क्या है वीआरएस के पीछे की मंशा

Page 1_1_2श्यामल कुमार त्रिपाठी
आप सबको याद होगा कि इनकम टैक्स विभाग में एक इनकम टैक्स अधिकारी ने वीआरएस ले लिया था। वीआरएस लेने के बाद कुछ एनजीओ के माध्यम से सामाजिक कार्य करते हुए उस अधिकारी ने अन्ना जैसे समाजसेवी का साथ लेकर सरकार विरोधी आंदोलन छेड़ा था और आगे चलकर समाज सेवी अन्ना से दूर होते हुए एक राजनीतिक पार्टी का निर्माण किया और आज दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जा बैठा। जी हां हम बात कर रहे हैं अरविन्द केजरीवाल की। अरविन्द केजरीवाल के अंदर भी सिस्टम और सरकार के खिलाफ अथाह असंतोष व्याप्त था और यह असंतोष धरातल पर आए उसके लिए सरकारी मिशनरी का साथ छोडऩा जरूरी था और शायद इसी के चलते अरविन्द केजरीवाल ने भी अपनी नौकरी से वीआरएस ले लिया। वीआरएस लेने के बाद खुलकर सरकार और सिस्टम के खिलाफ अपनी बात लोगों तक पहुंचाने लगे।
उत्तर प्रदेश में भी एक आईएएस अफसर सिस्टम में रहते हुए सरकार के भ्रष्टïाचार को उजागर करने में लगा था। हथियार था सोशल मीडिया लेकिन सिस्टम में रहते हुए एक हद तक ही हम सरकार और सिस्टम की खिलाफत कर सकते हैं। इसका जीता-जागत उदाहरण आईपीएस अमिताभ ठाकुर हैं। इन्होंने भी अपनी पत्नी के साथ मिलकर सिस्टम और सरकार के खिलाफ एक बिगुल छेड़़ रखा था। नतीजतन उन्हें सरकार से धमकी भी मिलती है और तो और उन्हें नौकरी से सस्पेंड कर दिया जाता है। इतना ही नहीं उनके ऊपर गलत तरीके से महिला के साथ बलात्कार का आरोप भी लग जाता है। शायद इन सब परेशानियों से खुद को बचाने के लिए ही आईएएस सूर्यप्रताप सिंह वीआरएस लेना चाहते हैं, लेकिन गत्ï दिनों उनके व्यवहार को देख और समझकर ऐसा लगता है कि वह खुद को उत्तर प्रदेश में एक दूसरे अरविन्द केजरीवाल के रूप में प्रस्तुत करना चाह रहे हैं। अगर ऐसा है तो इसमें कुछ भी बुरा नहीं है लेकिन जहां दिल्ली में सिस्टम और सरकार की खिलाफत करते-करते अरविन्द केजरीवाल खुद सिस्टम और सरकार बन गए बावजूद दिल्ली में किसी तरह के सुधार की बयार नहीं दिख रही। तो क्या सूर्यप्रताप सिंह का दूसरा केजरीवाल बन जाना उत्तर प्रदेश के लिए कितना लाभप्रद और सुखद होगा यह एक बड़ा सवाल है। सरकारी नौकरी को छोड़कर राजनीति में आने की मंशा तभी अच्छी मानी जाती है जब सोच सिर्फ और सिर्फ समाज सुधार और विकास की हो, लेकिन मंशा अगर सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक पहुंच बनाने की हो और उस पहुंच के माध्यम से अपार सुख सुविधा भोगने की इच्छा हो तो यह सोच जहां एक तरफ पूरे समाज के लिए घातक है वहीं खुद की स्थिति को भी बेहद कमजोर कर देता है। सूर्यप्रताप सिंह को वीआरएस लेने के पहले इस बात को समझ लेना होगा कि आखिर वह वीआरएस क्यों लेना चाह रहे हैं। देश ने अरविन्द केजरीवाल के आदोलन को भी देखा है, उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को देखा है और अब उनकी भ्रष्टï राजनीतिक सोच को भी देख रहा है। वीआरएस के पहले बहुत कुछ सोचना होगा, बहुत कुछ समझना होगा अगर किसी धमकी या दबाव के चलते वीआरएस हो रहा है तो वीआरएस ले लेने के बाद वह धमकी या दबाव पुन: नहीं पड़ेगा इसकी क्या गारंटी है। हम जब तक सरकार विरोधी रहते हैं तब तक देश की जनता भी हमारा साथ देती है, लेकिन जब हम खुद ही सरकार में आ जाते हैं तो यह जनता हमारी विरोधी हो जाती है। मैं नहीं कहता कि सूर्यप्रताप सिंह की भी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा होगी लेकिन सूर्यप्रताप सिंह जैसा तेज-तर्रार आईएएस अधिकारी भी आगे चलकर अरविन्द केजरीवाल न बन जाए इसका भय सता रहा है। आगे क्या होगा यह तो भविष्य के गर्त में है। बस उम्मीद यही की जा रही है कि जो भी हो वह अच्छा हो।

 

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