क्या आप जानते हैं ओवैसी खानदान का खून से सना हुआ और गद्दारी भरा इतिहास

ओवैसी बंधू हैदराबाद कि राजनीती में काफी अहम स्थान रखते हैं, यह दोनों भाई अपने उत्तेजक और हिन्दू विरोधी भाषणों के लिए कुख्यात हैं. अगर आप ध्यान से देखेंगे तो ओवैसी बंधू हमेशा से ही देश विरोधी कार्य करता रहा है, वो चाहे हिन्दुओ को मारने कि बात हो, चाहे ISIS के आतंकवादियों कि आर्थिक और कानूनी सहायता हो. लेकिन अगर आप इनके बारे पे पढ़ेंगे तो आपको पता लगेगा कि ओवैसी खानदान हमेशा से ही देश द्रोही रहा है.

अगर इतिहास में देखा जाए तो भारत से गद्दारी की ये दास्तान उस दौर की है जब देश को आजाद होने में 20 साल बाकी थे। रियासत हैदराबाद पर निजाम उस्मान अली खान की हुकूमत थी। उस वक्त नवाब महमूद नवाज खान किलेदार ने 1927 में मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लेमीन(MIM) नाम के संगठन की नींव रखी थी। इस पार्टी पर शुरू से ही ओवैसी खंडन का कब्ज़ा रहा, पहले ओवैसी के दादा अब्दुल वाहिद ओवैसी मैं के अध्यक्ष रहे, उसके बाद उनके पिता सलाहुद्दीन ओवैसी ने आजीवन इसके अध्यक्ष का पद संभाला, और अब असद्दुदीन ओवैसी और उसके भाई अकबरुद्दीन ओवैसी आईटी पार्टी को चला रहे हैं.

संस्थापक सदस्यों में हैदराबाद के राजनेता सैयद कासिम रिजवी भी शामिल थे जो रजाकार नाम के हथियारबंद हिंसक संगठन के सरगना भी थे। एमआईएम को खड़ा करने में इन रजाकारों की अहम भूमिका थी। रजाकार और एमआईएम ये दोनों ही संगठन हैदराबाद के देशद्रोही और गद्दार निजाम के कट्टर समर्थक थे। यही वजह है कि जब 1947 में देश आजाद हुआ तो हैदराबाद रियासत के भारत में विलय का कासिम रिजवी और उसके पैरामिल्ट्री संगठन यानी रजाकारों ने जमकर विरोध भी किया था। ये लोग हैदराबाद को पाकिस्तान में शामिल करना चाहते थे क्योंकि काफिर हिन्दुओं द्वारा शासित मुल्क में रहना इन्हें कतई मंजूर नहीं था।

रजाकार एक निहायत ही जाहिल और बर्बर लोगो का संगठन था, रजाकार हथियार लेकर गलियों में झुण्ड के झुण्ड बनाकर जिहादी नारे लगते हुए गश्त करते थे। उनका मकसद केवल एक ही था, हिन्दू प्रजा पर दहशत कायम करना । इन रजाकारों का नेतृत्व MIM का कासिम रिज़वी ही करता था। इन रजाकारों ने अनेक हिन्दुओं कि बड़ी निर्दयता से हत्या की थी। हज़ारों अबला हिन्दू औरतो का बलात्कार किया था, हजारों हिन्दू बच्चों को पकड़ कर सुन्नत कर दिया था, और जी किसी काम के नहीं थे उन्हें जान से मार दिया जाता था.

रजाकारों ने जनसँख्या का संतुलन बिगाड़ने के लिए बाहर से लाकर मुसलमानों को बसाया था।आर्यसमाज के हैदराबाद के प्रसिद्द नेता भाई श्यामलाल वकील की रजाकारों ने अमानवीय अत्याचार कर हत्या कर दी।रजाकारों के गिरोह न केवल रियासत के हिन्दुओं पर अत्याचार ढा रहे थे, बल्कि पड़ोस के राज्यों में भी उत्पात मचा रहे थे। अपने फायदे के लिए पड़ोसी राज्य मद्रास के कम्युनिस्ट भी इन हत्यारों के साथ हो गये। कासिम रिजवी और उसके साथी उत्तेजक भाषणों से मुसलमानों को हिन्दू समाज पर हमले के लिये उकसा रहे थे।

