कोरोना मामले में इतनी बेफिक्री ठीक नहीं सरकार

राजेश श्रीवास्तव

देश अब जहां कोरोना मरीजों के मामले में दुनिया में छठे स्थान पर पहुंच गया है और हालात बेहद नाजुक हैं। ऐसे में रोज शाम को स्वास्थ्य मंत्रालय का यह कहना कि इस तरह की तुलना किसी देश से करना ठीक नहीं है, बताती है कि सरकार इसको लेकर बहुत चिंतित नहीं है।
सरकार यही कहकर वाहवाही लूट रही है कि अगर लॉकडाउन न किया गया होता तो भारत में बड़ी तबाही मच जाती। वैसा होता तो ऐसा हो जाता वाले इस तर्क की पड़ताल आसान नहीं होती। लेकिन यह सवाल जरूर उठाया जा सकता है कि क्या इतने लंबे लॉकडाउन के बाद भी हम कोरोना को लेकर आज निश्चिंत हैं? क्या जो लॉक डाउन मार्च में लगाया गया उसको अब लगाने की जरूरत नहीं है। क्या जरूरत नहीं है कि एक बार तकरीबन एक महीने का संपूर्ण लॉक डाउन लगाया जाये, जिसमें किसी को भी सड़क पर निकलने की इजाजत न हो।
केरोना को लेकर देश में इतनी निश्चिंतता पैदा करना ठीक नहीं है। सरकारी अमला हर रोज़ कुछ आंकड़े बताकर हमें निश्चिंत कर जाता है। लेकिन भूलना नहीं चाहिए कि यह बाकायदा घोषित वैश्विक महामारी है। वैश्विक महामारी घोषित करने का मकसद ही यह होता है कि सभी देश और उसके नागरिक चिताशील हो उठें और महामारी से बचाव में लग जाएं। यानी हर देश को फिक्रमंद होने की जरूरत थी और अभी भी है। इस मकसद को हासिल करने के लिए सरकारों को अपने-अपने नागरिकों को चितित या चिताशील करने की जरूरत थी। लेकिन अपने यहां होता उलट दिख रहा है। क्या आज हमें इस तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए कि भारत में लोगों को चिताशील बनाने की बजाए उन्हें बेफिक्र करने की कोशिश ज्यादा हो रही है।

