर इस अवधि में भी पति-पत्नी अगर किसी सुलह पर नहीं पहुँचते हैं तो फिर तीसरी बार में तलाक वैध मान लिया जाता है.

हलाला को बना लिया है अय्याशी का वैध तरीका रिजवी ने कहा कि इसी प्रकार हलाला का यह मतलब नहीं है कि तलाक देने वाला अपनी तलाकशुदा पत्नी का किसी दूसरे से निकाह खुद करवाए और दूसरे पति से शारीरिक संबंध बनवाने के बाद उससे तलाक दिलवा कर फिर दोबारा स्वयं निकाह कर ले। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि कुछ मुस्लिम मुल्लाओं ने ज्यादातर अपनी हवस के लिए हलाला को अय्याशी का वैध तरीका बना लिया है। उनका कहना है कि इस्लामिक सिद्धातों के अनुसार वह निकाह वैध निकाह नहीं है जो तलाक की नीयत से किया जाए।    आपको बता दें कि सोमवार को निकाह हलाला और बहुविवाह को असंवैधानिक घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) ऐप्लिकेशन ऐक्ट 1937 की धारा-2 को गैर संवैधानिक घोषित किया जाए जो बहु विवाह और निकाह हलाला को मान्यता देता है।  याचिकाकर्ता ने कहा था कि निकाह हलाला और बहुविवाह संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार), 15 (कानून के सामने लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं) और अनुच्छेद-21 (जीवन के अधिकार) का उल्लंघन करता है।

 

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