कौन हैं त्रिपुरा में लेफ्ट के किले को भेदने वाले हिमंत बिस्वा?

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. पार्टी ने इस चुनाव को आन-बान-शान का चुनाव बना दिया था. लेफ्ट के 25 साल के किले को भेदने के लिए जिन लोगों को सबसे अधिक जिम्मेदारी दी गई थी उनमें एक नाम हिमंत बिस्वा सरमा का भी है. तो आइए जानते हैं कौन है हिमंत बिस्वा सरमा.

लेफ्ट के ढाई दशक के शासन को समाप्त करने के लिए बीजेपी ने हिमंत बिस्वा सरमा को ब्रह्मास्त्र बनाया था. असम के वित्त मंत्री सरमा त्रिपुरा में बीजेपी के चुनाव प्रभारी थे.

अगस्त 2015 में कांग्रेस को अलविदा कह बीजेपी का दामन थामने वाले सरमा ने असम चुनाव में भी बीजेपी को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. बीजेपी ने सरमा को पूरे नॉर्थ ईस्ट में पार्टी का चेहरा बनाया. वह नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रैटिक अलायंस (बीजेपी के नेतृत्व वाला गैर-कांग्रेसी पार्टियों का गठबंधन) के संयोजक बनाए गए. असम और मणिपुर में बीजेपी की जीत का पूरा श्रेय उन्हें ही दिया गया.

सरमा ने कामरूप सेकंडरी स्कूल, गुवाहाटी से 1985 में हाई स्कूल पास किया और आगे की पढ़ाई कॉटन कॉलेज में की. उन्होंने 1990 में ग्रेजुएशन पूरा किया और 1992 में पॉलिटिकल साइंस से पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया. उन्होंने गवर्मेंट लॉ कॉलेज, गुवाहाटी से एलएलबी भी किया और पीएचडी भी हासिल किया.

कॉलेज के दिनों में उन्हें गुवाहाटी यूनिवर्सिटी का बेस्ट डिबेटर कहा जाता था. हिमंत विस्वा सरमा ने 1996 से 2001 तक गुवाहाटी हाई कोर्ट में वकालत भी की. उनकी पत्नी का नाम भुयन शर्मा है. उनके दो बच्चे हैं- नंदिल और सुकन्या.

स्टूडेंट यूनियन से हुई थी राजनीति की शुरुआत

उन्होंने राजनीति की शुरुआत ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) से की थी. इसके बाद असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया से प्रभावित होकर कांग्रेस में शामिल हो गए. सरमा असम के जलुकबरी से कांग्रेस के लिए चुनाव जीतते रहे.

वो 2001 में विधायक चुने गए और 2006 और 2011 में दुबारा निर्वाचित हुए. असम सरकार में वो कैबिनेट मंत्री भी रहे. 2002 से 2014 के बीच सरमा ने प्लानिंग एंड डेवलपमेंट, वित्त मंत्रालय, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे अहम मंत्रालयों में बतौर मंत्री काबिज रहे.

उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर चुनाव में उनकी जीत का अंतर बढ़ता जाता है. साल 2006 तक वह तरुण गोगोई के राइट हैंड बन गए थे. वह चुनाव का मैनेजमेंट देखते थे और विधानसभा में मंत्रियों की तरफ से जवाब भी खुद ही देते थे.

कहा जाता है कि असम में सरमा को तरुण गोगोई के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था. लेकिन गोगोई द्वारा अपने बेटे गौरव गोगोई को तरजीह दिए जाने से दोनों नेताओं में अलगाव शुरू हो गया और कुछ समय बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. 2015 में हिमंत विस्वा सरमा ने कांग्रेस से नाता तोड़ दिया और बीजेपी से जुड़ गए. 2016 में असम के चुनावों में बीजेपी को मिली भारी जीत का श्रेय भी हिमंत विस्व सरमा की कुशल रणनीति को जाता है.

 

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