क्यों कांग्रेस ने ‘वंदे मातरम’ को राष्ट्रगान बनने नहीं दिया? जो वन्दे मातरम के विरुद्द थे गांधीजी ने क्यों उनका साथ दिया?

स्वतंत्रता के चिंगारी को देश भर में जलाने का बहुत बड़ा यॊगदान ‘वंदे मातरम’ गीत का है। देश के स्वतंत्रता सेनानियों में नयी ऊर्जा भरनेवाला यह गीत भारत को माँ का दर्जा देता है। स्वतंत्रता संग्राम के उस दौर में बच्चे, बूढे, जवान और महिलाओं के जिह्वा पर बस यही नारा लगता था। भारत के गली गली में हिन्दू-मुस्लिम-सिख या फिर अन्य समुदाय के लोग हो इस गीत को गाया करते थे। बंगाल के लॊग तो इस गीत कॊ पूजते थे। 7 नवम्वर 1876 में बंगाल के कांतल पाड़ा गांव में बंकिम चन्द्र चटर्जी ने ‘वंदे मातरम’ गीत की रचना की थी। बाद में इसे बंकिम चंन्द्र चट्टोपाध्याय की ‘आनंद मठ’ उपन्यास में सम्मिलित किया गया।

श्री रवींन्द्रनाथ टैगोर ने 1896 में पहली बार ‘वंदे मातरम’ को बंगाली शैली में लय और संगीत के साथ कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में गाया था। दिसम्बर 1905 में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में गीत को राष्ट्रगीत का दर्जा प्रदान किया गया, बंग भंग आंदोलन में ‘वंदे मातरम्’ राष्ट्रीय नारा बना| उन दिनों भारत के गलियारों में केवल वंदे मातरम का नारा गूँजता था। लेकिन वंदे मातरम को कभी राष्ट्रगान का दर्जा नहीं मिला अपितु अंग्रेज़ों के गुण गान में लिखा गया ‘जन गण मन’ को आधिकारिक रूप से राष्ट्रगान का दर्जा दिया गया।

किसने की वंदे मातरम और देश के स्वतंत्रता सेनानियों के साथ गद्दारी? और कौन हो सकता है भला? गांधीजी की आँखों का तारा, मुगलों के चिराग नेहरू के अलावा और हो ही कौन सकता है। वंदे मातरम में ‘हिन्दुत्व’ का लेप जो दिखा नेहरू को जो उसने इस गीत को राष्ट्रगान बनने से रॊक दिया। मुस्लिम लीग के नायक जिन्ना जो नेहरू का जिगरी था उसे और उसके मुठ्ठी भर चाटुकारॊं को इस गीत से आपत्ति थी। जब जिन्नाह को

आपत्ति थी तब नेहरू को भी इस गीत से आपत्ति ही रही होगी। जिन्ना-नेहरू की जोड़ी ने गांधी जी पर दबाव डाला की इस गीत को कांग्रेस के कार्यकारिणी सभा में न गाया जाए। मुस्लिम तुष्टिकरण के पितामह गांधीजी ने सर हिलाया और मुस्लिम भावनाओं को ठेस ना पहुँचे इस लिए वंदे मातरम पर प्रतिबंध लगा दिया! घॊर अन्याय, कैसी विडंबना है यह, जॊ गीत स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा का स्रॊत थी उस पर प्रतिबंध? हाय रे माँ भारती तेरे हृदय में और कितने ऐसे अन कहे, अन सुने घाव छुपे हैं? तेरे पीठ के पीछे अपने ही बेटॊं द्वारा खॊपे गये खंजरों की कितनी निशानियां है? क्षमा करॊ माँ भारती हम असहाय है क्योंकि हम धर्म निरपेक्ष हैं!? हमको ‘वंदे मातरम में सांप्रदायिकता’ दिखी यही हमारी धर्म निरपेक्षता है।

गांधी जी ने न केवल वंदे मातरम पर प्रतिबंध लगाया अपितु पूरे देश को मज़बूर किया कि वे इस गीत का परित्याग करे। सन 1940 कांग्रेस ने निर्णय लिया की वंदे मातरम को कांग्रेस का कॊई भी सदस्य किसी भी सार्वजनिक भाषणॊं या घॊषणाओं में उच्चारण नहीं करेगा और आधिकारिक रूप से इसकी घॊषणा भी कर डाली। ‘महात्मा’ जी के नेतृत्व में ही यह सब हॊ रहा था यह और भी खेद का विषय है। 1998 जब वंदे मातरम को राष्ट्रगान बनाने की मांग उठी तो एक बार फिर मुसल्मानों ने आपत्ति जताई। संविधान विशेषज्ञ ए-जी- नूरानी ने इस पर आपत्ति जताई और अपनी  फ्रंट लाइन पत्रिका में लिखा की यह असंवैधानिक है।

उन्होंने 30 दिसम्बर 1908 को अखिल भारतीय मुस्लिम लीग अधिवेशन के द्वितीय सत्र में सैयद अली इमाम के अध्यक्षीय उद्‌बोधन को उद्धृत किया जिसमें वंदे मातरम को एक ‘सांप्रदायिक आव्हान’ बताया गया था! इमाम के महान शब्द

जो उन्होंने उद्धृत करने लायक समझे वे ये हैं- ‘क्या अकबर और औरंगजेब द्वारा किया गया योग असफल हो गया?’ कहां अत्याचारी अकबर और औरंगजेब, कहां वंदे मातरम में सांप्रदायिकता? नुरानी आगे कहते हैं कि “मैं भारतीय राष्ट्रवाद के शिल्पियों से, चाहे वे कलकत्ता में हों या पूना में, पूछता हूँ कि क्या वे भारत के मुसलमानों से ‘वंदे मातरम और शिवाजी उत्सव’ स्वीकार करने की उम्मीद करते हैं? मुसलमान हर मामले में कमजोर हो सकते हैं लेकिन अपने स्वरणिम अतीत की परंपराओं का अस्वाद लेने में कमजोर नहीं हैं”।

कठ्ठरपंथ तो हमें मुसल्मानों से सीखना चाहिए किन्तु हम सीखेंगे नहीं क्यों कि हिन्दू ‘धर्म निरपेक्ष’ हैं। संविधान की दुहाई देकर धर्म निरपेक्षता की आढ़ में वंदे मातरम के साथ गद्दारी करने वाले यह भूल जाते हैं की उसी संविधान के मूल कर्तव्य है जिसके अनुसार-“आजादी के राष्ट्रीय संग्राम में हमें प्रेरणा देने वाले महान आदर्शों का अनुकरण करना और उन्हें संजोना नागरिक का मूल कर्तव्य है”। वंदे मातरम आज़ादी के काल का आदर्श नहीं है तो वह क्या है मात्र एक गीत? कब तक ऐसे हमारे स्वतंत्रता सेनानी और हमारे इतिहास के साथ अन्याय होता रहेगा? कठमुल्ले दिन दहाड़े वंदे मातरम पर फत्वा जारी करते हुए कहते हैं कि इसे गाने से नरक की प्राप्ति होगी, लेकिन आतंक करने से इन्ही मुल्लॊं को जन्नत और 72 हूर नसीब हॊती है! वाह क्या गजब है कुरान भी और उससे गजब है हमारे देश का कानून। इतिहास में जो गलती हुई है उसे सुधारने का यह सही समय है। देश प्रेमी किसी भी समुदाय से हो उसे वंदे मातरम से कॊई आपत्ति नहीं हॊगी। घर घर में वंदे मातरम का नारा गूँजना चाहिए।

 

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