हैदराबाद रेडियो से हर रोज घोषणाएं होती थीं। 31 मार्च 1948 को MIM के कासिम रिजवी ने रियासत के मुसलमानों को एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में तलवार लेकर भारत पर चढ़ाई करने को कहा। उसने यह भी दावा किया कि जल्दी ही दिल्ली के लाल किले पर निजाम का झण्डा फहरायेगा।

हैदराबाद के निजाम ने कानून बना दिया था कि भारत का रुपया रियासत में नहीं चलेगा। यही नहीं, उसने पाकिस्तान को बीस करोड़ रुपये की मदद भी दे दी और कराची में रियासत का एक जन सम्पर्क अधिकारी बिना भारत सरकार की अनुमति के नियुक्त कर दिया। निज़ाम के राज्य में 95 प्रतिशत सरकारी नौकरियों पर मुसलमानोंका कब्ज़ा था और केवल 5 प्रतिशत छोटी नौकरियों पर हिन्दुओं को अनुमति थी। निज़ाम के राज्य में हिन्दुओं को हर प्रकार से मुस्लमान बनाने के लिए प्रेरित किया जाता था।

हिन्दू अपने त्योहार बिना पुलिस की अनुमति के नहीं मना सकते थे। किसी भी मंदिर पर लाउड स्पीकर लगाने की अनुमति न थी, किसी भी प्रकार का धार्मिक जुलूस निकालने की अनुमति नहीं थी क्यूंकि इससे मुसलमानों की नमाज़ में व्यवधान पड़ता था। हिन्दुओं कोअखाड़े में कुश्ती तक लड़ने की अनुमति नहीं थी। जो भी हिन्दू इस्लाम स्वीकार कर लेता तो उसे नौकरी, औरतें, जायदाद सब कुछ निज़ाम साहब दिया करते थे। तबलीगी का काम जोरो पर थाऔर इस अत्याचार का विरोध करने वालों को पकड़ कर जेलों में ठूस दिया जाता था जिनकी सज़ा एक अरबी पढ़ा हुआ क़ाज़ी शरियत के अनुसार सदा कुफ्र हरकत के रूप में करता था।

जो भी कोई हिन्दू अख़बार अथवा साप्ताहिक पत्र के माध्यम से निज़ाम के अत्याचारों को हैदराबाद से बाहर अवगत कराने की कोशिश करता था तो उस पर छापा डाल कर उसकी प्रेस जब्त कर ली जाती और जेल में डाल कर अमानवीय यातनाएँ दी जाती थी। 29 नवंबर 1947 को इसी देश के गद्दार निजाम से नेहरू ने एक समझौता किया था कि हैदराबाद की स्थिति वैसी ही रहेगी जैसी आजादी के पहले थी।

नेहरू के इन व्यर्थ समझौतों और हैदराबाद में देशद्रोही गतिविधियों से तंग आकर 10 सिंतबर 1948 को सरदार पटेल ने हैदराबाद के निजाम को एक खत लिखा जिसमें उन्होने हैदराबाद को हिंदुस्तान में शामिल होने का आखिरी मौका दिया था। लेकिन हैदराबाद के निजाम ने सरदार पटेल की अपील ठुकरा दी और तब के एमआईएम अध्यक्ष कासिम रिजवी ने खुलेआम भारत सरकार को धमकी दी कि यदि सेना ने हमला किया तो उन्हें रियासत में रह रहे 6 करोड़ हिन्दुओं की हड्डियाँ भी नहीं मिलेंगी.

सरदार पटेल ने अपना रौद्र रूप दिखाया और सितम्बर 1948 में ऑपरेशन पोलो चला कर मिलिट्री एक्शन लिया और हैदराबाद का भारत में विलय करवाया. ऐसा माना जाता है कि जवाहर लाल नेहरू इस फैसले से काफी गुस्सा थे और उन्होंने सरदार पटेल का फ़ोन भी गुस्से में पटक दिया था.


Manish Sharma

 

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