सरकारी अफसरों की तरफ से हमें खुशफहमी में रखना बिल्कुल भी ठीक नहीं है। देश में कोरोना मरीजों की संख्या हर दिन तेजी से बढ़ रही है। बढ़ते-बढ़ते आज देश में संक्रमितों का आंकड़ा सवा दो लाख तक पहुंच चुका है। हम दुनिया के सबसे बुरी हालत वाले छह देशों में शामिल हो चुके हैं। जबकि हमारे टक्कर की आबादी वाला चीन नंबर एक से उतरता हुआ दस देशों की सूची से बाहर हो चुका है। तो इटली भी पीछे हो चुका है। अपनी वास्तविक स्थिति को ढकने के लिए फिलहाल उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों से तुलना करके अपनी स्थिति को बेहतर साबित करना खतरनाक बेफिक्री ही कही जानी चाहिए। लिहाजा सांख्यिकी की समझ रखने वालों को आंकड़ों का विश्लेषण करके बताते रहना चाहिए कि हकीकत में अपना देश इस समय किस मुकाम पर है।
रोज ही कोरोना के आंकड़े बताते समय यह जरूर बताया जाता है कि इतने लोग इलाज से ठीक होकर अपने घर भेज दिए गए हैं। इसका जिक्र कम होता है कि कितने मरीज अस्पतालों में अभी भी जूझ रहे हैं। गौर किया जाना चाहिए कि शुक्रवार रात तक भारत में सक्रिय मरीजों की संख्या सवा लाख से ज्यादा थी। यह इतनी बड़ी संख्या है कि एक्टिव केस यानी संक्रिय मरीजों के मामले में भारत विश्व के पांच देशों में शामिल हो गया है। इसी तरह मौतों के मामले में हम चीन से भी बदतर हालत में पहुंच गए हैं। साढ़े पांच हजार मौतों के आंकड़े के साथ इस समय हमारा नंबर चढ़कर 13वां हो गया है। गौरतलब है कि शुक्रवार को ही हमने एक दिन में सबसे ज्यादा मौतों का अपना पिछला रिकार्ड तोड़ा है। अब तक कोरोना के कटु अनभवों से कई देश जान चुके हैं कि कोरोना का फैलाव रोकने के लिए कोरोना के मरीजों को ढूंढ-ढूंढकर अस्पतालों में भर्ती कराना जरूरी है। इसीलिए जल्द ही तमाम देश ताबड़तोड़ ढंग से परीक्षण बढ़ाने के काम पर लग गए थे। जो इस काम पर नहीं लगे। उन्होंने खमियाजा भुगता. अमेरिका जैसे देशों की नजीर हमारे सामने है। उसने शुरू में हद दर्जे की बेफिक्री दिखाई थी। कहा था कि कोराना कुछ नहीं है। वहां बाद में हालत इतनी बिगड़ी कि इस समय हालात संभाले नहीं संभल रहे हैं। अब आज अगर कोई देश अमेरिका से अपनी तुलना करके यह बताना चाहे कि हमारी स्थिति तो बेहतर है तो यह तर्क फिजूल का होगा। पूरी दुनिया को समझ में आ चुका है कि कोरोना से बचाव के लिए सबसे पहले ज्यादा से ज्यादा लोगों के परीक्षण करना जरूरी है। पता चल चुका है कि जब तक कोरोना के लक्षण दिखाई देना शुरू होते हैं तब तक वह मरीज कई लोगों को संक्रतिम कर चुका होता है। बेशक हमने लॉकडाउन का तरीका अपनाया था। लेकिन देखना यह भी था कि अपना देश 138 करोड़ आबादी वाला देश है।
देश में अबतक कुल परीक्षणों का आंकड़ा हैरत में डालने वाला है। परीक्षण के मामले में आज दिन तक हमारी स्थिति बेहद सीमित है। नवीनतम स्थिति यह है कि प्रति एक लाख आबादी पर भारत में सिर्फ 267 परीक्षण हुए है। यानी प्रति हजार सिर्फ दो दशमलव सात। अगर दूसरे देशों से तुलना न करें तो बिल्कुल भी पता नहीं चलता कि यह आंकड़ा है कितना छोटा या बड़ा। सही अंदाजा लगाने का एक ही तरीका है। वह ये कि परीक्षणों के मामले में दूसरे देशों से तुलना कर लें।
कोरोना परीक्षण की संख्या के मामले में देश के अफसरों ने हकीकत छुपाने का काम किया। वे आज भी यही कर रहे हैं। परीक्षणों की कुल संख्या बताई जाती है। आज दिन तक 138 करोड़ की आबादी वाले भारत में सिर्फ साढे 36 लाख परीक्षण कराए गए हैं। इस एकमुश्त आंकड़े से बिल्कुल पता नहीं चलता कि प्रति लाख कितने लोगों का कोरोना टैस्ट हुआ। जबकि हकीकत यह है कि प्रति लाख आबादी पर हमने सिर्फ 267 परीक्षण किए। दूसरे देशों से तुलना करें तो टैस्टिंग के मामले में 215 देशों में हमारा नंबर सनसीनखेज तौर पर 14०वां है। दरअसल हमारी अबादी 138 करोड़ है। सो परीक्षण का कुल आंकड़ा तो लाखों में पहुंचा दिखता है लेकिन हकीकत में यह एक फीसद से भी कम है। बल्कि सिर्फ शून्य दशमलव दो सात फीसद है। आज नहीं तो हफ्ते भर बाद हम मजबूरी में चिता कर रहे होंगे कि जो अनगिनत मरीज हमारे लेखे में नहीं आए उनसे अनजाने में किस कदर संक्रमण फैल रहा होगा। महीने भर की बदलती स्थिति पर गौर करें तो देखते ही देखते हम दो सौ देशों के बीच सबसे बुरी हालत वाले छह देशों में शामिल हो चुके हैं। कोराना से सबसे ज्यादा दुर्गत देशों में चौथे और पांचवें नबंर के स्पेन और ब्रिटेन से भी ज्यादा खराब हालत बनने का खतरा हमारे सर पर मंडरा रहा है। फिर भी अगर कोरोना से निपटने में लगाया गया सरकारी अमला रोज-रोज यह बताए कि चिता की कोई बात नहीं है तो हमारे लिए इससे बड़ी चिता और क्या होगी। सबसे बड़ा संकट यह है कि आर्थिक कारणों से लॉकडाउन का यह उपाय अधूरा छोड़ देने की मजबूरी बन गई है। इतना ही नहीं लंबे लॉकडाउन के बाबजूद संक्रमितों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। जाहिर है इस वक्त हम उस मुकाम पर हैं कि हमें कोई नया तरीका तलाश करने की दरकार है।

 

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